ज्ञान की देवी का सम्मान
रविभूषण वरिष्ठ साहित्यकार राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन में तिलक, गोखले, लाजपत राय, महात्मा गांधी, भगत सिंह, नेहरू, पटेल, राजेंद्र प्रसाद, सरोजनी नायडू, मौलाना आजाद, सुभाष चंद्र बोस, आंबेडकर, नरेंद्र देव, जयप्रकाश नारायण, लोहिया आदि में नव-निर्माण की क्या वैसी महती कामना-आकांक्षा थी, जैसी सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने अपने एक गीत में की थी? राजनेताओं को सर्वाधिक […]
रविभूषण
वरिष्ठ साहित्यकार
राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन में तिलक, गोखले, लाजपत राय, महात्मा गांधी, भगत सिंह, नेहरू, पटेल, राजेंद्र प्रसाद, सरोजनी नायडू, मौलाना आजाद, सुभाष चंद्र बोस, आंबेडकर, नरेंद्र देव, जयप्रकाश नारायण, लोहिया आदि में नव-निर्माण की क्या वैसी महती कामना-आकांक्षा थी, जैसी सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने अपने एक गीत में की थी?
राजनेताओं को सर्वाधिक महत्व देनेवाला देश चिंतन-विचार के धरातल पर अधिक अग्रसर नहीं होता. निराला का ‘वर दे, वीणावादिनि वर दे’ गीत (‘गीतिका’ में संकलित) पटना से प्रकाशित ‘युवक’ मासिक पत्रिका के सितंबर 1931 के अंक में प्रकाशित हुआ था. इसके एक वर्ष पहले लाहौर कांग्रेस में ‘पूर्ण स्वराज’ का प्रस्ताव पारित हो चुका था. नागरिक अवज्ञा आंदोलन आरंभ हो रहा था.
23 मार्च, 1931 को भगत सिंह को फांसी दे दी गयी थी. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की उस समय उम्र महज पांच-छह साल थी. कांग्रेस के भीतर समाजवादी स्वर प्रबल नहीं थे. कांग्रेस समाजवादी पार्टी के जन्म में अभी विलंब था. द्वितीय विश्वयुद्ध दूर था. 1930-31 के भारत और विश्व में जो घटनाएं घटित हो रही थीं, वे बेचैन करने के लिए कम नहीं थीं.
बुद्धि, विवेक, प्रज्ञा, ज्ञान का महत्व सदैव रहा है. विश्व मिथक में इनके देव-देवी हैं. एथेना (ग्रीक), मिनर्वा (रोमन), तिर (आर्मेनियन), अपोलो (ग्रीक), लुघ (आयरिश), वेनचांगवांग, मंजुश्री, कोंग्जी, लाओजी (चीन) सहित ज्ञान, बुद्धि, विवेक, प्रज्ञा के देवी-देवता अनेक देशों में हैं.
भारत में सरस्वती की पूजा-आराधना ज्ञान, बुद्धि, विवेक की पूजा-आराधना है. जापान, थाइलैंड, इंडोनेशिया आदि देशों में भी सरस्वती की पूजा होती है. जापान में सरस्वती को ‘बेंजाइतेन’ कहते हैं. विश्व मिथक पर संभवत: विश्व की किसी भी भाषा में महान ग्रंथ हिंदी में है. रमेशकुंतल मेघ ने ‘विश्व मिथक सरित्सागर’ (वाणी प्रकाशन, 2015) में सरस्वती के ‘आद्य आर्य मिथक से धर्म-सांस्कृतिक छवि में रूपांतरण’ (पृ 419) की बात कही है. वे सरस्वती-संबंधी कई पाठों (पुराणपंथी, मनस्तात्विक आदि) का जिक्र करते हैं. सरस्वती-संबंधी जो पाठ-अनुपाठ सर्वाधिक प्रसिद्ध और मान्य है, उसमें वाग्देवी हैं.
