।। सुधांशु रंजन ।।
वरिष्ठ टीवी पत्रकार
अपराध की घटनाओं में यदि राजनीति का प्रवेश होगा, तो अपराध पर नियंत्रण असंभव हो जायेगा. परंतु जैसा कि एक अमेरिकी जज ने कहा कि इसे खत्म करने का तात्पर्य अपराधियों को एक जीवन बीमा देना होगा कि वे चाहे जैसा भी जघन्य अपराध करें, उन्हें मारा नहीं जायेगा.
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के मामले में तीन दोषी वी श्रीहरन उर्फ मुरूगन, टी सुथेंद्रराजा उर्फ संतन तथा एजी पराटिवलन उर्फ अरिंकुट की मृत्युदंड की सजा को आजीवन कारावास में बदलने का उच्चतम न्यायालय का निर्णय हैरान करनेवाला नहीं है. अगर कुछ हैरतअंगेज है, तो इसके बाद की राजनीति. वैसे भारत में हर मामले का राजनीतिक लाभ उठाने की जो होड़ राजनीतिक दलों तथा नेताओं में होती है, उसे देखते हुए यह राजनीति भी चौंकानेवाली नहीं है.
तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे जयललिता ने फैसले के अगले दिन ही घोषणा कर दी कि राजीव गांधी हत्या मामले में इन तीनों तथा आजीवन कारावास भुगत रहे अन्य चार को तीन दिनों के अंदर रिहा कर दिया जायेगा. फिलहाल उच्चतम न्यायालय ने इस पर रोक लगा दी.
हैरतअंगेज इस मामले में यह है कि जयललिता हमेशा एलटीटीइ का विरोध करती रही हैं और ये सभी अभियुक्त उस संगठन के सदस्य हैं. अब वह तमिल भावना की लहर पर सवार होकर कांग्रेस एवं डीएमके को राजनीतिक शिकस्त देने में जुट गयी हैं. आनन-फानन में उन्होंने स्थापित प्रक्रिया का भी खयाल नहीं रखा. अपराध प्रक्रिया विधान की धारा 435 के तहत क्षमा देने के लिए अनुशंसा सलाहकार बोर्ड को करनी होती है.
तमिलनाडु में इसके सदस्य हैं जेल के अतिरिक्त महानिदेशक, मुख्य परिवीक्षा (प्रोवेशन) अधीक्षक एवं उस जेल के अधीक्षक जहां संबद्घ दोषी कैद हैं. बोर्ड अपनी अनुशंसा राज्य सरकार को भेजती है, जिसे मानने को वह बाध्य नहीं है. यदि राज्य सरकार उसे स्वीकार करती है तो, वह अनुशंसा केंद्र के पास भेजती है. केंद्रय गृह मंत्रालय इस पर निर्णय लेकर राज्य को जवाब देता है. केंद्र का निर्णय मानने को राज्य सरकार बाध्य नहीं है, क्योंकि राज्य को केवल केंद्र से परामर्श करनी है.
राज्य सरकार ने इन तीनों के अलावा आजीवन कारावास काट रह चार अन्य कैदियों-नलिनी, रॉबर्ट वायस, जयकुमार एवं रविचंद्रन-को भी छोड़ने का ऐलान किया. यह समझ से परे है कि इन चार के बारे में राज्य सरकार तब चिंतित क्यों हुई, जब बाकी तीनों के मृत्युदंड को सर्वोच्च न्यायालय ने आजीवन कारावास में बदल दिया. जहां तक यह तर्क है कि ये सभी 23 वर्षो से जेल की सलाखों के पीछे हैं, तो ऐसे सैंकड़ों अन्य सभी तमिलनाडु की जेलों में सड़ रहे हैं. उन पर राज्य सरकार की नजर क्यों नहीं जाती?
अपराध की घटनाओं में यदि राजनीति का प्रवेश होगा, तो अपराध पर नियंत्रण असंभव हो जायेगा. मृत्युदंड की वैधता पर मानवाधिकार कार्यकर्ता लगातार सवाल खड़े करते रहे हैं और इसे खत्म करने की मांग करते हैं. परंतु जैसा कि एक अमेरिकी जज ने कहा कि इसे खत्म करने का तात्पर्य अपराधियों को एक जीवन बीमा देना होगा कि वे चाहे जैसा भी जघन्य अपराध करें, उन्हें मारा नहीं जायेगा. मृत्युदंड पर सुप्रीम कोर्ट लगातार अपनी व्याख्या दे रहा है.
उसने स्पष्ट किया उसकी शक्ति सीमित है और वह राष्ट्रपति की शक्ति पर सवाल नहीं उठा रहा है. उसने व्यवस्था दी कि यह तय करने का अधिकार अदालत को है कि मौलिक अधिकार क्या है और उसकी रक्षा कैसे हो. इसी शक्ति का प्रयोग करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि मृत्युदंड की सजा पाये दोषियों को भी संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत व्यक्तिगत आजादी एवं जीवन का अधिकार प्राप्त है और फांसी के विलंब से इस अधिकार का उलंघन होता है.
उसने एक और महत्वपूर्ण व्यवस्था दी कि विलंब के बारे में निर्णय लेते वक्त अपराध की प्रकृति पर विचार करना प्रासंगिक नहीं है.
उम्मीद की जानी चाहिए कि इन निर्णयों से अब क्षमा याचिकाओं का निष्पादन त्वरित गति से होगा. 1983 में ही उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि ऐसी हर याचिका पर निर्णय तीन महीने के अंदर हो जाना चाहिए. यदि कांग्रेसनीत सरकार में राजीव गांधी हत्या के दोषियों की क्षमा याचिकाएं 11 वर्ष तक गृह मंत्रालय में पड़ी रहती हैं, तो अन्य मामलों में क्या होगा?
मानवाधिकार कार्यकताओं के इस तर्क में दम है कि फांसी की सजा पानेवाले अधिकतर विपन्न होते हैं, जो ढंग से अपना बचाव नहीं कर पाते. कई बार व्यक्ति हताशा में हत्या करता है, क्योंकि उसे कहीं से न्याय नहीं मिलता. मई 2010 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने आर गोविंदासामी को क्षमा दान दिया. वह 22 वर्षो से कोयम्बटूर जेल में बंद था.
गोविंदासामी के चाचा ने उसके मां-बाप को सताया था और जबरन कागज पर दस्तखत करा कर उनकी जायदाद हड़प ली थी, जिससे क्रोध में आकर सामी ने चाचा की हत्या कर दी.
दया याचिकाओं का शीघ्र निष्पादन होना चाहिए. इस पर राजनीति उचित नहीं है. अफजल गुरु के मामले में यह खुलासा हुआ कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने दिल्ली सरकार पर दबाव दिया कि उस पर कोई निर्णय तुरंत न लिया जाये. आतंकवाद एवं अपराध की घटनाओं पर राजनीति राष्ट्रीय जुर्म है.