बिहार की परीक्षाएं
बिहार सरकार मेहनती व पढ़ने-लिखने वाले युवाओं को अपना नहीं मानती है, उनके लिये तो सही मायने में मेहनती व हकदार वे हैं जिन्होंने पूरी तन्मयता से अपनी डिग्रियों का जुगाड़ किया है. अध्यक्ष से लेकर सचिव तक, अफसरों से लेकर राज्य के प्रधान तक सबने अपने-अपने हिसाब से सेटिंग्स बिठा रखी है. पिछले 10-12 […]
बिहार सरकार मेहनती व पढ़ने-लिखने वाले युवाओं को अपना नहीं मानती है, उनके लिये तो सही मायने में मेहनती व हकदार वे हैं जिन्होंने पूरी तन्मयता से अपनी डिग्रियों का जुगाड़ किया है.
अध्यक्ष से लेकर सचिव तक, अफसरों से लेकर राज्य के प्रधान तक सबने अपने-अपने हिसाब से सेटिंग्स बिठा रखी है. पिछले 10-12 वर्षों में बिहार में जितनी भी परीक्षाएं हुई, ऐसी एक भी परीक्षा नहीं, जो बिना किसी बाधा के सफल हुई हो. बिहार लोक सेवा आयोग और बिहार कर्मचारी चयन आयोग जब तक हाइकोर्ट नहीं जाता, इसे शांति नहीं मिलती है. कभी इसके प्रश्न गलत होते हैं, तो कभी इसका उत्तर सही नहीं होता.
10 करोड़ की आबादी वाला यह राज्य क्या इतना भी सक्षम नहीं है कि 200 प्रश्न बिना किसी त्रुटि के छाप सके. इंटर स्तरीय परीक्षा की धांधली ने उन लाखों युवाओं को सड़कों पर उतरने के लिये मजबूर कर दिया. जिन युवाओं के हाथों में कलम और किताब होनी चाहिए, उनके हाथों में आज बैनर और पर्चे हैं, क्या यही सुशासन है.
गंगेश गुंजन, मधेपुरा