वे धवलवर्णा, श्वेत वसना, हंसा रूठा और कमलासीन हैं. मयूर वाहिनी हैं. उनका एक मुख और चार हाथ है. उनकी भुजाओं में वीणा, पुस्तकमाला और सुगंध-पिटारी है. पुस्तक ज्ञान और माला सात्विकता से संबद्ध हैं. सरस्वती ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी हैं. आज जिस प्रकार ज्ञान-केंद्रों पर हमले हो रहे हैं, वह ज्ञान विमुख, बुद्धिहीन, विवेकरहित समाज का निर्माण कर रहा है. बार-बार आहत भावनाओं की बात की जाती है. ‘धर्म-धर्म’ की रट लगानेवाले वासुदेवशरण अग्रवाल को पढ़ें- ‘सरस्वती ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी हैं. भारतीय धर्म की सब धाराएं सरस्वती की उपासना करती हैं. वैदिक धर्म में सरस्वती, जैन धर्म में श्रुत देवता और बौद्ध धर्म में प्रज्ञा देवी के नाम से सरस्वती की ही उपासना की जाती है. प्रज्ञा ज्ञान की देवी है. प्रज्ञा या बुद्धि एक सुक्ष्म शक्ति है.’
संस्कृत में सरस्वती-वंदना में ‘या कुंदेंदु तुषार हार धवला या शुभ्र वस्त्रावृता’ और हिंदी में ‘वर दे, वीणावादिनि वर दे’ सर्वप्रमुख है. संस्कृत की वंदना में मां सरस्वती से, संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर करनेवाली मां से रक्षा करने की प्रार्थना है.
निराला के गीत में कवि ने अपने लिए किसी चीज की कामना नहीं की है. उसकी कामना भारत में ‘प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव’ भर देने की है. विश्व को जगमग कर देने की है- ‘जगमग जग कर दे.’ एक साथ अपने देश और समस्त विश्व की ऐसी चिंता सरस्वती-संबंधी किसी भी प्रार्थना और वंदना में नहीं है. ‘वर दे, वीणावादिनि वर दे’ में भारत-प्रेम और विश्व-प्रेम दोनों एक साथ है.
राष्ट्रवाद के इस पगलाये दौर में इस गीत का पुन:-पुन: पाठ आवश्यक है, क्योंकि इसमें समस्त भारत और विश्व की चिंता है. दो चरणों के इस गीत के दूसरे चरण में नौ बार ‘नव’ शब्द प्रयुक्त है. ‘नव गति, नव लय, ताल-छंद नव, नवल कंठ, नव जलद-मंद रव, नव नभ के नव विहग-वृंद को नव स्वर, नव पर दे.’ तीस के दशक के आरंभ में नवता के प्रति ऐसा आग्रह किसमें है? कहां है? इसके पहले 1930 के दो गीतों में भी निराला ने ‘जागे जीवन की नवज्योति आनंद’ और ‘नवरूप विभा के चिरस्वरूप’ की बात कही है.
राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन एक सांस्कृतिक आंदोलन भी था. उस युग के किसी भी प्रमुख व्यक्ति के यहां नयेपन के प्रति ऐसी गहरी आकांक्षा नहीं है. निराला ने इस गीत के बंधन-स्तर को काटने और ‘कलुष’ को हरने, प्रकाश भरने की सरस्वती से वंदना की है. आज भी बंधन-स्तर कायम है.
वर्ण, जाति, धर्म, संप्रदाय आदि के द्वारा मनुष्य को बंधनयुक्त करनेवाली शक्तियां प्रबल हैं. चतुर्दिक ‘ज्योतिर्मय निर्झर’ बहे, उसकी चिंता किसी में नहीं है. यह सब वास्तविक ज्ञान से ही संभव है. विद्या मां सरस्वती के कृपा-भाव के बिना संभव नहीं है. आज भारत और विश्व अंधेरे में हैं. भारत में मोदी ज्ञान-देवी हैं, अमेरिका में ट्रंप. ‘ज्ञान’ का, बुद्धि, विवेक, कला और इस सबकी अधिष्ठात्री देवी सरस्वती का इन दोनों के यहां कोई सम्मान नहीं है.