मुझे मिटा कर हमेशा के लिए मुक्ति दे दें

।। शैलेश कुमार।। (प्रभात खबर, पटना) मैं बड़ा ही कीमती हूं. सच में! मेरे सहारे ही इस देश की राजनीति चलती है. मुङो आधार बना कर ही यहां कायदे-कानून बनते हैं. मेरी वजह से लड़ाई भी होती है. जानें भी जाती हैं. मेरा नाम ‘जाति’ है. मेरा अर्थ, तो केवल ‘मानव संतति’ है, लेकिन मुङो […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 19, 2014 5:06 AM

।। शैलेश कुमार।।

(प्रभात खबर, पटना)

मैं बड़ा ही कीमती हूं. सच में! मेरे सहारे ही इस देश की राजनीति चलती है. मुङो आधार बना कर ही यहां कायदे-कानून बनते हैं. मेरी वजह से लड़ाई भी होती है. जानें भी जाती हैं. मेरा नाम ‘जाति’ है. मेरा अर्थ, तो केवल ‘मानव संतति’ है, लेकिन मुङो माननेवालों ने न जाने कितने नाम दे दिये हैं. किसी के लिए मैं राजपूत हूं, तो किसी के लिए दलित. किसी के लिए कुरमी, तो किसी के लिए बनिया. मेरे इतने नाम हैं, जिन्हें मैं भी अच्छे से नहीं जानता. आज सोचने बैठा हूं. अपने नाम के बारे में. काम के बारे में. अपनी पहचान के बारे में. मैंने पूरा होमवर्क भी किया है.

अपने अलग-अलग नाम के लोगों को अच्छी तरह से देखा है. उनके बीच अंतर निकालने का जतन किया, पर थक गया. मुङो कोई अंतर दिखा ही नहीं. सभी के वही दो पैर और दो हाथ हैं. ऐसा नहीं कि यादव की दो आंखें हैं और कोइरी की चार. मुङो शर्मा के पास भी एक नाक दिखी और श्रीवास्तव के पास भी. दुखी होने पर द्विवेदी रोते नजर आये और मंडल भी. खुशी में गुप्ता भी ठहाके लगाते नजर आये और रजक भी. एक रिसर्चर की तरह मैंने सब कुछ कॉपी में लिख कर रख लिया. अब सोचना शुरू करता हूं. ये लो, दिमाग में पहली बात आयी.

ये जितने भी मानव हैं, वे बीज की तरह हैं. ऊपरवाला किसान है. धरती खेत है. किसान ने बीज छिड़क दिये. बीज गिरने की देरी थी कि इसे अलग-अलग नाम दे दिया गया. हैं तो सभी देखने में एक ही जैसे. संवेदनाएं भी सभी में हैं, लेकिन नाम अलग हैं. अब यहां किसी नाम को ऊंचा बना दिया और किसी को नीचा. इसके आधार पर आरक्षण भी दे डाला. योजनाएं बना डालीं. इतना ही नहीं, ऑनर किलिंग से भी नहीं चूके. अरे यह कौन आया है मुझसे मिलने? ‘हां भाई बताओ. उदास क्यों हो? क्या परेशानी है तुम्हें?’ वह बोल रहा है, ‘कहने को ऊंची जाति से हूं, पर बहुत गरीब हूं. बड़ा संघर्ष करके पढ़ाई की, लेकिन एग्जाम में दो परसेंट से रह गया. नौकरी नहीं मिली. मेरा क्लासमेट, जिसे आरक्षित जाति का कहते हैं, बहुत अमीर है, पर कम अंक आने पर भी आरक्षण में उसे नौकरी मिल गयी. सब तुम्हारी वजह से हुआ है. तुम पैदा ही क्यों हुए?’

इससे पहले कि मैं उसका जवाब दे पाऊं, कोई और भी मुझसे कुछ कह रहा है. ‘हम दोनों एक-दूजे से बहुत प्यार करते हैं. शादी करना चाहते हैं. मैं उसका अच्छा ख्याल रख पाने में सक्षम हूं, पर उसके मां-बाप तैयार नहीं. कहते हैं, जाति के बाहर शादी नहीं कर सकते. सब तुम्हारी वजह से हुआ है.’ दोनों के आरोप सुन, मेरी आंखों से आंसू छलक आये हैं. हाय री दुनिया! मुङो बना कर मानवता की बलि चढ़ा दी. और इसका पाप मुझ निदरेष के मत्थे मढ़ दिया. पुरानी से तो कम, पर नयी पीढ़ी से उम्मीद करता हूं कि मुङो मिटा कर हमेशा के लिए मुक्ति दे और आनेवाली हर पीढ़ी के लिए आदर्श बन जाये.

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