खेलों में अजीब खेल

इंडियन ओलिंपिक एसोसिएशन द्वारा दागी पूर्व खेल प्रशासकों- सुरेश कलमाड़ी और अभय चौटाला- को आजीवन अध्यक्ष के मानद पद पर आसीन करना निश्चित रूप से चौंकानेवाली घटना है. कलमाड़ी कॉमनवेल्थ खेलों में हुए घोटाले के आरोपी हैं, तो चौटाला के अध्यक्ष रहते इंडियन अमेच्योर बॉक्सिंग फेडरेशन के चुनावों में हुई कथित गड़बड़ी के बाद इंटरनेशनल […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 29, 2016 6:21 AM

इंडियन ओलिंपिक एसोसिएशन द्वारा दागी पूर्व खेल प्रशासकों- सुरेश कलमाड़ी और अभय चौटाला- को आजीवन अध्यक्ष के मानद पद पर आसीन करना निश्चित रूप से चौंकानेवाली घटना है.

कलमाड़ी कॉमनवेल्थ खेलों में हुए घोटाले के आरोपी हैं, तो चौटाला के अध्यक्ष रहते इंडियन अमेच्योर बॉक्सिंग फेडरेशन के चुनावों में हुई कथित गड़बड़ी के बाद इंटरनेशनल बॉक्सिंग एसोसिएशन ने संस्था की मान्यता रद्द कर दी थी. ये दोनों भारतीय खेलों के प्रबंधन के धुरंधर खिलाड़ी रहे हैं, पर गंभीर आरोपों के बावजूद उनकी इस तरह की वापसी कई सवाल खड़े करती है. मौजूदा प्रकरण एक बार फिर इस तथ्य को सिद्ध करता है कि खेल संघों में राजनेताओं की पकड़ कितनी मजबूत है और परदे के पीछे रह कर भी वे विभिन्न गतिविधियों को संचालित करने का दम रखते हैं. खेलों में भारत के फिसड्डी होने का सबसे बड़ा कारण लचर और गैर-पेशेवराना प्रबंधन है.

विभिन्न सरकारें भी राजनीतिक इच्छा-शक्ति के अभाव में कोई ठोस कदम उठा पाने में असफल रही हैं, क्योंकि खेल संघों की आंतरिक राजनीति में तकरीबन हर दल के नेता शामिल हैं. खेलों के प्रबंधन पर वर्चस्व जमाने की कवायद में नेता अपने उन मतभेदों को भी परे रख देते हैं, जो आम तौर पर राजनीतिक स्तर पर दिखायी देते हैं. एक तो भारत उन देशों की श्रेणी में है, जहां खेलों पर सबसे कम खर्च होता है. पिछले केंद्रीय बजट में मात्र 1592 करोड़ खेलों के लिए आवंटित हुए थे. वर्ष 2013-17 के बीच ब्रिटेन का खर्च जहां 9,000 करोड़ रुपये है, वहीं इस अवधि में केंद्र और राज्य सरकारों को मिला कर खर्च की राशि 3,200 करोड़ के करीब है.

कॉमनवेल्थ खेलों पर 1,500 करोड़ खर्च किये गये थे, पर वैसा उत्साह खिलाड़ियों और प्रशिक्षकों के लिए देखने को नहीं मिलता है. पेशेवर रवैये की कमी के कारण समुचित प्रायोजक भी नहीं मिल पाते हैं. खेलों की राजनीति इस धन का दुरुपयोग करने से बाज नहीं आती. विदेशी आयोजनों में खिलाड़ियों और प्रशिक्षकों से कहीं बड़ा दस्ता अधिकारियों और नेताओं का होता है, जो पर्यटन के इरादे से जाते हैं, न कि खिलाड़ियों का मनोबल बढ़ाने के लिए. यदि खेलों में उत्कृष्ट उपलब्धियां हासिल करनी है, तो खेल संघों के संचालन के लिए समुचित नीतियां बनानी होंगी. नहीं तो, सवा अरब की आबादी को दो-चार मेडलों से ही संतोष करते रहना होगा.

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