अगले वित्त मंत्री के लिए कंटीला उपहार
।। राजीव रंजन झा।। (संपादक, शेयर मंथन) मुझे नहीं पता कि भारत के अगले वित्त मंत्री कौन होंगे, लेकिन उनके बारे में एक बात की भविष्यवाणी मैं शर्तिया कर सकता हूं. नये वित्त मंत्री अपना पद संभालते ही जो बयान देंगे, उसमें यह बात शामिल होगी कि मुङो खाली खजाना मिला है, अर्थव्यवस्था की हालत […]
।। राजीव रंजन झा।।
(संपादक, शेयर मंथन)
मुझे नहीं पता कि भारत के अगले वित्त मंत्री कौन होंगे, लेकिन उनके बारे में एक बात की भविष्यवाणी मैं शर्तिया कर सकता हूं. नये वित्त मंत्री अपना पद संभालते ही जो बयान देंगे, उसमें यह बात शामिल होगी कि मुङो खाली खजाना मिला है, अर्थव्यवस्था की हालत पतली है और पिछली सरकार का काफी बोझ मुङो ढोना पड़ेगा. यह रटी-रटायी बात तो होगी, लेकिन इसमें सत्य का कुछ अंश भी रहेगा.
मान लें कि आपकी कार में हर महीने करीब पांच हजार रुपये का पेट्रोल लगता है. किसी महीने आपने करीब दो हजार का पेट्रोल उधार में लिया और कहा अगले महीने चुकाऊंगा, तो क्या आप कह सकते हैं कि इस महीने तो मेरा पेट्रोल पर खर्च केवल तीन हजार रुपये रहा? खर्च तो आपने पांच हजार का ही किया, केवल उसमें से दो हजार का भुगतान अगले महीने पर टाल दिया. आप यहीं नहीं रुके. आपने अगले महीने के लिए जो बजट बनाया, उसमें जोड़ा कि पेट्रोल पर खर्च सिर्फ ढाई हजार रुपये होंगे. जब हर महीने आपका खर्च पांच हजार का है, तो अगले महीने यह इतना कम कैसे होगा? फिर इस महीने के जो दो हजार आपने उधार रखे हैं, वे भी तो चुकाने होंगे. तो अगले महीने के लिए जहां आपको पेट्रोल मद में सात हजार रुपये रखने चाहिए थे, आप केवल ढाई हजार रुपये रख कर खुश हो रहे हैं कि मेरा बजट ठीक लग रहा है.
वित्त मंत्री पलनिअप्पन चिदंबरम ने 2014-15 के लिए अंतरिम बजट या लेखानुदान में अगले साल की तेल सब्सिडी के मद में केवल 63,426.95 करोड़ रुपये रखे हैं. गौरतलब है, 2013-14 में संशोधित अनुमान के अनुसार तेल सब्सिडी 85,480 करोड़ रुपये की रही है. यह आंकड़ा तब है, जब इस साल की तेल सब्सिडी के 35,000 करोड़ रुपये का खर्च अगले वित्त वर्ष के लिए टाला गया है. तो तेल सब्सिडी में करीब 26 फीसदी की कमी आने की यह उम्मीद वित्त मंत्री ने किस आधार पर की है? क्या उन्हें पता है कि अगले साल विश्व बाजार में कच्चे तेल की कीमतें घटने वाली हैं? या फिर क्या वे जानते हैं कि अगली सरकार देश में पेट्रोलियम उत्पादों के खुदरा दाम बढ़ानेवाली है?
केवल तेल सब्सिडी के 35,000 करोड़ का खर्च ही अगले साल पर नहीं टाला गया है. चिदंबरम ने अलग-अलग मदों में इस साल के एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा के खर्चे अगले वित्त मंत्री को बतौर उपहार सौंप दिये हैं. हालांकि चिदंबरम की दलील है कि पिछले साल भी 2012-13 की चौथी तिमाही की 45,000 करोड़ रुपये की तेल सब्सिडी इस साल के खातों में डाली गयी थी. उसकी तुलना में उन्होंने इस बार केवल 35,000 करोड़ रुपये की तेल सब्सिडी आगे बढ़ायी है. लेकिन यह इस बात का जवाब नहीं है कि तेल सब्सिडी में 26 फीसदी कमी का अनुमान उन्होंने किस आधार पर रखा है?
अगर तेल के साथ-साथ खाद्य और खाद सब्सिडी को भी जोड़ें तो चिदंबरम इन सब पर 2014-15 में कुल सब्सिडी 2,46,397 करोड़ रुपये रहने का अनुमान जता रहे हैं. लेकिन 2013-14 के संशोधित अनुमान में इन पर कुल खर्च 2,45,452 करोड़ रुपये रहा है. यानी इस साल सब्सिडी पर जितना खर्च हुआ है, लगभग उतना ही खर्च अगले साल भी होने की बात कही जा रही है. यहां याद दिलाना जरूरी है कि पिछले बजट में 2013-14 के लिए इन तीनों मदों पर कुल सब्सिडी 2,20,971 करोड़ रुपये रहने का अनुमान जताया गया था, लेकिन ताजा आंकड़े बता रहे हैं कि यह खर्च वास्तव में करीब 11 फीसदी बढ़ गया.
