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बड़ी रणनीतिक चुनौती

दो देशों के आपसी रिश्ते में किसी चीज को स्थायी मान कर नहीं चला जा सकता है. यह अंतरराष्ट्रीय संबंधों की कड़वी सच्चाई है और इसे ध्यान में रख कर हर देश की वैकल्पिक तैयारी होती है. चीन के भारी-भरकम निवेश पर आधारित विकास परियोजना चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीइसी) के पक्ष में रूस के खुले […]

दो देशों के आपसी रिश्ते में किसी चीज को स्थायी मान कर नहीं चला जा सकता है. यह अंतरराष्ट्रीय संबंधों की कड़वी सच्चाई है और इसे ध्यान में रख कर हर देश की वैकल्पिक तैयारी होती है.
चीन के भारी-भरकम निवेश पर आधारित विकास परियोजना चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीइसी) के पक्ष में रूस के खुले समर्थन के बाद भारत के लिए दक्षिण एशिया में बदलते समीकरणों को देखते हुए अपने विकल्पों को परखने का समय आ गया है. बेशक रूस और भारत के संबंधों के बारे में कोई भी बात दोस्ती और सहयोग के लंबे सिलेसिले को दोहराये बगैर पूरी नहीं होती. पर, आज अपने आर्थिक हितों के लिए रूस यदि चीन-पाकिस्तान परियोजना के पक्ष में खड़ा है, तो भारत को सुरक्षा और आस-पड़ोस में आर्थिक हितों के बरक्स नये सिरे से सोचना होगा कि आतंक के मुद्दे पर पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अलग-थलग करने की उसकी रणनीति की भावी दशा-दिशा क्या हो सकती है.
आगामी डेढ़ दशकों में इस परियोजना के पूरा होने पर पाकिस्तान का ग्वादर बंदरगाह चीनी प्रांत शिंजियांग से करीब तीन हजार किमी लंबे मार्ग-जाल से जुड़ जायेगा. मध्यपूर्व के देशों तक चीन की पहुंच आसान हो जायेगी और तेल के आयात पर उसका खर्च काफी कम हो जायेगा. पाकिस्तान अपने ऊर्जा संकट के खत्म होने की उम्मीद है, क्योंकि चीन से उसे सौर-ऊर्जा, पवन-ऊर्जा, पनबिजली और ताप-ऊर्जा की ढेरों परियोजनाओं के लिए 34 अरब डॉलर मिलने हैं. लेकिन, बात सिर्फ चीन और पाकिस्तान के आर्थिक फायदे तक सीमित नहीं है.
परियोजना का एक हिस्सा पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर और गिलगित क्षेत्र में बनना है. गलियारे के इस हिस्से के पूरा होने का मतलब है इन इलाकों पर भारत के वैध दावे का अतिक्रमण. चीनी घुसपैठ के शिकार रहे भारत के लिए पाकिस्तान में चीनी सैनिकों की भारी-भरकम मौजूदगी बड़ी चिंता का सबब है.
रूस भले ही अपने यूरेशियन यूनियन परियोजना के लिए शुभ मान कर गलियारे को समर्थन दे रहा हो, लेकिन यह परियोजना अफगानिस्तान में भारत के आर्थिक हितों को प्रभावित करेगी. सैनिकों की मौजूदगी की ओट में चीन अफगानिस्तान में भारत के बढ़ते निवेश की राह बाधित कर सकता है. ग्वादर बंदरगाह से ईरान का चाबहार बंदरगाह बस 100 किमी दूर है.
चीन-पाकिस्तान गलियारे के बरक्स एशिया के इस इलाके में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए चाबहार पोर्ट के विकास के लिए भारत को 50 करोड़ डॉलर का निवेश करना है. अब रूस के इस पैंतरे के बाद चाबहार बंदरगाह के त्वरित विकास का दबाव भी भारत के लिए बढ़ गया है.

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