संरक्षणवाद से संभावित लाभ

वैश्विक अर्थव्यवस्था की अपनी संरचना भी इतनी जटिल हो चुकी है कि दुनिया के किसी भी हिस्से में हो रहा उतार-चढ़ाव दूसरे हिस्से के कारोबार को प्रभावित कर सकता है. यही कारण था कि ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से बाहर निकलने के फैसले तथा डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति निर्वाचित होने की घटनाओं के तुरंत बाद […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 9, 2017 6:41 AM

वैश्विक अर्थव्यवस्था की अपनी संरचना भी इतनी जटिल हो चुकी है कि दुनिया के किसी भी हिस्से में हो रहा उतार-चढ़ाव दूसरे हिस्से के कारोबार को प्रभावित कर सकता है. यही कारण था कि ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से बाहर निकलने के फैसले तथा डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति निर्वाचित होने की घटनाओं के तुरंत बाद भारतीय वित्त बाजार से विदेशी पूंजी की तेज निकासी हुई थी. ट्रंप की जीत के साथ नोटबंदी ने भी इसमें कुछ योगदान दिया था.

निवेश में कमी और पूंजी की निकासी तथा वैश्विक अर्थव्यवस्था में उथल-पुथल से हमारी अर्थव्यवस्था के लिए पैदा हुईं चिंताएं अभी भी बरकरार हैं. पर, आज भी उभरती अर्थव्यवस्थाओं में भारत की वृद्धि दर सबसे तेज बनी हुई है और इसके जारी रहने के आसार भी हैं. अमेरिका और यूरोप के संरक्षणवाद तथा अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक तनाव बढ़ने से भारतीय अर्थव्यवस्था को लाभ भी हो सकता है. व्यावसायिक कानूनी संस्था बेकर मेकेंजी ने अपनी रिपोर्ट में संभावना जतायी है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत में मौजूदा कंपनियों के विलय और नियंत्रण के जरिये अपने कारोबार को विस्तार दे सकती हैं.

वर्ष 2016 में इस तरह की गतिविधियों का मूल्य 17.5 बिलियन डॉलर रहा था, जो 2019 में दोगुने से भी अधिक होकर 49.3 बिलियन डॉलर हो सकता है. यह बढ़त वित्तीय, उपभोक्ता, स्वास्थ्य सेवा, इंटरनेट और रियल इस्टेट के क्षेत्र में अधिक होने की उम्मीद है. आर्थिक विकास और जीवन-स्तर की समृद्धि की दृष्टि से ये क्षेत्र बहुत महत्वपूर्ण हैं.

नयी कंपनियों के आने और पुरानी कंपनियों की संरचना में बदलाव से स्वस्थ व्यापारिक प्रतियोगिता को भी बढ़ावा मिलेगा. रिपोर्ट का मानना है कि इसका कारण आगामी दिनों में अफरातफरी का कम होना और बाजार में भरोसे की वापसी है. हालांकि, यह एक आकलन ही है, पर सरकार और रिजर्व बैंक की सकारात्मक नीतियों से इस निवेश को संभव किया जा सकता है.

बजट में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने देश में व्यापार को सुगम बनाने के इरादे से दो दशक पुराने विदेशी निवेश प्रोत्साहन बोर्ड को खत्म करने का प्रस्ताव भी रखा है. यह भी उल्लेखनीय है कि संरक्षणवाद के आर्थिक पहलुओं के साथ राजनीतिक आयाम भी महत्वपूर्ण हैं और पश्चिम की मौजूदा बहसें विचारधाराओं और पहचान के तर्क से प्रेरित हैं. ऐसे में भारत को उन पर बारीकी से नजर जमाये हुए सावधानी से अपनी नीतियों और योजनाओं को आकार देना होगा, क्योंकि उन बहसों को हम सीधे प्रभावित नहीं कर सकते हैं.

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