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लोकतंत्र के मंदिरों की लुटती अस्मिता

लोकतंत्र का मंदिर माना जानेवाला संसद भवन आज उसी मंदिर के रखवालों के कुकृत्यों से शर्मसार है. वे हाथ जिन पर जनता अपना विश्वास जता कर इन सदनों में भेजती है, वही हाथ आज लोकसभा जैसे पवित्र स्थान में मिर्ची स्प्रे कर के उसकी अस्मिता को तार-तार करते हैं. जिन माननीयों के कंधों पर लोकतंत्र […]

लोकतंत्र का मंदिर माना जानेवाला संसद भवन आज उसी मंदिर के रखवालों के कुकृत्यों से शर्मसार है. वे हाथ जिन पर जनता अपना विश्वास जता कर इन सदनों में भेजती है, वही हाथ आज लोकसभा जैसे पवित्र स्थान में मिर्ची स्प्रे कर के उसकी अस्मिता को तार-तार करते हैं.

जिन माननीयों के कंधों पर लोकतंत्र की गरिमा बचाने की जिम्मेदारी होती है, वे कंधे उत्तर प्रदेश के विधानसभा में अंगोछे को मोहताज हो जाते हैं. अपनी बात मनवाने का यह अनैतिक आचरण लोकतांत्रिक भावनाओं पर कुठाराघात है.

विधायक होकर सदन के अध्यक्ष से र्दुव्यवहार, सभ्य समाज को कैसा संदेश देता है. मेरा सवाल है देश के प्रशासनिक व्यवस्था के इन सिरिफरे सिरमौरों से कि अगर यही तहजीब अगर हमारे सामाजिक मानसिकता में व्याप्त हुई तो क्या दशा हो जायेगी भारतवर्ष के लोकतांत्रिक विधि व्यवस्था की!

महेंद्र कुमार महतो, नावागढ़

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