अगर तुरंत कुछ ठोस कदम नहीं उठाये गये, तो दुनिया के करीब 25 करोड़ बच्चे नशे की वजह से मौत का शिकार हो सकते हैं. नशीले पदार्थों से जनित बीमारियां दुनियाभर में सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए बड़ी चुनौती बन चुकी हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन का यह भयावह अंदेशा भारत के लिए भी खतरे की घंटी है.
किशोरों में नशे की लत बढ़ने का संज्ञान लेते हुए उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार को छह महीने के भीतर इस पर राष्ट्रीय कार्ययोजना तैयार करने के निर्देश दिया है. प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर और न्यायाधीश डीवाइ चंद्रचूड़ की खंडपीठ के आदेश में 18 साल से कम आयु के बच्चों में नशीले पदार्थों और शराब के सेवन के मामलों पर चार महीने में राष्ट्रीय सर्वेक्षण कराने और जागरूकता बढ़ाने के लिए भी कहा गया है.
यह फैसला नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी की संस्था बचपन बचाओ आंदोलन की याचिका पर दिया गया है. गत वर्ष दिल्ली के बाल अधिकार सुरक्षा आयोग की एक रिपोर्ट में नौ साल के बच्चों द्वारा नशीले पदार्थों के सेवन का मामला सामने आया था. एक अन्य सर्वे के अनुसार, इलाज के लिए आनेवाले लोगों में 63.3 प्रतिशत लोग नशे की शुरुआत 15 साल की आयु में ही कर चुके होते हैं.
नशे के शिकार लोगों में 13.1 प्रतिशत की उम्र तो 20 साल से भी कम है. बड़ी चिंता की बात यह है कि स्कूल जानेवाले बच्चों या स्कूल छोड़ चुके बच्चों के लिए देश में कोई ठोस जागरूकता कार्यक्रम ही नहीं है. प्रतिवर्ष दो करोड़ से अधिक किशोर तंबाकू सेवन करने लगते हैं. खांसी की दवाई, गोंद, दर्द निवारक मलहम, सफाई के लिए प्रयुक्त रसायन, तंबाकू जैसी तमाम चीजों तक बच्चों की पहुंच आसान होती जा रही है. किशोरों में बढ़ती नशे की लत की चुनौती से निपटने में स्कूलों के साथ-साथ अभिभावकों और जागरूक समाज की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण हैं.
ऐसे विषयों को स्कूली पाठ्यक्रमों में शामिल करने के साथ-साथ बड़े स्तर पर समझ विकसित करने के लिए सघन अभियान चलाने की जरूरत है. नशे की चपेट में आ चुके किशोरों की पहचान करने, उन्हें लत से छुटकारा दिलाने, उन्हें सही ढंग से समझाने और उनका पुनर्वास करने जैसे काम बेहद संजीदगी से किया जाना चाहिए, ताकि देश की भावी पीढ़ी को बीमार और अंधेरे भविष्य से बचाया जा सके.