काम और कमाई पर मार
मैनुफैक्चररों के सबसे बड़े संगठन ऑल इंडिया मैनुफैक्चरर्स आॅर्गेनाइजेशन की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि नोटबंदी के पहले 34 दिनों में सूक्ष्म व लघु उद्योगों में 35 फीसदी रोजगार खत्म हो गये हैं और उनके राजस्व में 50 फीसदी की कमी आयी है. इसके अनुसार, इस वित्त वर्ष के अंत तक रोजगार में […]
मैनुफैक्चररों के सबसे बड़े संगठन ऑल इंडिया मैनुफैक्चरर्स आॅर्गेनाइजेशन की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि नोटबंदी के पहले 34 दिनों में सूक्ष्म व लघु उद्योगों में 35 फीसदी रोजगार खत्म हो गये हैं और उनके राजस्व में 50 फीसदी की कमी आयी है. इसके अनुसार, इस वित्त वर्ष के अंत तक रोजगार में कटौती का आंकड़ा 60 फीसदी और राजस्व में कमी का आंकड़ा 55 फीसदी तक हो सकता है.
निर्माण और निर्यात के तीन लाख से अधिक छोटे, मध्यम और बड़े उद्योगों का प्रतिनिधित्व करनेवाले इस संगठन की इस रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि नोटबंदी से अर्थव्यवस्था पर व्यापक असर पड़ा है. हालांकि, सरकार कहती रही है कि कुछ महीनों में स्थिति सामान्य हो जायेगी, लेकिन ये आंकड़े चिंताजनक हैं. रिपोर्ट में नकदी की किल्लत, निकासी के बदलते नियमों तथा समुचित तैयारी न करने जैसे कारकों को जिम्मेवार बताया गया है. एक रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत काम के लिए सात जनवरी को 83.60 हजार आवेदन आये हैं, जबकि जुलाई और नवंबर के बीच औसतन दैनिक संख्या 30 लाख के आसपास होती थी.
इसका अर्थ यह है कि निकटवर्ती क्षेत्रों में उत्पादन प्रक्रिया बहुत कम हुई है और शहरों में काम कर रहे लोग मजबूरन गांव लौट रहे हैं. ध्यान रहे, नोटबंदी से पहले से ही रोजगार के अवसरों के सृजन की गति बेहद धीमी बनी हुई है. अप्रैल से अक्तूबर तक की सूचनाओं के आधार पर सरकार और रिजर्व बैंक का आकलन है कि इस साल सकल घरेलू उत्पादन की वृद्धि दर 7.1 फीसदी रहेगी. नोटबंदी के नतीजों से यह दर कम होने की आशंका भी है.
इस संदर्भ में वैश्विक अर्थव्यवस्था की अनिश्चितता को भी मद्देनजर रखना जरूरी है. जानकारों का मानना है कि नोटबंदी का सबसे अधिक असर असंगठित क्षेत्र और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर पड़ा है. रोजगार, उत्पादन और मांग के लिहाज से ये दोनों बहुत महत्वपूर्ण हैं. उल्लेखनीय है कि खेती में बेहतरी के कारण पिछली तिमाही के विकास दर को आधार मिला है. ग्रामीण इलाकों में दबाव बढ़ना अच्छी खबर नहीं है.
पूंजी का पलायन और निर्यात में ठहराव जैसे कारक चुनौतियों की गंभीरता को बहुत बढ़ा देते हैं. ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि केंद्र और राज्य सरकारें नुकसान को नियंत्रित करने और उसकी त्वरित भरपाई करने के लिए ठोस कदम उठायें. इस प्रयास में उद्योग और कारोबारी समूहों को भी सकारात्मक भूमिका निभानी होगी.