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विकास की एक नयी दिशा

।। डॉ भरत झुनझुनवाला ।। अर्थशास्त्री वर्तमान विकास मॉडल हाइड्रोपावर तथा मैन्यूफैरिंग पर आधारित है. नदियों को बांध कर बिजली बनायी जायेगी. इस मॉडल में पहली समस्या है कि हाइड्रोपावर बनाने में पहाड़ कमजोर हो रहे हैं और आपदा को न्योता दे रहे हैं. प्राकृतिक आपदाएं आती रहती हैं. जो समाज इन आपदाओं से सीख […]

।। डॉ भरत झुनझुनवाला ।।

अर्थशास्त्री

वर्तमान विकास मॉडल हाइड्रोपावर तथा मैन्यूफैरिंग पर आधारित है. नदियों को बांध कर बिजली बनायी जायेगी. इस मॉडल में पहली समस्या है कि हाइड्रोपावर बनाने में पहाड़ कमजोर हो रहे हैं और आपदा को न्योता दे रहे हैं.

प्राकृतिक आपदाएं आती रहती हैं. जो समाज इन आपदाओं से सीख लेकर अपना रास्ता बदल लेता है, वह अगले चरण में और ऊंचाई को प्राप्त होता है. हमारे पूर्वजों ने घघ्घर नदी के किनारे कालीबंगा जैसे विशाल शहर बसाये. तब घघ्घर पानी से लबालब रहती थी. सतलज और यमुना घघ्घर में मिलती थीं. समय बदला, पानीपत और चंडीगढ़ के बीच जमीन ऊंची हो गयी. सतलज का जल ब्यास को चला गया और यमुना का गंगा को.

घघ्घर कमजोर पड़ गयी. पूर्वजों ने प्रकृति के इशारे को समझा. वे घघ्घर से उठ कर गंगा घाटी में आ बसे. यहां उन्होंने पूर्व से बड़े पाटलीपुत्र जैसे समृद्घ शहर बसाये.

पहले बिहार में बाढ़ के पानी के उतरने के बाद बीज छींट दिये जाते थे और फसल बिना परिश्रम के तैयार हो जाती थी. बाढ़ से जल का पुनर्भरण होता है और सिंचाई का विस्तार होता है. एशियन डेवलपमेंट बैंक ने हिदायत दी है कि इन लाभ पर ध्यान देना चाहिए. डैम और बंधे बना कर नदी को बांधने का दुस्साहस करने के स्थान पर प्रकृति के साथ जीना चाहिए. दुर्भाग्य है कि गत वर्ष आयी आपदा से सीख लेने के स्थान पर हमारे वैज्ञानिकों का एक वर्ग इस आपदा को लाने में हुए मनुष्य के योगदान को झुठलाने में लगा हुआ है.

मनुष्य का पहला योगदान टिहरी झील का है. अध्ययनों में पाया गया है कि चीन में थ्री गाज्रेस बांध की झील बनने के बाद 100 किमी दूर क्विनलिंग पहाड़ के पास वर्षा में भारी वृद्घि हुई है. कारण यह कि वाष्पीकरण ज्यादा होता है. संभव है कि टिहरी बांध से हुए वाष्पीकरण से केदारनाथ में वर्षा अधिक हुई हो, जिसके कारण आपदा आयी थी.

वैज्ञानिक स्वीकार करते हैं कि ब्राजील में 90 बांधों के अध्ययन में अवश्य पाया गया था कि वाष्पीकरण और वर्षा में वृद्घि हुई है, परंतु कुतर्क देते हैं कि 90 बांध के दुष्प्रभाव के आधार पर अकेले टिहरी के दुष्प्रभाव को नहीं माना जा सकता है.

आपदा को आमंत्रित करने में मनुष्य का दूसरा योगदान सड़कों तथा हाइड्रोपावर परियोजनाओं की सुरंगों को बनाने के लिए किये जा रहे विस्फोट हैं. इन विस्फोटों के कारण पहाड़ की सतह पर जमी हुई मिट्टी कमजोर पड़ती है. भारी वर्षा को सहन करने की क्षमता इसमें नहीं रह जाती. परंतु हमारे कुछ वैज्ञानिकों का तर्क है कि खान सुरक्षा निदेशालय द्वारा बताये गये नियमों के अनुसार ही विस्फोट किये गये हैं.

