भयावह गैर-बराबरी

कहा तो यही जाता है कि कोई समाज आजादी, बराबरी और भाईचारे को अपने रोजमर्रा के जीवन की सच्चाई बनाना चाहता है, तो उसके लिए लोकतांत्रिक राज्य-व्यवस्था से बेहतर कोई विकल्प नहीं है. लेकिन, असल में दुनिया में एक तरफ तो लोकतांत्रिक शासन का दायरा बड़ा हो रहा है, तो दूसरी तरफ अदने और अव्वल […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 17, 2017 6:31 AM
कहा तो यही जाता है कि कोई समाज आजादी, बराबरी और भाईचारे को अपने रोजमर्रा के जीवन की सच्चाई बनाना चाहता है, तो उसके लिए लोकतांत्रिक राज्य-व्यवस्था से बेहतर कोई विकल्प नहीं है.
लेकिन, असल में दुनिया में एक तरफ तो लोकतांत्रिक शासन का दायरा बड़ा हो रहा है, तो दूसरी तरफ अदने और अव्वल हर लोकतंत्र में गैर-बराबरी भी तेजी से बढ़ रही है. यह गैर-बराबरी राजनीतिक आजादी को बेमानी बना रही है. अंतरराष्ट्रीय संस्था ऑक्सफेम की एक रिपोर्ट बताती है कि दुनिया के सबसे गरीब 3 अरब 60 करोड़ लोगों के पास जितनी धन-संपत्ति है, उससे कहीं ज्यादा तो केवल आठ कारोबारियों की तिजोरी में जमा है. और, इन आठ में छह अकेले अमेरिका के हैं. एक तथ्य यह भी है कि दुनिया की ज्यादातर संपत्ति का मालिकाना लगातार कम से कमतर हाथों में सिकुड़ता जा रहा है.
वर्ष 2010 में दुनिया के कुल 43 कारोबारियों की कुल संपदा दुनिया के 50 फीसद आबादी की संपदा के बराबर थी, जबकि 2015 में यह संपदा महज 19 कारोबारियों के हाथ में सिमट गयी. जो स्थिति विश्वस्तर पर है, करीब वही हालात दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में भी है. इस रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के 57 उद्योगपतियों की तिजोरी का वजन देश की 70 फीसदी आबादी की कुल संपत्ति से ज्यादा है. यहां भी धन कम से कमतर लोगों के हाथ में केंद्रित होता जा रहा है. आज भारत में किसी आइटी कंपनी के सीइओ की आमदनी उस कंपनी के किसी मंझोले दर्जे के कर्मचारी से 416 गुना अधिक है.
वर्ष 1988 से 2011 के बीच भारत की 10 फीसदी सबसे गरीब आबादी की आमदनी में एक फीसदी सालाना की दर से वृद्धि हुई, जबकि इसी अवधि में सर्वाधिक धनी 10 फीसदी की आमदनी में सालाना 25 फीसदी की दर से इजाफा हुआ. बात चाहे फैसला लेने की ताकत की हो, या फिर बेहतरी के अवसर और धन जुटाने की हो, दुनिया के चंद लोग आज पूरी मानवता को अपनी मुट्ठी में कर लेने की हैसियत में आ गये हैं. स्थिति की इसी भयावहता के बीच हर देश के लोग अपने भविष्य को लेकर आशंकित हैं.
ऐसे लोग लोकतांत्रिक तरीके से ऐसे राजनेता चुन रहे हैं, जो लोगों को सुरक्षा देने का वादा करके सत्ता में आते हैं और सबसे पहला काम लोगों के अधिकारों में कटौती के रूप में करते हैं. उम्मीद है कि विश्व के शीर्ष नेताओं और कारोबारियों की दावोस में होने जा रही वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की बैठक में इस गैर-बराबरी को पाटने के उपायों पर गंभीर विचार-विमर्श किया जायेगा.

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