नेताओं के टकराव में बेपटरी झारखंड
झारखंड के ग्रामीण विकास मंत्री और कांग्रेस नेता चंद्रशेखर दुबे उर्फ ददई दुबे को मंत्री पद से सीएम द्वारा बरखास्त किये जाने के प्रकरण ने मौजूदा सरकार की अंदरूनी स्थिति को जाहिर कर दिया है. इस राज्य के गठन के बाद से लेकर अब तक विडंबना ही रही है कि यहां बनी विभिन्न सरकारों में […]
झारखंड के ग्रामीण विकास मंत्री और कांग्रेस नेता चंद्रशेखर दुबे उर्फ ददई दुबे को मंत्री पद से सीएम द्वारा बरखास्त किये जाने के प्रकरण ने मौजूदा सरकार की अंदरूनी स्थिति को जाहिर कर दिया है. इस राज्य के गठन के बाद से लेकर अब तक विडंबना ही रही है कि यहां बनी विभिन्न सरकारों में न तो कभी स्थायित्व रहा और न ही वे विवादों से मुक्त रह पायीं.
अभी ददई दुबे ने निहित स्वार्थो के लिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ मोरचा खोल रखा था. इससे नाराज मुख्यमंत्री ने उनकी शिकायत कांग्रेस के दिल्ली दरबार तक की और फिर कई दिनों से चल रहे इस विवाद का पटाक्षेप अपने ही मंत्री को बरखास्त करने रूप में हुआ. यह पहला मौका नहीं है कि किसी मंत्री ने सीएम के खिलाफ बोला हो. वर्तमान सरकार में ही कृषि मंत्री और कांग्रेस विधायक योगेंद्र साव जब-तब सरकार के खिलाफ कुछ न कुछ बोलते रहते हैं. दरअसल, कोई भी बात जब बतंगड़ बन जाती है तो मामला और भी पेचीदा हो जाता है क्योंकि उस बात के निहितार्थ लोग अपने-अपने तरीके से करने लगते हैं.
नेताओं की यह आपसी टकराहट अपनी जगह है, असल मसला है राज्य के भविष्य का. कहने की बात नहीं कि यह राज्य अपने साथ ही गठित छत्तीसगढ और उत्तराखंड के मुकाबले विकास में कितना पिछड़ा हुआ है. अगर झारखंड की राजनीति सुधर जाये तो कोई वजह नहीं है कि खनिज और अन्य प्राकृतिक संपदाओं से भरपूर यह राज्य स्थापना के 13वें वर्ष में भी बदहाल रहे. राज्य गठन के पहले और उस वक्त तक देखे गये उन सपनों का क्या हुआ जो राज्य के सुनहरे भविष्य से जुड़े हैं. उस आम आदमी की क्या गलती है जो नये राज्य से अपनी तकदीर बदलने का ख्वाब संजोये हुए था.
दरअसल, झारखंड की राजनीति का अभिशाप यह है कि इसके अच्छे दिन कभी आते ही नहीं है. कभी डावांडोल सरकार तो कभी राष्ट्रपति शासन, कभी अंदरूनी राजनीति का घिनौना खेल तो कभी भ्रष्टाचार में लिप्त यहां के नौकरशाह और मंत्री. हर बार कुछ न कुछ ऐसा अवश्य होता रहता है जिससे यहां की सरकार विकास कार्यो पर ध्यान देने के बजाय इन्हीं सबमें उलझी रहती है. राजनीति का तो बेड़ा गर्क हो ही रहा है, पर सबसे अधिक नुकसान झारखंड की जनता का हो रहा है.