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लंबित मामलों का सिलसिला

सर्वोच्च न्यायालय समेत देश के विभिन्न न्यायालयों में जजों की कमी और बढ़ते लंबित मामलों का मुद्दा पिछले साल भर चर्चा के केंद्र में बना रहा था. गत वर्ष मात्र नौ महीनों में यानी जनवरी से सितंबर के बीच सर्वोच्च न्यायालय में 45,415 दीवानी और 13,973 आपराधिक मामले दायर किये गये. सितंबर माह के अंत […]

सर्वोच्च न्यायालय समेत देश के विभिन्न न्यायालयों में जजों की कमी और बढ़ते लंबित मामलों का मुद्दा पिछले साल भर चर्चा के केंद्र में बना रहा था. गत वर्ष मात्र नौ महीनों में यानी जनवरी से सितंबर के बीच सर्वोच्च न्यायालय में 45,415 दीवानी और 13,973 आपराधिक मामले दायर किये गये. सितंबर माह के अंत तक कुल लंबित मामलों की संख्या 60,938 पहुंच चुकी थी. देश के गणतंत्र बनने के दो दिन बाद 28 जनवरी, 1950 को एक प्रधान न्यायाधीश सहित आठ न्यायाधीशों के साथ सर्वोच्च न्यायालय का गठन हुआ और साथ ही संविधान में उल्लिखित इसके महत्वपूर्ण कार्यों को भी तय कर दिया गया था.
मसलन, मौलिक अधिकारों और संवैधानिक महत्व से जुड़े मामलों व सामान्य महत्व के कानूनों पर सवाल करने जैसे कार्य निर्धारित किये गये. अनुच्छेद-136 के तहत किसी भी न्यायालय या न्यायाधिकरण के विशेष फैसले पर सुनवाई करने के अधिकार को भी अधिकारों में शामिल किया गया. माना गया कि प्रतिवादियों के सामान्य मामलों के बजाय अति विशेष मामले ही सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निपटाये जायेंगे. लेकिन, सात दशकों में संवैधानिक और राष्ट्रीय महत्व से जुड़े मसलों से कई गुना ज्यादा सामान्य मामलों से जुड़ी अपीलें सर्वोच्च न्यायालय के दरवाजे पर पहुंची. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी भारतीय न्यायपालिका की वार्षिक रिपोर्ट 2015-16 के अनुसार, गठन के पहले वर्ष आठ न्यायाधीशों के समक्ष 1,215 मामले आये और बीते वर्ष सर्वोच्च न्यायालय में दायर होनेवाले मामलों की संख्या 59,386 हो चुकी थी. फिलहाल, सर्वोच्च न्यायालय में 1950 की तुलना में लंबित मामलों की संख्या 88 प्रतिशत ज्यादा हो चुकी है. सर्वोच्च न्यायालय में जजों की संख्या अब 31 है, लेकिन अपेक्षाकृत लंबित मामले बहुत अधिक हैं. सर्वोच्च न्यायालय के अलावा देश 24 उच्च न्यायालयों में 40.54 लाख और जिला न्यायालयों में 2.81 करोड़ मामले न्याय की प्रतीक्षा में हैं.
गत वर्ष दो जजों की एक खंडपीठ ने भी इस बात पर चिंता जाहिर की थी कि सामान्य मामलों से जुड़ी अपीलों की बढ़ती संख्या सर्वोच्च न्यायालय को संविधान द्वारा प्रदत्त कार्यों के निर्वाह करने की राह में बड़ी बाधा हैं. देश के अलग-अलग हिस्सों में विभिन्न शाखाओं के साथ अपील के लिए एक राष्ट्रीय न्यायालय की गठन के प्रस्ताव पर कवायद लंबे समय से चल रही है. कुछ ऐसी ही सकारात्मक पहलों से सर्वोच्च न्यायालय पर लंबित मामलों के बोझ का हल्का किया जा सकता है. लंबित मामलों से निपटने और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के न्यायपालिका में बड़ी उम्मीदों का बोझ उठाने के लिए नये सिरे से सुधारात्मक पहल की जरूरत है.

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