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पुलिस सुधार बेहद जरूरी
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने छत्तीसगढ़ पुलिस को 16 महिलाओं के बलात्कार और उत्पीड़न का दोषी पाया है. बीजापुर जिले के पांच गांवों में अक्तूबर, 2015 में पुलिसिया जुल्म की शिकार 40 से अधिक महिलाओं की आपबीती की खबर पर आयोग ने स्वत: संज्ञान लेते हुए जांच का आदेश दिया था. उम्मीद है कि इस जांच […]
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने छत्तीसगढ़ पुलिस को 16 महिलाओं के बलात्कार और उत्पीड़न का दोषी पाया है. बीजापुर जिले के पांच गांवों में अक्तूबर, 2015 में पुलिसिया जुल्म की शिकार 40 से अधिक महिलाओं की आपबीती की खबर पर आयोग ने स्वत: संज्ञान लेते हुए जांच का आदेश दिया था.
उम्मीद है कि इस जांच के बाद पीड़ितों को न्याय मिल सकेगा और दोषी पुलिसकर्मियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई होगी. आयोग पिछले साल जनवरी में तीन जिलों के कुछ गांवों में आदिवासी महिलाओं के उत्पीड़न की शिकायतों की भी जांच कर रहा है. देश के विभिन्न हिस्सों, खासकर अशांत इलाकों, से पुलिसिया दमन की शिकायतें अक्सर आती हैं, पर सरकारी असंवेदनशीलता और पुलिस तंत्र के राजनीतिक दुरुपयोग की प्रवृत्ति के कारण बहुत कम मामलों में सजा हो पाती है. आम तौर पर ये सजाएं भी बहुत मामूली होती हैं. हमारी पुलिस व्यवस्था का आधार अब भी ब्रिटिश शासन के दौर में बना 1861 का पुलिस कानून है जिसमें बुनियादी रूप से पुलिस को अपने विभाग के उच्चाधिकारियों और शासन के प्रति जवाबदेह बनाया गया था. आजादी के बाद भी इसमें कोई खास बदलाव नहीं हुआ है.
वर्ष 2006 में सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य और जिला स्तर पर स्वतंत्र पुलिस शिकायत प्राधिकरण बनाने का आदेश दिया था जहां पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध शिकायतों की सुनवाई हो सके. पर, इस पर शायद ही किसी राज्य ने अमल किया है और जहां यह संस्था बनायी भी गयी, तो वह खानापूरी और लीपापोती के लिए ही इस्तेमाल होती है. बरसों पहले इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पुलिस तंत्र को सरकारी गुंडा गिरोह की संज्ञा दी थी. अदालतों और विशेषज्ञों ने पुलिस सुधार के लिए कई बार कहा है, पर न तो केंद्र के स्तर पर और न ही राज्यों के स्तर पर कोई ठोस पहल हुई है. पुलिस प्रशिक्षण में मानवाधिकारों तथा महिलाओं और वंचित समुदायों के अधिकारों को लेकर संवेदनशीलता बढ़ाने पर जोर देने की आवश्यकता है.
थाने में ही महिलाओं के शोषण, पुलिस हिरासत में अत्याचार और पुलिसकर्मियों द्वारा मारपीट जैसी घटनाओं के कारण लोग पुलिस के पास जाने से ही डरते हैं. ऐसे में भ्रष्टाचार के अनेक रूप भी इस तंत्र में दीमक की तरह पैबस्त हो गये हैं. पुलिस कानून और न्याय प्रणाली का बड़ा अहम हिस्सा है तथा उसकी प्राथमिक जिम्मेवारी आम जन की सुरक्षा करना है. अब समय आ गया है कि पुलिस महकमे को औपनिवेशिक ढांचे से बाहर निकालकर उसे संवेदनशील और जवाबदेह बनाकर लोकतंत्र के अनुरूप ढाला जाये.
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