पार्टियों की जिम्मेवारी
लोकतांत्रिक व्यवस्था बराबरी के सिद्धांत पर आधारित होती है. हमारे देश में जनता अमूमन हर पांचवें वर्ष सरकार के काम-काज पर अपना फैसला सुनाती है और उसके आधार पर प्रतिनिधियों का चयन करती है. परंतु, यह भी सच है कि चुनावी सरगर्मियों के बीच धन-बल, बाहु-बल, सांप्रदायिक व जातीय ध्रुवीकरण, ओछी बयानबाजी व क्षेत्रीयता जैसे […]
लोकतांत्रिक व्यवस्था बराबरी के सिद्धांत पर आधारित होती है. हमारे देश में जनता अमूमन हर पांचवें वर्ष सरकार के काम-काज पर अपना फैसला सुनाती है और उसके आधार पर प्रतिनिधियों का चयन करती है.
परंतु, यह भी सच है कि चुनावी सरगर्मियों के बीच धन-बल, बाहु-बल, सांप्रदायिक व जातीय ध्रुवीकरण, ओछी बयानबाजी व क्षेत्रीयता जैसे कारक भी उभरते हैं और पूरी प्रक्रिया पर नकारात्मक असर डालने की कोशिश करते हैं. चुनाव सुधार के मद्देनजर इन मसलों पर लंबे समय से चर्चा भी होती रही है. चुनावों में अनियमितता रोकने और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए जनप्रतिनिधित्व कानून जैसे हथियार तो हैं, लेकिन भ्रष्टाचार के संरक्षक इन कवायदों से बच निकलने व राजनीति को कलंकित करने में सफल रहते हैं.
चुनाव आयोग द्वारा पांच राज्यों उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में विधानसभा चुनावों को घोषणा के साथ ही ऐसे हालातों का उभरना, राजनीतिक शुचिता और चुनावी पारदर्शिता से जुड़े सवाल उठना लाजिमी है. पंचायत से लेकर लोकसभा तक लोकतंत्र की उत्तरोत्तर मजबूती का संदेश देनेवाले चुनावों में खामियों को दूर करने और जिम्मेवारी निभाने का संकल्प लेने का यह एक बड़ा अवसर है.
चुनावों के सफल आयोजन, समुचित निगरानी, भ्रष्टाचार रहित पारदर्शी चुनाव के लिए संवैधानिक और कानूनी व्यवस्थाएं भी हैं और उन्हें लागू करनेवाला तंत्र भी है. परंतु, कायदे-कानून और आचार संहिता होने के बावजूद मतदाताओं को लुभाने के लिए असीमित खर्च, पेड-न्यूज, अपराध, जाति व धर्म के नाम पर लामबंदी की राजनीति से लोकतांत्रिक मूल्यों के समक्ष चुनौतियां खड़ी हुई हैं.
चुनाव आयोग के सामने जहां एक ओर चुनावी खर्चों व प्रत्याशियों पर नजर रखने व भ्रष्टाचार को रोकने की मुश्किल होगी, वहीं उसे ओछे ध्रुवीकरण और पार्टियों की हिंसक खींचतान से भी निपटना है. हर चुनाव में और हर राज्य में चुनाव के दौरान बड़ी मात्रा में नकदी पकड़े जाने तथा मतदाताओं को पैसे या सामान बांट कर लुभाने के मामले सामने आते रहते हैं. ऐसे में यह जरूरी है कि प्रशासनिक तंत्र को राजनीतिक दलों और मतदाताओं का सकारात्मक सहयोग मिले तथा नये साल में नये संकल्पों के साथ पार्टियां और प्रत्याशी अपनी जिम्मेवारी और जवाबदेही का सही तरीके से निर्वाह करें. ऐसा करने से ही देश में लोकतंत्र की जड़ों की सींचा जा सकेगा और भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के साथ सबसे अच्छा लोकतंत्र का गौरव भी प्राप्त कर सकेगा.