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पाक के डोजियर के मायने

पुष्पेश पंत वरिष्ठ स्तंभकार पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र में भारत के खिलाफ ‘अभियोगों’ का एक बस्ता बना कर पेश किया है, जिससे जान पड़ता है कि भारत के लिए एक नयी राजनयिक चुनौती पैदा हो रही है. इस अभियोग पत्र में यह अपील की गयी है कि भारत को ऐसी हरकतें करनें से रोका जाये, […]

पुष्पेश पंत

वरिष्ठ स्तंभकार

पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र में भारत के खिलाफ ‘अभियोगों’ का एक बस्ता बना कर पेश किया है, जिससे जान पड़ता है कि भारत के लिए एक नयी राजनयिक चुनौती पैदा हो रही है.

इस अभियोग पत्र में यह अपील की गयी है कि भारत को ऐसी हरकतें करनें से रोका जाये, जो दहशतगर्दी को प्रोत्साहित करती हैं. यह तो वही मिसाल हुई कि ‘उल्टा चोर कोतवाल को डांटे!’ पर, अंतरराष्ट्रीय राजनीति का सच यही है कि भारत अब तक अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह समझाने में असमर्थ रहा है कि वह एक स्वर में पाकिस्तान को ‘दहशतगर्द राज्य’ घोषित करे अौर कट्टरपंथी आतंकवादियों को पनाह देनेवाले राज्य के रूप में कटघरे में खड़ा कर उस पर अंकुश लगाने का सामूहिक प्रयास करे. जब कभी अजहर मसूद का नाम आता है, तो उसके खिलाफ पुख्ता सबूत होने के बावजूद चीन के वीटो की वजह से पाकिस्तान किसी भी निंदा-भर्त्सना से बच जाता है. यह शक जायज है कि भारत का कद बौना करने के लिए चीन की मदद से या उसके इशारे पर ही यह व्यूह रचना की गई है.

इस ‘डोजियर’ (बस्ते) को तैयार करने में मलीहा लोदी ने प्रमुख भूमिका निभायी है, जिनका रवैया सदा से भारत विरोधी विषवमन वाला रहा है. इस बेबुनियाद आरोप के अलावा पाकिस्तान ने भारत पर वही सब लांछन लगाये हैं, जिनको सुनते हमारे कान पक चुके हैं. भारत अपने अल्पसंख्यक नागरिकों का दमन उत्पीड़न करता है, उनके मानवाधिकारों का हनन करता है तथा भारत में असहिष्णुता का माहौल बढ़ता जा रहा है आदि.

दुर्भाग्य यह है कि पिछले कुछ महीनों से पाकिस्तान पर ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ के बाद हमारी सरकार कुछ ज्यादा ही आत्ममुग्ध हो अपनी पीठ थपथपाने में व्यस्त रही है. इसी कारण पाकिस्तान के लिए इस घड़ी यह कहना सहज हुआ है कि भारत अंतरराष्ट्रीय विधि का उल्लंघन कर उसकी सीमा का अतिक्रमण कर उसकी संप्रभुता के लिए संकट पैदा कर रहा है. विडंबना यह है कि जब यह प्रतिरक्षात्मक जवाबी सैनिक कार्यवाही करने को भारत मजबूर हुआ था, तब पाकिस्तान ने यह साफ कहा था कि ऐसा कुछ हुआ ही नहीं था.

कुछ ऐसी ही उलझन बलूचिस्तान को लेकर है.

भारत सालभर से अपना खुला समर्थन बलूची स्वाधीनता की मांग करनेवालों को देता रहा है अौर उस उपद्रवग्रस्त प्रदेश में पाकिस्तान द्वारा मानवाधिकारों के बर्बर उल्लंघन का पर्दाफाश करता रहा है. यह बात समझ में आती है कि ‘मानवीय आधार’ पर बलूचों के प्रति हमदर्दी जताने का दुरुपयोग पाकिस्तान कर रहा है. दशकों से जिस घुसपैठिए अलगाव पोषक आतंकवाद को वह सीमा पार से संचालित के जम्मू-कश्मीर को अस्थिर करने की चेष्टा में जुटा है, उसके मद्देनजर उसका यह सोच स्वाभाविक है कि वह हमको भी अपना जैसा षड्यंत्रकारी ही समझता है. बहुत पहले यही समस्या पख्तूनों को लेकर भी थी.

जैसे-जैसे पाकिस्तान की आंतरिक स्थिति निरंकुश उपद्रवग्रस्त होती जा रही है, वहां की सरकार के लिए बाहरी शत्रु की तलाश अनिवार्य होती जा रही है. यदि यह समस्या पाकिस्तान तक ही सीमित होती, तो शायद हम इसकी अनदेखी कर सकते, पर चूंकि इस गुत्थी के साथ चीन जुड़ा है, यह विकल्प शेष नहीं. यह मात्र संयोग नहीं कि चीन ने हाल में दलाई लामा की गतिविधियों- उनकी यात्राअों को लेकर अपनी नाराजगी भारत सरकार को धमकी वाले अंदाज में जतलायी है. चीन को लगता है कि भारत दलाई लामा का उपयोग तिब्बत पर उसके आधिपत्य को कमजोर करने के लिए ही कर रहा है, अतः वह पाकिस्तान के कंधे पर बंदूक रख भारत पर निशाना साध रहा है. क्योंकि, बिना चीन के समर्थन के पाकिस्तान यह राजनयिक दुस्साहस नहीं कर सकता था.

भारत का विदेश मंत्रालय बार-बार यह दावा करता रहा है कि हमने पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंच पर अलग-थलग अकेला कर दिया है. पर, यह खुशफहमी आत्मघातक ही साबित हो सकती है.

जब तक पाकिस्तान की पीठ पर चीन का हाथ है अौर अमेरिका उसके साथ है, तब तक महज यह सोच कर निश्चिंत नहीं बैठे रह सकते कि संयुक्त राष्ट्र के बहुसंख्यक सदस्य हमारे साथ हैं. अोबामा हों या ट्रंप, अमेरिकी प्रशासन अौर सेना तथा गुप्तचर संगठनों का घनिष्ठ नाता पाकिस्तान के साथ बना रहेगा, क्योंकि अपने सामरिक हितों की संवेदनशीलता को देखते हुए उन्हें पाकिस्तान की फौजी तानाशाही भारतीय जनतंत्र की तुलना में कहीं अधिक भरोसेमंद लगती है. पाकिस्तान को निकट भविष्य में दुतकारनेवाले नहीं अौर ईरान जैसे पारंपरिक मित्र भी हमारी इजराइल के साथ नयी-नवेली दोस्ती से आशंकित हैं.

याद रहे कि कुछ भारतीय नेताअों- फारुक तथा उमर अब्दुल्ला, सईदा मुफ्ती आदि- ने बुरहान वानी की ‘शहादत’ को प्रतिष्ठित करने की कोशिश की है, उसने भी पाकिस्तान के मन में यह लालच पैदा किया है कि वह भारत की ‘आंतरिक फूट’ का भरपूर राजनयिक लाभ उठा ले. इस राजनयिक चुनौती की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए अौर जवाब में पाकिस्तान पर निरंतर राजनयिक दबाव बनाये रखने का प्रयास जारी रहना चाहिए.

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