रमेश ठाकुर
वरिष्ठ पत्रकार
भारतीय ब्लाइंड क्रिकेट टीम ने लगातर दूसरी बार वर्ल्ड कप पर कब्जा किया है. इस बार फाइनल मुकाबले में भारतीय टीम ने पाकिस्तान को 9 विकेट से हरा कर वर्ल्ड कप जीत लिया है. दिव्यांगों को समाज लाचारी भरी नजरों से देखता है, लेकिन उनका मौजूदा कारनामा समाज की सोच बदलने में कारगर साबित होगा. दृष्टिहीनता प्रगति में बाधक नहीं बन सकती, इसका उदाहरण टी-20 क्रिकेट वर्ल्डकप जीत कर हमारी ब्लाइंड क्रिकेट टीम उन लाखों दिव्यांग व्यक्तियों के लिए नजीर बन गयी है, जो अपनी तरक्की में आंखों की रोशनी न होने को बाधक समझते हैं. उनकी जीत पर पूरा देश गौरवान्वित हुआ है. अमिताभ बच्चन ने बधाई दी है और शाहरुख खान टीम के सभी सदस्यों को गले लगाना चाहते हैं.प्रधानमंत्री मोदी ने भी सभी खिलाड़ियों को शुभकामनाएं भेजी हैं.
चाहे टी-20 फॉरमेट का वर्ल्ड कप हो या वनडे अंतरराष्ट्रीय मैचों का वर्ल्ड कप, पाकिस्तान कभी भी भारत को हरा नहीं पाया है. ब्लाइंड वर्ल्ड कप के 50 ओवर के संस्करण में केवल एक बार ऐसा मौका आया, जब पाक को भारत पर जीत मिली. भारत-पाक की टीमें अब तक कुल छह बार एक-दूसरे से वनडे वर्ल्ड कप में भिड़ी हैं- 2015, 2011, 2003, 1999, 1996, 1992 में. तीसरा दृष्टिहीन क्रिकेट विश्व कप 2006 में पाकिस्तान में हुआ था, जिसमें फाइनल में पाकिस्तान ने भारत को हराया था, लेकिन 2014 में उसका बदला भारत ने ले लिया था.
बीते 12 फरवरी को बेंगलुरू में खेले गये फाइनल मुकाबले में पाकिस्तानी टीम ने पहले बल्लेबाजी करते हुए भारत को जीत के लिए 198 रन का लक्ष्य दिया, जिसे भारत ने महज एक विकेट खोकर हासिल कर लिया.
इस सफलता के बाद तुरंत ही खेल मंत्रालय का बयान आया कि सरकार ने ब्लाइंड क्रिकेट को मान्यता देने की बात कही है. ब्लाइंड क्रिकेट को आगे बढ़ाने में विश्व विजेता ब्लांइड क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान शेखर नाइक और क्रिकेट एसोसिएशन फॉर ब्लांइड इन इंडिया के अध्यक्ष महंतेश जीके ने अच्छा योगदान दिया है. इसके लिए उन्हें पद्मसम्मान भी दिया गया है. अब खेल मंत्रालय ब्लाइंड क्रिकेट को हर संभव मदद देने को तैयार है. उम्मीद है अब ब्लाइंड क्रिकेट के हालात सुधरेंगे.
सरकार बहुत जल्द स्पोट्र्स पोर्टल टैलेंट सर्च की शुरुआत करेगी, ताकि विभिन्न खेलों में प्रतिभाशाली खिलाड़ियों की पहचान की जा सके. समय का तकाजा है कि अब ब्लाइंड क्रिकेट को भी अन्य खेलों की तरह मान्यता मिलनी चाहिए. इससे न सिर्फ खिलाड़ियों का उत्साह बढ़ेगा, बल्कि यह खेल और अधिक लोकप्रिय होगा.
भारत में इस समय लगभग दो करोड़ से ज्यादा व्यक्ति किसी न किसी रूप में दिव्यांग हैं. दिव्यांग व्यक्ति को सहानुभूति की नहीं, बल्कि सहयोग की जरूरत है. सहानुभूति से दिव्यांग व्यक्ति आहत हो सकता है. दिव्यांगों को समान्य व्यक्ति समझते हुए उनके प्रति सामान्य व्यवहार करने की जरूरत है. दिव्यांगों में भी प्रतिभा होती है. उनमें आगे बढ़ने का भरपूर उत्साह होता है.
केंद्र सरकार दिव्यांगों के प्रति संवेदनशील है. सुप्रीम कोर्ट ने भी दिव्यांगों के लिए सरकारी नौकरियों में तीन फीसदी आरक्षण देने को कहा है. दरकार इस बात की है कि सरकार के साथ-साथ समाज को भी अब दिव्यागों के प्रति अपना नजरिया बदलना होगा. उनको लाचारी की नजरों से देखने के बजाय बाकियों की तरह ही इज्जत देनी होगी. सामाजिक क्षेत्रों में भी इनके लिए पर्याप्त स्पेस मुहैया कराने की जरूरत है. ब्लाइंड वर्ल्ड कप जीतने के बाद जिस तरह से पूरा भारत उनको दुलार रहा है, यह सिलसिला अब रुकना नहीं चाहिए.