ये प्यार, कमबख्त प्यार

वीर विनोद छाबड़ा व्यंग्यकार कमबख्त प्यार भी क्या चीज है? न सोने देता है और न आराम करने देता है. ये दीवाना भी है और मस्ताना भी. ओमपुरी भी एक फिल्म में डायलॉग मार गये हैं- जिंदगी में एक बार प्यार जरूर करना चाहिए. यह आदमी को इंसान बनाता है. दूसरों के प्यार से जलनेवाले […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 23, 2017 6:10 AM
वीर विनोद छाबड़ा
व्यंग्यकार
कमबख्त प्यार भी क्या चीज है? न सोने देता है और न आराम करने देता है. ये दीवाना भी है और मस्ताना भी. ओमपुरी भी एक फिल्म में डायलॉग मार गये हैं- जिंदगी में एक बार प्यार जरूर करना चाहिए. यह आदमी को इंसान बनाता है.
दूसरों के प्यार से जलनेवाले कहते हैं- दिल लगा गधी से तो परी क्या चीज है. अरे मोहब्बत अंधी होती है. अपने आइटम पर सबको गरूर होता है. महबूब मेरे, महबूब मेरे, तू है तो दुनिया कितनी हसीं है, जो तू नहीं तो कुछ भी नहीं है… प्यार में डूबे को चारों ओर फैली गंदगी भी नजर नहीं आती और न महंगाई. बुल्ले शाह कहता है कि बेशक मंदिर-मसजिद तोड़ो, मगर प्यार भरा दिल कभी न तोड़ो, इस दिल में दिलबर रहता.
दीवानों ने मोहब्बत की याद में ताजमहल बनवा कर सारी दुनिया को मोहब्बत की निशानी दी है. मगर साथ ही हम गरीबों की मोहब्बत का मजाक भी उड़ाया है. कितनी महंगी है मोहब्बत. आजकल के दीवाने को डर लगता है कि इतना महंगा गिफ्ट कैसे देगा?
ये दिल किसी मुल्क का तख्त नहीं, जिस पर मोहब्बत के सिवा किसी अन्य का राज चले. सख्त दिलवालों को इस डायलॉग में बगावत की बू आती है. अरे कभी की हो तो पता चले. पत्थर दिल वाले क्या जानें.
इसमें मनुहार बहुत है. हमीं से मोहब्बत हमीं से लड़ाई हमें मार डाला दुहाई दुहाई. ये मेरा प्रेमपत्र पढ़ कर नाराज ना होना कि तुम मेरी जिंदगी हो.
प्यार की तुलना हमेशा चांद सितारों से की गयी. चांद सी महबूबा हो मेरी कब ऐसा मैंने सोचा था, हां तुम भी बिलकुल वैसी हो, जैसा मैंने सोचा था. ओ तुझे चांद के बहाने देखूं कि छत पर आ जा गोरिये.
फूल तुम्हें भेजा है खत में फूल नहीं मेरा दिल है. फूलों के रंग से दिल की कलम से लिखी रोज तुम्हें पाती. लिखे जो खत तुझे वो तेरी याद में हजारों रंग के नजारे बन गये, सवेरा जब हुआ तो फूल बन गये, जो रात आयी तो सितारे बन गये.
ये प्यार इंतजार बहुत कराता है. एक सेकेंड लाख साल के बराबर महसूस होता है. बड़ी ताकत होती है इसमें. ऊपर वाले से भी टकरा जाये. बड़ी कशिश है यारों प्यार में. जिंदाबाद जिंदाबाद, ऐ मोहब्बत तू जिंदाबाद.
मगर ट्रेजडियां भी खूब रही हैं. सस्सी-पुन्नू, रोमियो-जूलिएट, शीरीं-फरहाद, लैला-मजनू, सोहनी-महिवाल आदि. कोई नहीं सफल हुआ.
माहौल भारी हो गया तो एक साहब ने लतीफा सुना डाला. एक किशोर मां से पूछता है कि प्यार सचमुच में अंधा हो जाता है. शंकित मां गुस्सा होती है. किसने कहा? कौन डायन पड़ी है तेरे पीछे? आजकल की चुड़ैलों से बच कर रहना. पैसे की भूखी हैं सब की सब. तू बस पढ़ाई पर ध्यान दे. किशोर बेटा बताता है. मुझे किसी से प्यार-व्यार नहीं हुआ. वो तो पापा कह रहे थे कि आप दोनों का प्रेम-विवाह हुआ था.
बंदा भी यादों की गलियों में खो गया. मजाक-मजाक में प्रेमिका को कह दिया था कि उसकी शादी तय होने जा रही है. मजबूरी है. मां की पसंद है वो. कसम दी है कि मना करोगे, तो मरा मुंह देखो. प्रेमिका उदास होकर चली गयी थी. प्रेमिका को मनाने के लिए उसके घर के कई चक्कर काटे. एक दिन पता चला कि प्रेमिका ने तो कबका शहर छोड़ दिया है.
बंदे ने आस नहीं छोड़ी. शहर-शहर और गली-गली भटकता फिरा. उसने शादी भी नहीं की. दस बरस गुजर गये. एक दिन अचानक प्रेमिका बाजार में मिल गयी. दो बच्चे थे साथ में और हैंडसम पति भी. लेकिन, बहुत याद दिलाने के बावजूद उसने पहचाना नहीं. बंदे के दिल को बहुत धक्का लगा. जमीन से उसके पैर जैसे चिपक गये हों. बंदे ने साफ-साफ सुना. प्रेमिका अपने पति को सफाई दे रही थी- कोई पागल लगता है.

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