इन्हें समझ नहीं आ रहा है कि खान सुरक्षा निदेशालय द्वारा बनाये गये मानक मकानों के लिए हैं न कि सतही मिट्टी के लिए. भूमिगत खान के लिए बनाये गये मानक पहाड़ी सुरंगों पर लागू नहीं होते, चूंकि पहाड़ की एक सतह खुली हुई होती है, जबकि भूमिगत खान चारों तरफ से बंद होती है.

तीसरा योगदान सड़कों और जलविद्युत परियोजनाएं बनाने में निकली गाद को नदी में झोंकना है. भारी वर्षा के दौरान यह गाद नदी में बह गयी और नदी के पाट पर जम गयी. नदी का जलस्तर ऊंचा हो गया और किनारे पर बसे गांव जल में समा गये. इसे स्वीकार करने के स्थान पर वैज्ञानिक इस गणित में लगे हुए हैं कि गाद की मात्र कितनी थी और जलस्तर कितना बढ़ा. गंदा पानी पीने से आदमी बीमार होता है.

इसे स्वीकारने के स्थान पर वैज्ञानिक कह रहे हैं कि मरीज ने कम मात्र में ही गंदा पानी पिया था, इसलिए उसके रोग का कारण अन्यत्र है. हमें वैज्ञानिकों की इस पैंतरेबाजी से भ्रमित नहीं होना चाहिए. पहला सुझाव जीवन शैली का है. कमजोर हिमालयी पहाड़ों में हेलीकाप्टर, सेंट्रल हीटिंग, फाइव स्टार रेस्तरां इत्यादि से स्थानीय पर्यावरण पर बोझ बढ़ रहा है. हमें चाहिए कि पहाड़ी क्षेत्रों में ऐसी सुविधाओं पर प्रतिबंध लगायें.

वर्तमान विकास मॉडल हाइड्रोपावर तथा मैन्यूफैरिंग पर आधारित है. नदियों को बांधकर बिजली बनायी जायेगी. इस मॉडल में पहली समस्या है कि हाइड्रोपावर बनाने में पहाड़ कमजोर हो रहे हैं और आपदा को न्योता दे रहे हैं. वर्तमान में देश का आर्थिक विकास मुख्यत: सर्विस सेक्टर में हो रहा है. मैन्यूफैरिंग का भविष्य कमजोर है.

उत्तराखंड में उद्योग मुख्यतया टैक्स का लाभ उठाने के लिए आ रहे हैं. उत्तराखंड को चाहिए कि शिक्षा, स्वास्थ एवं सॉफ्टवेयर जैसे उद्योगों को प्रोत्साहन दे, जिनमें बिजली की खपत कम है. उत्तराखंड की सुहावनी घाटियों में ये उद्यम खूब फले-फूलेंगे. लेकिन यदि मैन्यूफैरिंग को पकड़े रहेंगे तो 25 साल बाद इंडस्ट्रियल एस्टेटों के कब्रिस्तान मात्र हाथ आयेंगे.

अपनी जरूरत भर के लिए उत्तराखंड को हाइड्रोपावर बनाना चाहिए. गृहिणी घर का भोजन बना प्रसन्न रहती है, कामर्शियल टिफिन बना कर नहीं. इसी प्रकार उत्तराखंड की नदियां बिजली की घरेलू जरूरत की पूर्ति प्रसन्नता पूर्वक करेंगी. इस बिजली को नदी के प्रवाह को बिना रोके बनाना चाहिए. किनारे ठोकर बना कर नदी का थोड़ा पानी बिजली बनाने के लिए निकाल लेना चाहिए. वर्तमान आपदा से विकास की दिशा परिवर्तन कर लेंगे, तो हम लंबे समय तक आगे और ऊंचे बढ़ेंगे.

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