‘हम भारत के लोग’ अपनी आस्था, परंपरा और संस्कृति के सच्चे रक्षक हैं. हमने आस्था में बेजुबान पशुओं को भी भरपूर जगह दी है. आस्था के केंद्र बिंदु में बैलों का भी महत्व कम नहीं हैं.
हमारी संस्कृति में तो इस ‘नंदी’ की भी पूजा होती हैं. इतिहास को पलटें तो पाएंगे कि हमने ढेर सारी परंपराओं और संस्कृतियों को बदला है. जल्लीकटू में ऐसा क्या हैं जो बदला नहीं जा सकता? तमिलनाडु में ऐसा हंगामा किया गया कि दंगल में कानून को भी कूदना पड़ा. फिर राजनीति पीछे क्यों रहती. धार्मिक या सांस्कृतिक और राजनीतिक द्वंद्व में वीरगति किसी को मिले, लहू-लुहान हमेशा आस्था ही होती है.
एमके मिश्रा, रातू, रांची