अकर्मण्यता को सबक

नौकरशाही को शासन का स्टील फ्रेम यानी लौह ढांचा कहा जाता है. इसी तंत्र के जरिये सरकारें अपनी नीतियां और कार्यक्रम तैयार करती हैं तथा उन्हें अमली जामा पहनाती हैं. लेकिन, इस ढांचे में लचरता, लापरवाही, भ्रष्टाचार जैसे नकारात्मक तत्वों ने गहरी जड़ें जमा ली हैं. व्यवस्था पर मजबूत पकड़ और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 19, 2017 6:12 AM
नौकरशाही को शासन का स्टील फ्रेम यानी लौह ढांचा कहा जाता है. इसी तंत्र के जरिये सरकारें अपनी नीतियां और कार्यक्रम तैयार करती हैं तथा उन्हें अमली जामा पहनाती हैं. लेकिन, इस ढांचे में लचरता, लापरवाही, भ्रष्टाचार जैसे नकारात्मक तत्वों ने गहरी जड़ें जमा ली हैं.
व्यवस्था पर मजबूत पकड़ और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण खराब अधिकारियों पर कार्रवाई भी कम ही हो पाती है. ऐसे में केंद्र सरकार ने भारतीय पुलिस सेवा के दो वरिष्ठ अधिकारियों को कार्यकाल पूरा होने से पहले अनिवार्य तौर पर सेवानिवृत्त कर केंद्रीय सेवाओं के अधिकारियों को कड़ा संदेश दिया है. मयंक शील चौहान और राज कुमार देवांगन पर अकर्मण्यता और कोताही का आरोप है. इन अधिकारियों को कार्यकाल के दौरान गलत आचरण के लिए विभागीय स्तर पर दंडित भी किया जा चुका है. किसी वरिष्ठ अधिकारी को जबरन हटाये जाने की ऐसी कार्रवाई तकरीबन दो दशक बाद हुई है. अखिल भारतीय सेवा नियम, 1958 के तहत यह फैसला लिया गया है. इन सेवाओं में किसी अधिकारी के 15 और 25 वर्ष की सेवा पूरी होने और 50 वर्ष की उम्र होने पर कार्यकाल की समीक्षा का प्रावधान है.
बहरहाल, सेवा से हटाने के इस फैसले से उन अधिकारियों को जरूर सबक मिलेगा, जो अपनी महत्वपूर्ण जिम्मेवारी को लेकर अगंभीर रहते हैं तथा अधिकारों और सुविधाओं का बेजा इस्तेमाल करते हैं. इस संदर्भ में यह भी उल्लेखनीय है कि उच्चाधिकारियों के विरुद्ध जांच करने और मुकदमा चलाने के लिए केंद्र की मंजूरी लेनी होती है. ऐसे निर्णयों को पहुंच रखनेवाले अधिकारी प्रभावित करते हैं, जिससे न्याय की राह में अवरोध पैदा होता है. ऐसे विशेषाधिकारों की समीक्षा होनी चाहिए. अक्सर देखा गया है कि बड़े अधिकारियों की गलती की सजा अधीनस्थ कर्मचारियों को भुगतनी पड़ती है. पारदर्शिता के अभाव में सच कहीं ओझल हो जाता है.
केंद्रीय सेवाओं की रूप-रेखा का आधार आज भी औपनिवेशिक दौर के कायदे-कानून हैं और आजादी के बाद उनमें मामूली बदलाव ही किये गये हैं. लोकतांत्रिक प्रणाली की सफलता के लिए जवाबदेही एक बुनियादी शर्त है. केंद्रीय सेवाओं की खामियों को सुधारने के लिए राजनीतिक नेतृत्व को आगे आना होगा, क्योंकि खराब और भ्रष्ट अधिकारियों को राजनीतिक संरक्षण मिलने के अनेक मामले हमारे सामने हैं.

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