मुंशीजी, बिल्ली और मुंशियाईन
वीर विनोद छाबड़ा व्यंग्यकार हमारे मोहल्ले के सेवक राम एक बड़े वकील के मुंशी थे. इसीलिए उनके अड़ोसी-पड़ोसी, मित्र और तमाम रिश्तेदार भी उन्हें मुंशीजी कहते थे. यों मुंशीजी थे बहुत काबिल. वकील साहब ने उनकी नेक सलाह मान कर कई बार पेचीदा मुकदमे जीते. अगर उनके पास डिग्री होती तो जरूर नामी वकील होते. […]
वीर विनोद छाबड़ा
व्यंग्यकार
हमारे मोहल्ले के सेवक राम एक बड़े वकील के मुंशी थे. इसीलिए उनके अड़ोसी-पड़ोसी, मित्र और तमाम रिश्तेदार भी उन्हें मुंशीजी कहते थे. यों मुंशीजी थे बहुत काबिल. वकील साहब ने उनकी नेक सलाह मान कर कई बार पेचीदा मुकदमे जीते. अगर उनके पास डिग्री होती तो जरूर नामी वकील होते. इसी कारण मुंशीजी को बहुत अभिमान भी था. सब उनको झुक कर सलाम भी किया करते थे. लेकिन, एक अदद बिल्ली उनकी कतई परवाह नहीं करती थी.
मुंशीजी के यहां बिल्लियों के आने-जाने की परंपरा थी. एक आती, कुछ महीने रहती और चली जाती. मुंशीजी राहत का जश्न भी नहीं मना पाते कि म्याऊं-म्याऊं करता हुआ कोई बिल्ली का बच्चा चला आता था. बच्चों को खिलौना मिल जाता था और बिल्ली को ठिकाना. वहीं पलती, बड़ी होती और फिर एक दिन गायब हो जाती. मुंशीजी को बिल्ली से जितनी एलर्जी थी, बिल्ली को उतना ही प्यार. मजे की बात तो यह थी कि मुंशियाईन को मुंशीजी के पलट बिल्लियों से विशेष स्नेह था. कई बार मुंशीजी सोचते थे कि काश इतना प्यार मुंशियाईन ने उन पर लुटाया होता!
जिस दिन बिल्ली घर में न घुस पाती, उस दिन वह दरवाजे पर बैठ कर घंटों रोती. यूं भी बिल्ली का रोना मनहूसियत की निशानी माना जाता है. उसके करुण रुदन पर पसीज कर मुंशियाईन आधी रात को धीरे से दरवाजा खोल देती थीं.
बिल्ली दबे पांव भीतर आती और मुंशीजी के पलंग के नीचे सो जाती. इस बीच वो चूहों पर भी कड़ी नजर रखती.सुबह होते ही बिल्ली एक बड़ी अंगड़ाई लेने के बाद म्याऊं-म्याऊं का जाप करती. मुंशीजी की नींद इसी से खुलती. वे बिल्ली को चप्पल या डंडा, जो भी हाथ में आता, लेकर दौड़ाते और बिल्ली मुंशीजी को. इस खटर-पटर को सुन कर मुंशीजी के बच्चे भी ताली बजा कर कभी मुंशीजी का उत्साह बढ़ाते, तो कभी बिल्ली का.
खासी धमा-चौकड़ी के बाद आखिर में मुंशियाईन की ही अकल काम आती. वे दरवाजा खोल देतीं. बिल्ली को यही चाहिए होता था. मुंशीजी विजई मुद्रा में बाहर भागती हुई बिल्ली पर चप्पल पर फेंकते- भागी सा… मुंशीजी के घर से उठते शोर को सुन कर अड़ोसी-पड़ोसी भी जाग जाते. चलो सवेरा हो गया.
मुंशीजी को बिल्ली इसलिए भी फूटी आंख नहीं सुहाती थी कि उसने उनकी नयी स्कूटी की गद्दी को पैने नाखूनों से छेद डाला था. मुंशियाईन के बिल्ली से स्नेह को देख कर कई बार मुंशीजी को संदेह भी हुआ कि बिल्ली न हुई मानो सगी बहन हो गयी. मुंशीजी कई बार कहते भी थे कि ये बिल्लियां मुंशियाईन के मायके से जासूसी के लिए भेजी गयी हैं.
बिल्ली से परेशान मुंशीजी को मैंने एक दिन उनके कान में उपाय बताया. मुंशीजी अविलंब घर आये. प्याले में दूध उड़ेला और फिर एक पुड़िया में रखा पाउडर उसमें मिला दिया. बिल्ली दूध पीकर बेहोश हो गयी. मुंशीजी ने उसे एक झोले में डाला और दूर दूसरे मोहल्ले में छोड़ आये. मुंशीजी विजई मुद्रा में घर लौटे, तो वहां का दृश्य देख कर उन्हें सांप सूंघ गया. बिल्ली मुंशियाईन के बगल में बैठी थी.
लेकिन, मुंशीजी ने भी अपनी हिम्मत नहीं हारी. उन्होंने सुन रखा था कि बिल्लियां अक्सर रास्ता भूलती हैं. कभी तो यह बिल्ली रास्ता भूलेगी. उन्होंने मास्टर स्ट्रोक खेला. इस बार करीब पचास किलोमीटर दूर एक घने जंगल में बिल्ली को छोड़ आये. मगर त्रासदी यह हुई कि खुद मुंशीजी खुद भटक गये. रास्ता पूछते हुए घंटों बाद वे थके-मांदे घर पहुंचे. देखा कि बिल्ली मुंशियाईन के बगल में बैठी दूध पी रही थी. मुंशीजी पछाड़ खा गये. उन्होंने उस दिन के बाद से बिल्लियों से पंगा लेना छोड़ दिया.