मुआवजा ही नहीं, इंसाफ भी मिले
जाहिद खान स्वतंत्र टिप्पणीकार छत्तीसगढ़ में आदिवासी महिलाओं के उत्पीड़न और दमन का एक बार फिर सनसनीखेज मामला सामने आया है. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने एक रिपोर्ट में बताया है कि बस्तर जिले में पुलिस ने एक दर्जन से ज्यादा महिलाओं के साथ बलात्कार किया था. आयोग ने इस मामले में राज्य सरकार से पीड़ितों […]
जाहिद खान
स्वतंत्र टिप्पणीकार
छत्तीसगढ़ में आदिवासी महिलाओं के उत्पीड़न और दमन का एक बार फिर सनसनीखेज मामला सामने आया है. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने एक रिपोर्ट में बताया है कि बस्तर जिले में पुलिस ने एक दर्जन से ज्यादा महिलाओं के साथ बलात्कार किया था.
आयोग ने इस मामले में राज्य सरकार से पीड़ितों को फौरी तौर पर 37 लाख रुपये की आर्थिक सहायता देने का निर्देश दिया है. आयोग ने कहा है कि बलात्कार का शिकार हुई आठ महिलाओं को 3-3 लाख रुपये, यौन शोषण का शिकार छह महिलाओं को दो-दो लाख रुपये और पुलिस प्रताड़ना की शिकार दो महिलाओं को 50-50 हजार रुपये दिये जायें. आयोग ने इस शर्मनाक हिंसा और यौन उत्पीड़न के लिए परोक्ष तौर पर राज्य सरकार को जिम्मेवार ठहराते हुए मुख्यमंत्री रमन सिंह को भी नोटिस जारी कर दिया है.
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को स्पॉट इन्वेस्टिगेशन और न्यूज रिपोर्ट के जरिये यह जानकारी मिली थी कि नवंबर, 2015 में बीजापुर जिले के पेगदापल्ली, चिन्नागेलुर, पेद्दागेलुर, गुंडम और बर्गीचेरू गांवों में कुछ पुलिसकर्मियों ने आदिवासी महिलाओं के साथ ज्यादती की है. यौन उत्पीड़न से जुड़े मामलों में 34 महिलाओं ने आयोग से शिकायत की है.
जांच के दौरान ही मानवाधिकार आयोग को बीजापुर, सुकमा और दंतेवाड़ा जिले में बड़ी संख्या में सुरक्षाबलों द्वारा आदिवासी महिलाओं के साथ दुष्कर्म और प्रताड़ना की एक और खबर मिली. इसके बाद आयोग की फुल बेंच ने अपने अन्वेषण और विधि विभाग के एक जांच दल को मौके पर जाकर जांच के निर्देश दिये थे. आयोग ने पाया कि रिपोर्ट दर्ज करते समय पुलिस ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) कानून का पालन नहीं किया.
बहरहाल, इस मामले में अभी आयोग की जांच पूरी नहीं हुई है. महिलाओं के बयान रिकॉर्ड किये जाने अभी बाकी हैं. आयोग के अन्वेषण विभाग का एक दल बयान दर्ज करने के बाद एक महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट आयोग को सौंपेगा. आयोग ने साफ कर दिया है कि सारे आदेश अंतरिम रूप से जारी किये जा रहे हैं, अन्य पीड़ित महिलाओं के बयान और विस्तृत विवेचना के बाद अंतिम आदेश जारी किये जायेंगे.
छत्तीसगढ़ के माओवाद से प्रभावित जिलों में आदिवासियों के उत्पीड़न के किस्से आम हैं. एक तरफ यह आदिवासी नक्सली हिंसा से जूझ रहे हैं, तो दूसरी ओर उन्हें पुलिस, सलवा जुडूम से जुड़े सुरक्षाकर्मियों और सुरक्षाबलों के भय का भी सामना करना पड़ता है. मीडियाकर्मी, मानवाधिकार कार्यकर्ता और वकील जब इस तरह के मामलों में हस्तक्षेप करते हैं, तो पुलिस उन्हें भी प्रताड़ित करती है.
एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में पेश सीबीआई की रिपोर्ट में बस्तर के आदिवासियों के खिलाफ हिंसा के लिए विशेष पुलिस अधिकारियों को जिम्मेवार बताया गया था. करीब छह साल पहले मार्च, 2011 में सुकमा जिले के ताड़मेटला, मोरपल्ली और तिम्मापुर में आदिवासियों के 252 घर जला दिये गये, कुछ महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएं हुईं और तीन आदिवासियों की हत्या भी कर दी गयी थी. तत्कालीन पुलिस अधिकारियों ने इन घटनाओं के लिए माओवादियों को जिम्मेवार ठहराते हुए इस मामले को वहीं रफा-दफा कर दिया था.
लेकिन जब इस मामले को लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय की प्राध्यापिका नंदिनी सुंदर और सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और उन्होंने इन घटनाओं के लिए पुलिस को जिम्मेवार ठहराया, तो अदालत के निर्देश पर सीबीआई जांच शुरू हुई. सीबीआई की जांच में इस मामले की पूरी सच्चाई सामने आ गयी. जांच के बाद आखिरकार सरकार को भी यह स्वीकार करना पड़ा कि आदिवासियों के उत्पीड़न की इन घटनाओं को विशेष पुलिस अधिकारी और सलवा जुडूम के लोगों ने अंजाम दिया था.
सीबीआई की चार्जशीट में जिन विशेष पुलिस अधिकारियों के नाम आये, सरकार को उन्हें निलंबित करना पड़ा. जिन सुरक्षाबलों का काम जनता की हिफाजत करना है, वही उनके साथ अत्याचार कर रहे हैं. राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन के ताजा आंकड़ों के मुताबिक पिछले एक साल में पुलिस के खिलाफ 206 मामले फर्जी मुठभेड़ के दर्ज किये गये, जिसमें 66 फर्जी मुठभेड़ों के साथ छत्तीसगढ़ पुलिस इस फेहरिस्त में अव्वल नंबर पर है.
बहरहाल, मीडिया में मामला आने के बाद राज्य के गृहमंत्री का कहना है कि मामले में नियमानुसार कार्रवाई की जायेगी. पूरे मामले की जांच की जायेगी और जो भी लोग इस घटना के जिम्मेवार होंगे, उनके खिलाफ कार्रवाई होगी. अगर सरकार इस मामले में वाकई संजीदा है, तो उसे इसकी तुरंत विस्तृत जांच करानी चाहिए और जो भी दोषी साबित हों, उन्हें बख्शा न जाये. पीड़ितों को महज मुआवजे से इंसाफ नहीं मिलेगा. दोषियों को सख्त सजा भी मिले, तभी पीड़ितों को सही इंसाफ मिलेगा.