गिरींद्र नाथ झा
ब्लॉगर एवं किसान
किसानी करते हुए खेत के अलावा उन गांव तक पहुंचने की इच्छा हमेशा रही है, जहां बहुत कुछ अलग हो रहा है. इसी अलग को देखने की ख्वाहिश लिये हाल ही में बिहार के पूर्वी चंपारण के कुछ ग्रामीण इलाकों में जाना हुआ. पूर्वी चंपारण के पकड़ीदयाल अनुमंडल का एक गांव है चैता.
यह गांव मेरे लिए अलग कई वजह से है, जिसमें एक लीची का बगान भी है. दूर-दूर तक लीची के सुंदर पेड़, गेहूं के नवातुर पौधों को खेत में समेटे किसान और सबसे बड़ी बात साक्षर और जागरूक किसानों की बड़ी टोली.
जब भी देश के किसी हिस्से में किसानी कर रहे लोग आर्थिक रूप से सबल दिखते हैं, तो मन बाग-बाग हो जाता है. इसकी एक वजह यह भी है कि हमने खुद खटारा खेती और महान किसान की बात को हमेशा से ठुकराया है. चैता गांव में दाखिल होते ही जिस चीज पर नजर टिकी वह थी ‘मोटर साइकिल चलाती एक लड़की’. गांव-घर में साइकिल चलाती लड़की दिख जाती है, लेकिन बाइक चलाती आत्मविश्वासी लड़की पहली बार देखने को मिला. सचमुच गांव बदल रहा है.
चैता से मेरा जुड़ाव शाश्वत गौतम की वजह से हुआ. शाश्वत मेरी पीढ़ी के ऐसे युवा हैं, जो किसानी की नयी परिभाषा गढ़ रहे हैं. अमेरिका के जार्ज वाशिंगटन विवि से पढ़ाई कर चुके शाश्वत के भीतर एक गांव है, किसान के अनेक रूप हैं. वे किसानी को मुनाफे का पेशा समझते हैं.
वे कृषि आधारित उद्योग की बात करते हैं. लीची की मार्केटिंग और ब्रांडिंग की बात करते हैं. वे अन्य फलों को व्यापारी के हाथों बेचने की बात नहीं करते हैं, बल्कि उसका उद्योग स्थापित करने की वकालत करते हैं .
विदेश की चकाचौंध वाली जिंदगी के बीच चैता के अपने गेहूं के खेत में जब शाश्वत मुझे घुमा रहे थे और मुझसे किसानी की बात कर रहे थे, तो लगा मानो किसी ऐसे ‘किसान नेता’ से गुफ्तगू कर रहा हूं, जिसकी जड़ें गांव के खेत-खलिहान में नीचे तक जमी हुई है. बिहार को सचमुच ऐसे ही किसान की जरूरत है, जो बड़ी संख्या में किसानों को साथ लेकर चल सकता हो और खटारा बन चुकी किसानी की दुनिया में कृषि आधारित उद्योग की बात करता हो.
चैता में लीची के किसान और बगान बड़ी संख्या में हैं. यहां सब्जी की भी अच्छी खेती दिखी. किसान समाज यहां मुझे तेवर में दिखा. सारे लोग उत्साह में खेती की दुनिया में रमे दिखे. खेती उपजाऊ, टिकाऊ और सबसे बड़ी बात बिकाऊ हो सके, इसके लिए शाश्वत के पास ढेर सारी योजनाएं हैं, जिसमें कई पर वे काम भी कर रहे हैं.
इस गांव में दो दिन गुजारने के बाद मुझे बुलंदशहर के भारत भूषण त्यागी की याद हो आयी. त्यागीजी भी खेती को मुनाफे का सौदा बनाने में जुटे हैं, उनकी उम्र अधिक है, लेकिन मन उनका भी युवा किसान का ही है. किसानी को मुनाफे का सौदा बनाना आसान नहीं है, लेकिन आप इस बात को भी नहीं काट सकते हैं कि यदि कृषक समाज एकजुट होकर खेती करने लगे, तो बड़े से बड़े उद्योगपति हम किसानों के चौपाल में बैठने लगेंगे.
इस रंग बदलती दुनिया में अब किसानों को अपना अंदाज बदलना होगा. मुनाफे की बात करनी होगी, खेती और पैसे की बात करनी होगी. पारंपरिक खेती और वैज्ञानिक खेती के बीच कृषि आधारित उद्योग की बात ऊंचे स्वर में करनी होगी.
अब देश को पेशेवर किसान की जरूरत है, जो उपज से लाभ हासिल कर भी दिखा दे. दुनिया के अलग-अलग देशों में कृषि आधारित उद्योगों को नजदीक से देखनेवाले शाश्वत गौतम से मेरे जैसे किसान को बड़ी उम्मीदें हैं. उम्मीदें इसलिए भी हैं, क्योंकि किसानी का पेशा अब करवटें लेने लगा है.