चुनाव की वैकल्पिक प्रणाली
अपने देश में बहुदलीय चुनाव प्रणाली है. इसके चलते करीब 35} मत पानेवाला दल भी अक्सर बहुमत पा लेता है. प्राय: 60-65} मतदाता ही मतदान में हिस्सा लेते हैं. इस तरह कुल मतदाताओं के करीब 20-25% हिस्से का मत पाकर ही सत्ता में आ सकता है. इसीलिए प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी अपने कार्यकर्ताओं […]
अपने देश में बहुदलीय चुनाव प्रणाली है. इसके चलते करीब 35} मत पानेवाला दल भी अक्सर बहुमत पा लेता है. प्राय: 60-65} मतदाता ही मतदान में हिस्सा लेते हैं. इस तरह कुल मतदाताओं के करीब 20-25% हिस्से का मत पाकर ही सत्ता में आ सकता है.
इसीलिए प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी अपने कार्यकर्ताओं को कहते हैं कि सिर्फ 20 करोड़ वोट पक्के करो और हम जीत जायेंगे.जबकि देश में 80 करोड़ से ज्यादा मतदाता हैं. इस विसंगति के लिए बहुदलीय प्रणाली को दोष दिया जाता है, लेकिन क्या दो-दलीय प्रणाली इस समस्या का हल हो सकती है? आइए दो दलीय प्रणाली का एक उदाहरण देखें. मान लीजिये कि एक देश में दो ही दल हैं, जिनका नाम क्र मश: ‘अ’ और ‘ब’ है. इस देश में 100 सीटें हैं.
शत-प्रतिशत मतदान होता है. कोई भी मत अवैध नहीं होता है. अब मान लीजिए कि दल अ को 51 सीटों पर 51% मत प्राप्त होता है और बाकी सीटों पर शून्य मत प्राप्त हुआ. इस तरह अ को 51 सीटें मिल जायेंगी. यानी महज 26-27} मत पाकर ही अ दल चुनाव जीत जायेगा, जबकि ब 73-74} मत पाकर भी चुनाव हार जायेगा.
एक विकल्प समानुपातिक मतदान का है. इस पद्धति में अगर पार्टी अ को 40} मत मिलता है तो उसे 40 सीटें मिलेंगी तथा पार्टी ब को बाकी 60} मत मिलता है तो उसे 60 सीटें मिलेंगीं. यह पद्धति अपेक्षाकृत बेहतर लगती है. लेकिन इसमें पार्टियों को चुनाव के पहले ही वरीयता क्रम में अपने प्रत्याशियों की घोषणा करनी पड़ेगी. लेकिन इस पद्धति में एक गड़बड़ हो सकती है कि राज्य/देश के सभी क्षेत्रों को प्रतिनिधित्व न मिले. एक बढ़िया विकल्प समानुपातिक और क्षेत्रवार पद्धति भी है. क्या देश इसके लिए तैयार हो सकता है!
चक्रपाणि सिंह, हटिया, रांची