प्रधान संपादक की कलम से : मोदी का सबसे बड़ा सियासी इम्तिहान है यूपी चुनाव

हर चुनाव राजनीति को एक नया संदेश देकर जाता है. बिहार और दिल्ली के चुनाव नतीजों ने नरेंद्र मोदी के चुनावी अश्वमेध पर लगाम लगा दी थी. उत्तर प्रदेश के चुनाव नतीजे इस अश्वमेध को पूरी तरह थाम सकते हैं और या फिर मोदी को नयी ऊंचाइयों पर पहुंचा सकते हैं. यही वजह है कि […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 29, 2017 1:51 AM
an image

हर चुनाव राजनीति को एक नया संदेश देकर जाता है. बिहार और दिल्ली के चुनाव नतीजों ने नरेंद्र मोदी के चुनावी अश्वमेध पर लगाम लगा दी थी. उत्तर प्रदेश के चुनाव नतीजे इस अश्वमेध को पूरी तरह थाम सकते हैं और या फिर मोदी को नयी ऊंचाइयों पर पहुंचा सकते हैं. यही वजह है कि सभी की निगाहें उत्तर प्रदेश के चुनावी नतीजों पर लगी हैं.

आशुतोष चतुर्वेदी

(प्रधान संपादक, प्रभात खबर)

यूपी में चुनावी समर अपने चरम पर है. मुख्य मुकाबला समाजवादी पार्टी-कांग्रेस गंठबंधन और भारतीय जनता पार्टी के बीच नजर आ रहा है. समाजवादी पार्टी के मंथन से अखिलेश के रूप में पार्टी का नया नेतृत्व उभर कर सामने आया. मुलायम सिंह नेपथ्य में चले गये. एक दौर में समाजवादी पार्टी पारिवारिक कलह के कारण सियासी दौड़ से बाहर मानी जा रही थी, लेकिन अखिलेश ने पारिवारिक कलह में जीत हासिल कर और कांग्रेस से गंठबंधन कर चुनावी दंगल में मजबूती से वापसी की है.

जो शुरुआती संकेत मिले हैं, उनसे कुछ बातें स्पष्ट हुईं हैं. एक तो यह साफ हो गया है कि कांग्रेस को समाजवादी पार्टी की बैसाखी की जरूरत है. कांग्रेस की मूर्च्छा टूटी नहीं है, प्रशांत किशोर का ऑक्सीजन भी उसे खड़ा नहीं कर पाया. खटिया सभा का प्रयोग कारगर साबित नहीं हुआ है और राहुल गांधी एक बार फिर स्थापित नहीं हो पाये. इसको लेकर एक उपहास भी चल रहा है कि जिस तरह भारतीय मध्यवर्ग विशेष अवसरों पर वर्षों से संभाली क्रॉकरी निकालता है, उसी तरह कांग्रेस हर चुनाव पर प्रियंका गांधी को पेश करती है, बाकी सारा साल राहुल गांधी से काम चलाती है.

दूसरी अहम बात है कि बहुजन समाज पार्टी का पिछड़ना. जो पार्टी एक वक्त सियासी दौड़ में सबसे आगे चल रही थी, वह चुनावी दौड़ में पीछे नजर आ रही है. मुसलिम मतदाताओं को लेकर तो वह इतनी बेताब है कि कुख्यात अंसारी बंधुओं को भी पार्टी में शामिल किया और उन्हें टिकट देकर अपना उम्मीदवार बनाया. जिन अंसारी बंधुओं को पार्टी से निकाला था, उन्हें मायावती ने इस तर्क के साथ वापस लिया कि उनके साथ अन्याय हो रहा है.

जहां तक भारतीय जनता पार्टी का सवाल है तो नोटबंदी उनके लिए कोई घाटे का सौदा साबित होती नजर नहीं आ रही है. परेशानियों के बावजूद बड़ी संख्या में लोग उसके समर्थन में नजर आ रहे हैं, साथ ही मोदीजी की अय्यारी भाजपा के पक्ष में है. उन्हें अपने भावुक भाषणों से विपरीत परिस्थितियों को अपने पक्ष में करने में महारत हासिल है. पार्टी उन्हीं के नाम पर यूपी में चुनाव मैदान में है. इसमें कोई शक नहीं कि यूपी चुनाव नरेंद्र मोदी का अब तक का सबसे अहम सियासी इम्तिहान है और यह चुनाव उनके अबतक के कामकाज पर जनमत-संग्रह जैसा है.

Exit mobile version