का वार्ता? किमाश्चर्यम्?

डॉ सुरेश कांत वरिष्ठ व्यंग्यकार युधिष्ठिर संसद मार्ग पर दौड़ा चला जा रहा था. हर मार्ग की तरह संसद मार्ग भी कुछ लोगों को संसद की तरफ ले जाता था, तो कुछ को उसके विपरीत. संसद केवल सांसदों के लिए थी, जनता से उसका इतना ही ताल्लुक था कि जनता ने खुद उन सांसदों को […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 23, 2016 6:39 AM

डॉ सुरेश कांत

वरिष्ठ व्यंग्यकार

युधिष्ठिर संसद मार्ग पर दौड़ा चला जा रहा था. हर मार्ग की तरह संसद मार्ग भी कुछ लोगों को संसद की तरफ ले जाता था, तो कुछ को उसके विपरीत. संसद केवल सांसदों के लिए थी, जनता से उसका इतना ही ताल्लुक था कि जनता ने खुद उन सांसदों को संसद के लिए चुन कर भेजा था और अब किसी से इसकी शिकायत भी नहीं कर सकती थी, क्योंकि बकौल दुष्यंत- किससे कहें कि छत की मुंडेरों से गिर पड़े, हमने ही खुद पतंग उड़ायी थी शौकिया!

संसद मार्ग जिन लोगों को संसद की विपरीत दिशा में ले जाता था, वे आम आदमियों में शुमार होते थे. उनका नाम कुछ भी हो सकता था, फिलहाल वह युधिष्ठिर था. युधिष्ठिर आगे स्थित किसी बैंक के एटीएम से पैसे निकालने के लिए लपका जा रहा था. लेकिन, उससे पहले ही रिजर्व बैंक भी पड़ता था, जिसके दरवाजे पर एक ओर यक्ष और दूसरी ओर यक्षिणी मूर्तिमान खड़े थे.

यक्षिणी ने अचानक युधिष्ठिर को रुकने के लिए कहा. युधिष्ठिर ने प्रश्नवाचक दृष्टि से उसकी ओर देखा, तो उसने कहा- मुझे पता है युधिष्ठिर, कि तुम आगे स्थित एटीएम से रुपये निकालने जा रहे हो. इधर से तीव्र गति से जानेवाला हर आदमी आजकल वहीं जाता है. लेकिन, बिना मेरे सवालों के जवाब दिये तुम एटीएम से रुपये नहीं निकाल सकते, और रुपये नहीं निकाल पाने पर तुम मर जाओगे, यह भी निश्चित है. तुमसे पहले तुम्हारे भाई ही नहीं, बल्कि अस्सी-नब्बे अन्य लोग भी इसी गति को प्राप्त हो चुके हैं. अत: भलाई इसी में है कि मेरे प्रश्नों के उत्तर देने के बाद ही एटीएम से रुपये निकालने जाओ. और फिर यक्षिणी ने युधिष्ठिर से कुछ वैसा ही कहा, जैसा पुराने जमाने में यक्ष ने तब के युधिष्ठिर से कहा था-

का वार्ता किमाश्चर्यम् कः पंथा कश्च मोदते।

इति मे चतुरः प्रश्नान् पूरयित्वा धनं लिब।।

अर्थात्- क्या बात है? आश्चर्य क्या है? पंथ कौन-सा है? और प्रसन्न कौन रहता है? मेरे इन चार प्रश्नों के उत्तर देने के बाद ही तुम इस एटीएम से रुपये निकालने के बारे में सोचना.

युधिष्ठिर को जल्दी थी, पर कोई और चारा न देख वह यक्षिणी के सवालों के जवाब देने लगा- सुनो यक्षिणी, बात बहुत अच्छी है, क्योंकि जनता के अच्छे दिन आ गये हैं और वह इस तरह कि आजकल नाम बदलने का दौर है और बुरे दिनों का ही नाम बदल कर अच्छे दिन कर दिया गया है.

आश्चर्य यह है कि जनता परेशान है, पर उसके मुंह से यही निकलता है कि वह बिलकुल भी परेशान नहीं है. और अगर कोई परेशान होता भी है, तो वह खुशी के मारे परेशान होता है और यह गा-गाकर अपनी खुशी जाहिर करता रहता है कि मैं परेशान, परेशान, परेशान, परेशान… आतिशें वो कहां, आदि. पंथ आजकल वह नहीं, जिस पर कभी महाजन चलते थे, बल्कि वह है जिस पर आम जन दौड़ते हैं और जो एटीएम की ओर ले जाता है. प्रसन्न केवल नरों का राजा है, जो अपने फैसलों से नरों को त्रस्त देख प्रसन्न रहता है.

यक्षिणी ने युधिष्ठिर से अंत में पूछा कि मन की गति से भी तेज किसकी गति है? इसका जवाब युधिष्ठिर ने यह दिया कि मन की गति से भी तेज रिजर्व बैंक के फैसले लेने की गति है. प्रसन्न होकर यक्षिणी ने कहा कि जाओ युधिष्ठिर, तुम समझदार हो और समझदार की क्या गत होती है, तुम्हें पता ही होगा. अब तुम दौड़ कर एटीएम से रुपये निकाल लाओ, बशर्ते तुम्हारी बारी आने तक वह कैशलेस न हो जाये. और लौट कर वे रुपये अपने भाइयों को सुंघा देना, वे जीवित हो जायेंगे.

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