गांधी की चिर प्रासंगिकता
आजादी के सत्तर सालों में हमारे देश ने कई स्तरों पर विकास के अनेक मील के पत्थर पार किया है. विकासशील अर्थव्यवस्था, आधुनिक तकनीक, उत्पादन की आत्मनिर्भरता, राजनीतिक स्थायित्व, अंतरराष्ट्रीय समुदाय में सम्मान जैसे आधारों पर भारत की उपलब्धियां शानदार रही हैं. आत्मचिंतन, आत्ममंथन और आत्मालोचना पर जोर देनेवाले महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर उन्हें […]
आजादी के सत्तर सालों में हमारे देश ने कई स्तरों पर विकास के अनेक मील के पत्थर पार किया है. विकासशील अर्थव्यवस्था, आधुनिक तकनीक, उत्पादन की आत्मनिर्भरता, राजनीतिक स्थायित्व, अंतरराष्ट्रीय समुदाय में सम्मान जैसे आधारों पर भारत की उपलब्धियां शानदार रही हैं.
आत्मचिंतन, आत्ममंथन और आत्मालोचना पर जोर देनेवाले महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि व्यक्त करते हुए तथा उनके संदेशों को स्मरण करते हुए यह भी प्रश्न स्वयं से पूछना चाहिए कि क्या हमें अपनी उपलब्धियों को लेकर संतुष्ट हो जाना चाहिए या फिर उसकी समुचित समीक्षा करने की आवश्यकता भी है.
आज अगर गांधी होते, तो क्या कहते? क्या आर्थिक विषमता, बीमारी, भुखमरी, गरीबी, हिंसा, भेदभाव जैसी गंभीर मुश्किलों से पीछा न छुड़ा पाने की हमारी असफलता से उन्हें कोफ्त नहीं होती? आजादी की लड़ाई का लाठीधारी सेनापति और सिद्धांतकार आजादी के दिन राजधानी के जश्न से बहुत दूर एक बस्ती को उन्माद की आग में जलने से बचा रहा था. जब देश गणतंत्र बना, तो उससे पहले ही उस उन्माद ने उसकी हत्या कर दी थी.
पर, उसके आदर्श बचे रहे. उसका भरोसा बचा रहा. इनके दायरे देश की सरहदों को लांघता हुआ दुनियाभर में पसरे. आज गांधी बीसवीं सदी के चौथे दशक के गांधी से कहीं अधिक प्रभावशाली और प्रासंगिक हैं. उनकी नैतिकता और सत्य के प्रति अटूट आस्था इस बेचैन और बर्बर वक्त में उम्मीद के दीये हैं. मनुष्यता को एक अभिन्न इकाई माननेवाले गांधी को याद करना हमें अपने कर्तव्यों को निभाने की प्रेरणा तो देता ही है, साथ में वह साहस का संचार भी करता है. गांधी के संदेशों की व्यापकता और उनके व्यक्तित्व की विराटता का स्मरण एक रस्मी औपचारिकता की कार्यवाही मात्र बन कर नहीं रह जानी चाहिए.
खुद में बदलाव लाने से लेकर समाज में सकारात्मक योगदान देने तथा देश-दुनिया की बेहतरी तक उनके संदेशों के साथ उनके व्यवहार के प्रमाण भी हमारे सामने हैं. गांधी मार्गदर्शक और प्रेरणा हैं, तो वे आईना भी हैं जिसमें हम अपने को देख कर संवर सकते हैं. वे संभालने और हिम्मत देनेवाले सहयात्री भी हैं. गांधी के कहे, लिखे और किये को समझना और अपनाना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है.