सत्य प्रकाश चौधरी
प्रभात खबर, रांची
पप्पू पनवाड़ी अभी ‘आप’ की दुकान में नींबू-मिर्च की लटकन बदल ही रहे थे कि रुसवा साहब आ पहुंचे. बोहनी के उत्साह में पप्पू फौरन पान लगाने बैठ गये. रुसवा साहब ने भी समय का सदुपयोग करने की गरज से मुफ्त की सलाह टिकायी, ‘‘भाई, नींबू-मिर्च दुकान में नहीं, केजरीवाल साहब की तसवीर के नीचे लटकाओ, शायद उन पर कुछ कृपा आनी शुरू हो जाये.’’
पप्पू ने जवाब दिया, ‘‘आप तो पढ़े-लिखे आदमी हैं. इतना भी नहीं समझते कि अंबानी से पंगा लिया है, तो कृपा कहां से आयेगी? नींबू-मिर्ची तो बस ‘आम आदमी’ की नजर से बचा सकती है.’’ यह कहते हुए पप्पू की आवाज किसी तेल के कुएं में डूबती हुई मालूम पड़ रही थी. इस बीच पान लग गये.
पप्पू ने कहा, ‘‘पहले चाय पी लीजिए, पान बांध देता हूं.’’ रुसवा साहब बोले, ‘‘वैसे तो चाय पीना अब एक सियासी काम है, पर तुम कहते हो तो पी लेता हूं.’’ पप्पू ने सामने स्थित ‘नमो टी स्टाल’ के मालिक राजू को आवाज दी और उंगलियों से विजय चिह्न् जैसा बनाया. अच्छा हुआ कि वहां कोई पत्रकार मौजूद नहीं था, नहीं तो फौरन भागता हुआ जाता और एक रिपोर्ट फाइल करता कि अब चाय और पान वाले भी ‘विजय चिह्न्’ बना कर नरेंद्र मोदी की विजय का संकेत दे रहे हैं. वह यह सोचने की जहमत ही नहीं उठाता कि ‘विजय चिह्न्’ दो प्याली चाय का भी इशारा हो सकता है. रुसवा साहब ने पप्पू को डपटा, ‘‘बेड़ा गर्क! एक तो चाय, ऊपर से नमो टी स्टाल की!’’ पप्पू ने कहा, ‘‘चुपचाप पी लीजिए.
मैं कौन किसी से कहने जा रहा हूं.’’ फिर वह रुसवा साहब को छेड़ने की मंशा से गुनगुनाने लगे- चाय को चाय ही रहने दो, कोई नाम न दो.. यह सब चल ही रहा था कि मुन्ना बजरंगी आ पहुंचे. पता चला कि वह कल शाम को ही दिल्ली से लौटे हैं. रुसवा साहब ने पूछा, ‘‘और मियां! क्या करने गये थे वहां?’’ मुन्ना थोड़ा उखड़ गये, ‘‘मियां तो आप लोग होते हैं, हमको काहे कह रहे हैं.. वहां गये थे हम गो-हुंकार रैली में.
देश-दुनिया, राजनीति, समाज, सब तभिए सुधरेगा जब गऊ माता की रक्षा होगी. और गऊ माता की रक्षा तभी होगी, जब मोदी जी पीएम बनेंगे.’’ रुसवा साहब बोले, ‘‘तो सीधे-सीधे कहो न कि रैली मोदी जी के लिए थी, उसमें गाय को क्यों घसीट रहे हो?’’ मुन्ना ने कहा, ‘‘गाय नहीं, गऊ माता कहिए. अभियो समय है, गऊ माता का इज्जत करना सीख लीजिए. हम लोग किसी के खिलाफ नहीं है, लेकिन आप लोग गऊ माता को छोड़ नकली सेकुलर लोगों की पूंछ पकड़ने में लगे रहते हैं.’’ रुसवा साहब कुछ नहीं बोले.
उनके दिल में एक अनजान खौफ समा गया. तभी पप्पू ने मुन्ना को टोका, ‘‘अच्छा ये बताइए कि गो-हुंकार का क्या मतलब है? हम तो बचपन से गाय को रंभाते ही सुन रहे हैं. वो हुंकार कब से भरने लगी?’’ मुन्ना बजरंगी ठठा कर हंसे, ‘‘सब मोदी जी के हुंकार का प्रताप है. देखिए, आगे-आगे होता है क्या..’’