किसानों पर दोतरफा मार
डॉ भरत झुनझुनवाला अर्थशास्त्री एनडीए सरकार पिछले दो वर्षों से किसान की आय को दोगुना करने के वादे कर रही है, परंतु किसान की हालत में कोई सुधार नहीं दिखता है. सरकार का फाॅर्मूला है कि किसान को सड़क एवं पानी उपलब्ध कराया जाये, जिससे उत्पादन में वृद्धि हो. साथ ही फसल बीमा तथा सस्ता […]
डॉ भरत झुनझुनवाला
अर्थशास्त्री
एनडीए सरकार पिछले दो वर्षों से किसान की आय को दोगुना करने के वादे कर रही है, परंतु किसान की हालत में कोई सुधार नहीं दिखता है. सरकार का फाॅर्मूला है कि किसान को सड़क एवं पानी उपलब्ध कराया जाये, जिससे उत्पादन में वृद्धि हो. साथ ही फसल बीमा तथा सस्ता ऋण उपलब्ध करा कर किसान की उत्पादन लागत को कम किया जाये, जिससे उसकी आय में वृद्धि हो. लेकिन, किसान की आय उत्पादन की मात्रा या लागत से तय नहीं होती है.
किसान की आय तय होती है उत्पादन लागत एवं बाजार के दाम के अंतर से. जैसे 15 रुपये किलो की लागत से गेहूं का उत्पादन किया जाये और 17 रुपये किलो में बेचा जाये, तो किसान को दो रुपये प्रति किलो का लाभ होता है. मान लीजिये सरकार ने सड़क, सिंचाई, बीमा तथा ऋण की सुविधाएं किसान को उपलब्ध करा दीं. किसान ने उत्पादन अधिक मात्रा में किया. उसकी लागत 15 रुपये से घट कर 13 रुपये प्रति किलो हो गयी. परंतु, इस सुधार से यदि बाजार में गेहूं के दाम 17 रुपये से घट कर 12 रुपये रह गये, तो किसान को प्रति किलो एक रुपये का घाटा लगेगा. कृषि उत्पादों के मूल्य की अनदेखी करने के कारण एनडीए सरकार के पिछले तीन वर्षों में किसान की हालत बिगड़ती गयी है.
सरकार की आयात-निर्यात नीति भी किसान को कष्ट में डालती है. सरकार की प्राथमिकता देश में कृषि उत्पादों के दामों को नियंत्रण में रखना है. आज देश की लगभग 60 प्रतिशत आबादी शहर में रहती है, जो खाद्य पदार्थों को खरीद कर खाती है. गांव में रहनेवाले मजदूर, बढ़ई, लोहार, चाय वाले भी खाद्य पदार्थ खरीद कर खाते हैं. देश की 80 प्रतिशत जनता खरीद कर खाती है.
इन वोटर को साधना सरकार की प्राथमिकता है, इसलिए सरकार चाहती है कि खाद्य पदार्थों के दाम न्यून बने रहें. जब देश में किसी कृषि उत्पाद की फसल कम होती है और घरेलू बाजार में दाम बढ़ते हैं, तो सरकार आयात करती है और दाम को बढ़ने से रोकती है. वर्तमान में दाल के आयात से ऐसा किया जा रहा है. इसके विपरीत जब देश में उत्पादन ज्यादा होता है और दाम न्यून होते हैं, तो निर्यातों पर प्रतिबंध लगा कर इन्हें नीचा बनाये रखा जाता है. किसान दोनों तरह से मरता है. किसान की आय दोगुना करने के लिए जरूरी है कि दाम में वृद्धि होने दी जाये. सरकार की पाॅलिसी इसके ठीक विपरीत है. दाम न्यून रख कर सरकार किसान की आय में कटौती करती है. सिंचाई, सड़क, बीमा और ऋण के माध्यम से किसान भ्रमित हो जाता है और समझता है कि सरकार उसके हित में काम कर रही है.
यदि सरकार ने कृषि उत्पादों के दाम बढ़ने दिये. समर्थन मूल्य बढ़ाया. तब दूसरी समस्या उत्पन्न हो जाती है. दाम ऊंचे होने से किसान उत्पादन बढ़ाता है, लेकिन उपभोक्ता की खपत तथा बाजार में मांग पूर्ववत बनी रहती है.
मजबूरन फूड काॅरपोरेशन को अधिक मात्रा में माल को खरीद कर भंडारण करना पड़ता है. इस भंडार का निस्तारण नहीं हो पाता है, तो गोदामों में गेहूं सड़ने लगता है. मान लीजिये सरकार ने गेहूं के दाम 17 रुपये किलो के ऊंचे स्तर पर निर्धारित कर दिये. लेकिन, विश्व बाजार में आस्ट्रेलियाई गेहूं 12 रुपये में उपलब्ध हो, तो भारतीय गेहूं को 17 रुपये में कोई क्यों खरीदेगा? अतः सच यह है कि समस्या का हल उपलब्ध है ही नहीं. किसान की आय बढ़ाने के लिए दाम में वृद्धि जरूरी है. दाम बढ़ने से उत्पादन बढ़ता है. बढ़े उत्पादन का भंडारण करना पड़ता है. इस भंडार का निस्तारण वैश्विक बाजार में नहीं हो सकता, चूंकि निर्यात सब्सिडी देने पर डब्ल्यूटीओ का प्रतिबंध है.
इस समस्या के फिर भी दो समाधान हैं. पहला, निर्यात सब्सिडी के स्थान पर किसान को ‘भूमि सब्सिडी’ दी जाये. जैसे छोटे किसान को 5,000 रुपये प्रति एकड़ प्रति वर्ष और बड़े किसान को 10,000 रुपये प्रति एकड़ की सब्सिडी दी जाये. फिर दाम को बाजार के हवाले छोड़ दिया जाये. तब गेहूं का दाम 12 रुपये प्रति किलो हो जाये, तो भी किसान मरेगा नहीं. बल्कि दाम गिरने से वह उत्पादन कम करेगा और भंडारण करने की समस्या उत्पन्न नहीं होगी.
किसान को निश्चित आय मिल जायेगी और शहरी उपभोक्ता को सस्ता माल मिल जायेगा. वर्तमान में दी जा रही फर्टिलाइजर एवं फूड सब्सिडी का उपयोग किसान को निश्चित आय देने के लिए किया जा सकता है. फर्टिलाइजर एवं फूड सब्सिडी के लेनदेन में व्याप्त भारी भ्रष्टाचार से भी देश को मुक्ति मिल जायेगी. इन सब्सिडियों पर डब्ल्यूटीओ का प्रतिबंध नहीं है.
दूसरा समाधान है कि ऊंचे मूल्य के कृषि उत्पादन की तरफ किसान को बढ़ाया जाये. आज दुनिया के विभिन्न देशों द्वारा विशेष कृषि उत्पादों के ऊंचे दाम में बेचा जा रहा है. जैसे फ्रांस में अंगूर की खेती करके उससे वाइन बना कर निर्यात किया जाता है. भारत की भौगोलिक स्थिति में अप्रत्याशित विविधिता है. कश्मीर से अंडमान के बीच हर प्रकार का वातावरण उपलब्ध है.
सरकार को चाहिए कि उत्तम श्रेणी के विशेष उत्पादों पर रिसर्च कराये, किसानों को ट्रेनिंग दे और इनके निर्यात को एक सार्वजनिक इकाई बनाये. इन कदमों को उठाने से किसान की स्थिति में सुधार होगा. किसानों के मद्देनजर सिंचाई, सड़क, बीमा और ऋण की वर्तमान पाॅलिसी निष्फल होगी.