अल्पसंख्यकों को रिझाने की कोशिश
प्रसिद्ध लेखक फ्रैंक हर्बर्ट कहा करते थे कि जिस गाड़ी में राजनीति और धर्म एक साथ यात्रा करते हैं, उसकी सवारियां समझती हैं कि उनकी राह में कोई रुकावट नहीं आ सकती. देश की दो सबसे बड़ी पार्टियां भी इसी मुगालते की शिकार हैं. भाजपा बहुसंख्यक सांप्रदायिकता के आधार पर गोलबंदी कर, तो कांग्रेस अल्पसंख्यकों […]
प्रसिद्ध लेखक फ्रैंक हर्बर्ट कहा करते थे कि जिस गाड़ी में राजनीति और धर्म एक साथ यात्रा करते हैं, उसकी सवारियां समझती हैं कि उनकी राह में कोई रुकावट नहीं आ सकती. देश की दो सबसे बड़ी पार्टियां भी इसी मुगालते की शिकार हैं. भाजपा बहुसंख्यक सांप्रदायिकता के आधार पर गोलबंदी कर, तो कांग्रेस अल्पसंख्यकों को रिझा कर चुनावी वैतरणी पार करने की जुगत में है. इस कोशिश में मनमोहन सरकार ने अपनी दूसरी पारी के आखिरी दिनों में अल्पसंख्यकों के लिए शिक्षा और रोजगार में समान अवसर सुनिश्चित करने के लिए एक संवैधानिक आयोग बनाने का निर्णय लिया है. ऐसे आयोग का सुझाव पहली यूपीए सरकार के शासनकाल में बनी सच्चर कमिटी ने दिया था, जिसे 2006 में संसद में रखा गया था.
विभिन्न दलों और अल्पसंख्यक समुदायों की लगातार मांगों के बावजूद केंद्र सरकार कमिटी की सिफारिशों पर अब तक हाथ धरे बैठी रही, लेकिन आम चुनाव की घोषणा से ठीक पहले आयोग बनाने के निर्णय से कांग्रेस की मंशा पर सवाल उठना लाजिमी है. इसी क्रम में अल्पसंख्यक समुदाय के सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े लोगों को आरक्षण की अनुमति के लिए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दी है, जिसमें अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित 27 फीसदी में 4.5 प्रतिशत हिस्सा अल्पसंख्यकों के लिए निर्धारित करने का प्रस्ताव है. इस प्रस्ताव पर 2012 में आंध्र प्रदेश हाइकोर्ट ने रोक लगा दी थी, लेकिन केंद्र सरकार को सर्वोच्च न्यायालय जाने की सुध अब आयी है.
इसमें दो राय नहीं कि अल्पसंख्यकों, खास कर मुसलिम समुदाय के बड़े हिस्से की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति चिंताजनक है और उसमें सुधार के लिए हरसंभव प्रयासों की जरूरत है. आजादी से अबतक अनेक नीतियां और समितियां बनीं, घोषणाएं हुईं, लेकिन राजनीतिक चालाकी और चालबाजी ने इन्हें बस सरकारी फाइलों तक महदूद रखा, जिसके कारण लक्षित समुदाय इनके लाभ से वंचित रहे. उन्हें सब्जबाग दिखाये जाते रहे, वोट लिये जाते रहे, उनकी हालत और खराब होती गयी. ऐसे में ऐन चुनावों से पहले अल्पसंख्यक समुदायों के लिए नयी घोषणाएं या पहलकदमी इस समुदाय को वोट के लिए एक बार फिर रिझाने की कोशिश ही कही जायेगी.