नोटबंदी का कालेधन पर प्रभाव
डॉ भरत झुनझुनवाला अर्थशास्त्री नोटबंदी का उद्देश्य कालेधन पर प्रहार करना था. सरकार की सोच थी कि 500 तथा 1000 के नोट बंद करने से कालाधन रखनेवालों की तिजोरियों में रखे नोट बरबाद हो जायेंगे. देश कालेधन से मुक्त हो जायेगा. ताजा समाचारों के अनुसार, 15 लाख करोड़ के बड़े नोटों में से 12 लाख […]
डॉ भरत झुनझुनवाला
अर्थशास्त्री
नोटबंदी का उद्देश्य कालेधन पर प्रहार करना था. सरकार की सोच थी कि 500 तथा 1000 के नोट बंद करने से कालाधन रखनेवालों की तिजोरियों में रखे नोट बरबाद हो जायेंगे. देश कालेधन से मुक्त हो जायेगा. ताजा समाचारों के अनुसार, 15 लाख करोड़ के बड़े नोटों में से 12 लाख करोड़ बैंकों में जमा हो चुके हैं. 31 दिसंबर तक शेष के भी जमा हो जाने की आशा है.
इससे ज्ञात होता है कि संपूर्ण कालाधन बैंक में जमा हो जायेगा. सरकार ने कहा है कि जमा रकम की स्क्रूटनी की जायेगी और कालाधन पाये जाने पर जमाकर्ता पर कार्रवाई की जायेगी. अधिकतर जमाकर्ताओं को भरोसा है कि आयकर अधिकारियों के साथ सेटिंग करके वे जमा रकम को सफेद करने में कामयाब हो जायेंगे. निचले स्तर पर आयकर अधिकारियों के इस गोरखधंधे को सरकार रोक सकेगी, इसमें संशय है. मैंने गुजरात के दो संपादकों से बात की. दोनों ने एक स्वर में कहा कि नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में गुजरात में कालाधन बढ़ा था. मोदी एक राज्य में टैक्स प्रशासन को भ्रष्टाचार मुक्त नहीं कर सके. वे राष्ट्रीय स्तर पर यह दुरूह कार्य कर सकेंगे, इसकी संभावना कम ही है.
काले तरीकों से बड़ी मात्रा में कालाधन को सफेद किया जा रहा था, इसलिए सरकार ने छूट दी है कि कालेधन को जमा कराने पर 50 प्रतिशत टैक्स देना होगा. साथ-साथ 25 प्रतिशत रकम को चार साल के लिए ब्याज रहित जमा कराना होगा, जो लगभग 12 रुपये होता है.
अतः कालेधन पर वास्तविक टैक्स कुल 62 प्रतिशत बैठता है. सरकार को सूचना मिली थी कि लोगों द्वारा 500 एवं 1000 के नोटों को गैरकानूनी ढंग से नये नोटों में बदला जा रहा है. इसीलिए रिजर्व बैंक ने कोआॅपरेटिव बैंकों द्वारा पुराने नोट जमा कराने पर रोक लगायी है. सरकार ने प्रलोभन दिया है कि एजेंट को 10 से 40 प्रतिशत देने के स्थान पर आप सरकार को 62 प्रतिशत दे दें और अपनी रकम को आयकर से भी मुक्त करा लें. यह टैक्स अधिक है. बड़े खिलाड़ी 62 प्रतिशत देकर अपनी रकम को सफेद नहीं बनाना चाहेंगे.
बड़े खिलाड़ी कालेधन को नकद में कम ही रखते हैं. तीन उदाहरण हैं- एक जानकार ने बताया कि उत्तर प्रदेश के एक पूर्व मुख्यमंत्री द्वारा गोदाम में नोट के गट्ठर रखे जाते थे. परंतु, सत्ता छोड़ने के पहले उन्होंने अधिकतर रकम को विदेश भेज दिया. दूसरे उद्यमी टैक्स की चोरी बड़ी मात्रा में करते थे. बैंक से लोन लेने के स्थान पर वे इस काली रकम का नयी फैक्ट्री लगाने में निवेश कर देते थे. तीसरे व्यक्ति कालेधन को विदेश भेज देते थे.
धन को विदेश भेजने का आसान रास्ता माल के आयात एवं निर्यात का है. मान लीजिये, किसी व्यापारी ने 100 डाॅलर के मोबाइल फोन का चीन से आयात किया. व्यापारी ने सप्लायर से कह कर बिल 150 डाॅलर का बनवा लिया और 150 डाॅलर का भुगतान कर दिया. फिर व्यापारी ने सप्लायर से कह कर 50 डाॅलर अपने नंबर दो के विदेशी खाते में डलवा दिये. इसी प्रकार निर्यात की रकम को कम दिखाया जाता है.
100 डाॅलर के माल के निर्यात को कागज पर 50 डाॅलर का दिखाया जाता है. शेष 50 डाॅलर को व्यापारी के नंबर दो के खाते में जमा करा दिया जाता है. देश में कार्रवाई होने से देश के कालेधन को विदेश भेजने की प्रवृत्ति बढ़ेगी. देश के लोगों को भय है कि नये नोटों को पुनः निरस्त किया जा सकता है.
इसलिए नकद रखने के स्थान पर सोने का आयात बढ़ेगा और पुनः देश का धन विदेशों को जायेगा. बीते दिनों डाॅलर के सामने रुपये का मूल्य घटा है. यानी विदेशी मुद्रा बाजार में रुपये ज्यादा और डॉलर कम उपलब्ध है. और लोग रुपये को डाॅलर में बदलने को आतुर हैं.
नोटबंदी से कालाधन बनना बंद नहीं होगा. कालाधन मुख्यतः टैक्स की बचत करने या सरकारी धन की लूट से बनता है. नोटबंदी से इस प्रक्रिया पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. टैक्स की दरें पूर्ववत ऊंची रहने के कारण लोग पुनः कालाधन बनायेंगे और नये नोटों में या विदेशों में इसे रखेंगे.
खबर है कि किसी के पास 70 लाख रुपये के नोट बरामद हुए. इससे सिद्ध होता है कि नोटबंदी से कालेधन का रंग मात्र बदला है. कोआॅपरेटिव बैंकों पर प्रतिबंध लगाना इस बात का द्योतक है कि जमीनी स्तर पर भ्रष्टाचार जारी है.
राजनीति में कालेधन का फैलाव भी कम नहीं हुआ है. हाल में भाजपा के दो कार्यकर्ताओं को कालेधन के साथ हिरासत में लिया गया है. नोटबंदी से कालेधन पर तनिक भी प्रभाव नहीं पड़ेगा. वैसे ही जैसे प्रेशर कुकर से निकल रही भाप पर पानी डालने से अंतर नहीं पड़ता है.
जरूरत कालेधन के स्रोतों पर प्रहार करने की है. जंगली घोड़े को कटघरे के अंदर चाबुक मार कर सीधा किया जाता है, खुले मैदान में नहीं. इसी तरह भारतीय अर्थव्यवस्था को चारों तरफ से घेर कर नोटबंदी की जाती, तो ज्यादा प्रभावी रहता. खुली वित्तीय सरहदों के साथ सख्ती करने से काली रकम देश के बाहर जायेगी. नोटबंदी के माध्यम से कालेधन के नियंत्रण के लिए टैक्स की दरों में कटौती करने, सरकारी कर्मियों के भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के साथ ही देश की वित्तीय सरहद पर घेरेबंदी भी करनी होगी.