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गैरजिम्मेवार पाकिस्तान
सार्क में शामिल दक्षिण एशियाई देशों के सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) को एक साथ जोड़ दें, तो वह अमेरिका और चीन के बाद तीसरी बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था के रूप में सामने आयेगा. इस तथ्य के भीतर इस पूरे क्षेत्र को दुनिया की आर्थिक और राजनीतिक गतिकी का इंजन बनाने की संभावनाएं छुपी हैं. सार्क का […]
सार्क में शामिल दक्षिण एशियाई देशों के सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) को एक साथ जोड़ दें, तो वह अमेरिका और चीन के बाद तीसरी बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था के रूप में सामने आयेगा.
इस तथ्य के भीतर इस पूरे क्षेत्र को दुनिया की आर्थिक और राजनीतिक गतिकी का इंजन बनाने की संभावनाएं छुपी हैं. सार्क का घोषवाक्य है- ‘शांति और समृद्धि के लिए गहरा आपसी जुड़ाव’. पर यह विडंबना है कि ‘गहरे आपसी जुड़ाव’ को ही साध पाना सदस्य देशों के लिए सबसे मुश्किल साबित हुआ है. अगले माह के शुरू में इंदौर में होनेवाले साउथ एशियन स्पीकर्स सम्मेलन में भाग लेने से पाकिस्तान का इनकार फिर से इसी बात की ओर इशारा कर रहा है.
सार्क के सभी देश इस सम्मेलन में आने को रजामंद हैं सिवाय पाकिस्तान के. और, पाकिस्तान की अकड़ देखिये कि उसने नहीं आने की कोई वजह बताना भी जरूरी नहीं समझा. यह सम्मेलन तनाव या विवाद के किसी मसले पर नहीं हो रहा है कि उसे स्वार्थों की रस्साकशी का मैदान बनाया जाये. इस आयोजन का मुद्दा दुनियाभर से गरीबी, विषमता, भुखमरी, निरक्षरता आदि खत्म करने के संयुक्त राष्ट्र की महत्वाकांक्षी पहल ‘सतत विकास लक्ष्यों’ को निर्धारित समय (2030) के भीतर हासिल करने के प्रयासों पर चर्चा करना है. लेकिन, मानव-विकास सूचकांक पर नीचे के देशों में शुमार पाकिस्तान को शायद क्षेत्रीय विकास से ज्यादा अपनी सियासी अकड़ की फिक्र है.
एक तो पूरा दक्षिण एशियाई क्षेत्र ही मानव-विकास के मामले में बहुत पीछे है. पाकिस्तान की हालत तो बेहद खराब है. यूएनडीपी की नयी रिपोर्ट में मानव-विकास के मामले में 188 देशों की सूची में उसका स्थान 147वां है. ऐसे में यही माना जायेगा कि एशियन स्पीकर्स सम्मेलन में भाग लेने के भारतीय निमंत्रण को ठुकरा कर पाकिस्तान ने मानव-विकास के एजेंडे को खारिज किया है. बेशक उड़ी हमले के बाद के वक्त में पाकिस्तान प्रेरित आतंकवाद के पर कतरने के लिए भारत ने पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अलग-थलग करना चाहा है. बीते नवंबर माह में इसलामाबाद में होनेवाला सार्क देशों का सम्मेलन इसी कारण न हो सका था. इंदौर के आयोजन में भागीदारी कर पाकिस्तान ने संबंधों में नरमी लाने और क्षेत्रीय सहयोग की भावना को मजबूत करने का एक मौका और गंवाया है.
उसके इनकार का एक संदेश यह भी है कि भारत के साथ वैर साधने की बात हो, तो पाकिस्तान मानव-विकास के मसले को भी भूल सकता है. ऐसे में अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान के पाखंड को लगातार उजागर करना ही भारत के लिए हितकर है.
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