गहराते आतंकी साये
तुर्की की राजधानी अंकारा में रूसी राजदूत की हत्या, जर्मनी की राजधानी बर्लिन में लोगों को ट्रक से कुचलने और स्विट्जरलैंड के सबसे बड़े शहर ज्यूरिख में गोलीबारी की घटनाएं वैश्विक आतंकवाद के सिलसिले की ताजा कड़ियां हैं. इन हादसों की पड़ताल तो जांच एजेंसियां कर रही हैं, पर असली सवाल यह है कि क्या […]
तुर्की की राजधानी अंकारा में रूसी राजदूत की हत्या, जर्मनी की राजधानी बर्लिन में लोगों को ट्रक से कुचलने और स्विट्जरलैंड के सबसे बड़े शहर ज्यूरिख में गोलीबारी की घटनाएं वैश्विक आतंकवाद के सिलसिले की ताजा कड़ियां हैं.
इन हादसों की पड़ताल तो जांच एजेंसियां कर रही हैं, पर असली सवाल यह है कि क्या अंतरराष्ट्रीय समुदाय अब आतंकवाद की गंभीर चुनौती का सामना करने और उसके खतरे को मिटाने के लिए कोई ठोस और सामूहिक प्रयास करेगा, या फिर घटनाओं की निंदा कर और कुछ लोगों को सजा देकर अपनी जिम्मेवारी पूरी करेगा. आतंक का मौजूदा दौर कुछ देशों की सरहदों तक सीमित नहीं है, और न ही अब हर हमले के लिए गिरोहों के कट्टर आतंकियों की दरकार होती है. अतिवादी और आतंकवादी विचारधाराओं के प्रचार-प्रसार ने अलग-अलग देशों और वर्गों के लोगों को हिंसक कार्रवाई करने के लिए उकसाया है. बर्लिन का हत्यारा शरणार्थी है. अंकारा का हत्यारा पुलिसकर्मी था. ज्यूरिख में मस्जिद में गोलियां चलानेवाला नकाबपोश युवक है.
अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उचित ही कहा है कि सभ्य दुनिया को अपनी सोच बदलनी होगी. लेकिन, यह भी कहा जाना चाहिए कि सबसे पहले उन मजबूत देशों को अपनी समझ में बदलाव करना होगा, जिनकी आपसी राजनीतिक, कूटनीतिक और सामरिक खींचतान के कारण आतंकवाद के विरुद्ध कोई साझा सहमति और रणनीति नहीं बन सकी है. इस मसले पर कारगर समझ और फैसले के लिए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन करने की भारत की मांग 1996 से लंबित है. भारत और अफगानिस्तान में पाकिस्तान की शह पर अशांति फैलानेवाले गिरोहों और सरगनाओं पर पाबंदी का प्रस्ताव भी सुरक्षा परिषद् में अटका हुआ है. इस सप्ताह भारत ने फिर अफगानिस्तान में बाहर से आतंकियों को मिल रहे समर्थन का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र में उठाया है.
दुनियाभर में आतंकियो को धन और गोली-बारूद की आपूर्ति बंद करने की दिशा में कोई खास पहल बरसों से नहीं की गयी है. हिंसा और तबाही का इस्तेमाल राजनीतिक हथियार के रूप में होता रहा है. यही कारण है कि विभिन्न देश अपने स्वार्थ के अनुसार अपने आतंकवादियों का प्रत्यक्ष या परोक्ष संरक्षण करते रहते हैं. इसका खामियाजा अंततः मानवता को भुगतना पड़ रहा है. उम्मीद तो यही है कि हालिया घटनाएं उन देशों को आत्ममंथन के लिए मजबूर करेंगी.