चिदंबरम जहां खर्चे कम आंक कर चल रहे हैं, वहीं आमदनी बढ़ने के अनुमानों पर कुछ ज्यादा आशावादी हैं. उन्होंने अगले साल सरकार को मिलनेवाले कर राजस्व में 19 फीसदी वृद्धि का अनुमान रखा है. इस साल तो यह वृद्धि केवल 11.8 फीसदी हुई है. अगले साल इसमें इतनी तेजी कहां से आ जायेगी? अर्थव्यवस्था में बहुत सुधार की संभावनाएं अब तक तो नहीं दिखी हैं. वित्त मंत्री ने जीडीपी में अगले साल 6 फीसदी वृद्धि की बात कही है. लेकिन अब तक जितने अनुमान मैंने देखे हैं, उनमें यह सबसे ज्यादा सकारात्मक है, यानी जरूरत से ज्यादा आशावादी.
हाल में एक आंकड़ा सामने आया, जिस पर कम चरचा हुई है. सरकार के केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) ने 2012-13 के लिए विकास दर का आंकड़ा 5 फीसदी के पिछले अनुमान से संशोधित कर 4.5 फीसदी कर दिया है. इस घटाये हुए आंकड़े के ऊपर 2013-14 में 4.9 फीसदी विकास दर का ताजा अनुमान सामने आया है. इसका मोटा मतलब यही है कि अर्थव्यवस्था में सुधार नहीं हो रहा, हाल के अनुमानों की तुलना में स्थिति कुछ बिगड़ी ही है. ऐसा नहीं होता तो घटे हुए आंकड़ों पर बेस इफेक्ट की वजह से इस साल की वृद्धि दर कुछ बेहतर नजर आती. इन हालात में वित्त मंत्री किस आधार पर यह भरोसा कर रहे हैं कि अगले साल कर राजस्व में 19 फीसदी की वृद्धि हो जायेगी? वे जीडीपी में वृद्धि पर भरोसा करने के बदले यह बता रहे हैं कि टैक्स और जीडीपी का अनुपात सुधर जायेगा. यानी भले ही लोग पहले जितना ही कमायेंगे, लेकिन वे सरकार को ज्यादा कर चुकायेंगे! जब हमें पता है कि हर बार हमारे खर्च अनुमानों से ज्यादा हो जाते हैं, तो हम पहले से ही सही अनुमान क्यों नहीं सामने रखते? आप खर्च कम मान कर चलें और आमदनी ज्यादा, तो साल के अंत में बजट बिगड़ेगा ही. आंकड़ों की इस बाजीगरी से चिदंबरम क्या हासिल कर रहे हैं? एक सक्षम वित्त मंत्री का खिताब! वे भले ही महंगाई नहीं घटा पाये और विकास की गाड़ी को फिर से पटरी पर नहीं ला पाये, लेकिन वे चाहते हैं कि लोग उन्हें अर्थव्यवस्था को ठीक से संभालनेवाले वित्त मंत्री के रूप में याद रखें!
पिछले बजट में 2013-14 के लिए सरकारी घाटा (फिस्कल डेफिसिट) जीडीपी के 4.8 फीसदी पर रहने का अनुमान था. वे चाहते थे कि यह आंकड़ा इससे नीचे आये. इसीलिए जहां भी संभव था, वहां खर्चो में कटौती की. जहां कटौती संभव नहीं थी, वहां कोशिश की गयी कि खर्च अगले साल के खाते में डाल दिया जाये. साथ ही अगले साल की भी कुछ आय इसी साल दर्ज कर ली जाये. सरकारी कंपनियों से वित्त वर्ष पूरा होने से पहले ही विशेष अंतरिम लाभांश घोषित कराना इसी रणनीति का हिस्सा था. यह सब करके सरकारी घाटे को 4.8 फीसदी के लक्ष्य की तुलना में 4.6 फीसदी पर ला दिया गया. वाहवाही तो बनती है!
उन्होंने अगले वित्त मंत्री के लिए 4.1 फीसदी सरकारी घाटे का लक्ष्य रखा है. कैसे पूरा होगा, यह तो अगले वित्त मंत्री की चिंता होगी. नये वित्त मंत्री सिर धुनेंगे कि मेरे हिस्से की कमाई आपने अपने नाम पर डाल ली, अपने खर्चे मुङो सौंप दिये और कह रहे हैं कि घाटा कम करके दिखाओ! जब लक्ष्य पूरा नहीं होगा तो चिदंबरम फरवरी, 2015 के बजट पर अपनी प्रतिक्रिया में कहेंगे कि मैं तो अर्थव्यवस्था की रेलगाड़ी बिल्कुल सही चला रहा था, नये वित्त मंत्री ने इसे पटरी से उतार दिया!