शशिकला की ताजपोशी

जयललिता की मौत के बाद तमिलनाडु में यह सवाल उछला था कि अम्मा के बाद ‘कौन’. तब इस सवाल का संकेत था कि सत्ताधारी अन्ना द्रमुक के सामने अस्तित्व का संकट आन खड़ा है और अब उसकी हालत बेपतवार के नाव की तरह है. लेकिन, दो महीने के भीतर ही जवाब मिल गया है कि […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 7, 2017 6:15 AM
जयललिता की मौत के बाद तमिलनाडु में यह सवाल उछला था कि अम्मा के बाद ‘कौन’. तब इस सवाल का संकेत था कि सत्ताधारी अन्ना द्रमुक के सामने अस्तित्व का संकट आन खड़ा है और अब उसकी हालत बेपतवार के नाव की तरह है.
लेकिन, दो महीने के भीतर ही जवाब मिल गया है कि पार्टी के अवसान की बात सोचनेवाले गलत थे. अन्ना द्रमुक ने ‘अम्मा’ के बाद ‘चिन्नम्मा’ यानी शशिकला नटराजन को तमिलनाडु की गद्दी पर आसीन करने का फैसला किया है. राज्य से बाहर की सियासी दुनिया में शशिकला की पहचान क्या है? बस यही कि वे बीते साढ़े तीन दशकों तक जयललिता की विश्वासपात्र रही थीं.
एमजी रामचंद्रन के दौर में जब जयललिता पार्टी की प्रचार-प्रमुख थीं, तब एक अदने से सरकारी अधिकारी एम नटराजन ने एक कलेक्टर से जान-पहचान के बूते अपनी पत्नी शशिकला की भेंट उनसे करवायी थी. अस्सी के दशक से जयललिता की मौत तक शशिकला के बारे में बाहर के लोग यही जानते रहे कि पार्टी कार्यकर्ताओं का विश्वास जयललिता पर है और जयललिता अपनी निजी दुनिया में सिर्फ शशिकला पर भरोसा करती हैं. उसी भरोसे की रस्सी पकड़ कर आज शशिकला तमिलनाडु के मुख्यमंत्री की गद्दी पर बैठ रही हैं. बेशक शशिकला ने कोई चुनाव नहीं लड़ा, प्रशासन का भी कोई अनुभव उनके पास नहीं है, जयललिता के रहते भ्रष्टाचार के आरोप में वे जेल जा चुकी हैं और एक समय वह भी आया, जब जयललिता ने विश्वासघात के आरोप में उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया.
लेकिन, अन्ना द्रमुक की एकता के आगे विरोधियों के तर्क बेमानी जान पड़ते हैं. व्यक्तिपूजक राजनीति की यही खासियत है. करिश्माई शख्सियत जयललिता के रहते पार्टी समर्थकों के पास ‘अम्मा’ थीं, और उनके नहीं रहने पर भी उनकी ‘कृपा’ कायम है. करिश्मे की राजनीति का एक मरणोत्तर जीवन होता है और बहुत कुछ इस बात पर निर्भर होता है कि इस मरणोत्तर जीवन को कितनी शिद्दत से जीवित रखा जाता है.
शशिकला की बड़ी चुनौती मुख्यमंत्री बनने के छह माह के भीतर चुनाव जीतने या स्थानीय चुनावों में पार्टी के लिए ज्यादा-से-ज्यादा सीटें बटोरने की नहीं है, बल्कि जयललिता की छवि के भीतर अपने को फिट करने की होगी. एकबारगी ऐसा हो गया, तो कोई अचरज नहीं कि जैसे पार्टी ने उनके भीतर जयललिता की छवि देखी है, वैसे ही तमिलनाडु की जनता का बड़ा हिस्सा उनके भीतर जयललिता की भावमूर्ति के दर्शन करने लगे. ऐसा होते ही अन्ना द्रमुक की राजनीति फिर से अपनी पुरानी पटरी पर दौड़ने लगेगी.

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