विदेश सचिव चीन में
चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे, मसूद अजहर पर पाबंदी के प्रस्ताव पर वीटो तथा न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप में भारत की सदस्यता को रोकने जैसे गंभीर मुद्दों पर भारत और चीन के बीच तनावपूर्ण माहौल में द्विपक्षीय संबधों पर चर्चा के लिए विदेश सचिव एस जयशंकर इन दिनों चीन के दौरे पर हैं. चीनी मीडिया की रिपोर्टों और […]
चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे, मसूद अजहर पर पाबंदी के प्रस्ताव पर वीटो तथा न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप में भारत की सदस्यता को रोकने जैसे गंभीर मुद्दों पर भारत और चीन के बीच तनावपूर्ण माहौल में द्विपक्षीय संबधों पर चर्चा के लिए विदेश सचिव एस जयशंकर इन दिनों चीन के दौरे पर हैं.
चीनी मीडिया की रिपोर्टों और जयशंकर के बयानों से यह संकेत मिल रहा है कि दोनों पक्ष ठोस बातचीत कर रहे हैं. हालांकि, बरसों की तनातनी को देखते हुए तुरंत ही किसी सकारात्मक परिणाम की उम्मीद बेमानी है, पर अपने-अपने हितों की रक्षा के साथ संबंधों में बेहतरी की गुंजाइश भी दोनों देशों के पास है. इस दौरे से पहले ही विदेश सचिव कह चुके हैं कि चीन के साथ अच्छे रिश्ते बहाल करने के लिए ठोस प्रयासों की जरूरत है. बीजिंग में भी उन्होंने कहा है कि बड़े मुद्दों पर अपनी स्थिति में समझौता किये बगैर भारत संबंधों को बरकरार रखने के लिए प्रतिबद्ध है. इस यात्रा की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि दोनों पक्ष सभी विवादित मसलों पर खुल कर चर्चा कर रहे हैं.
बीते कुछ महीनों में मसूद अजहर पर अंकुश लगाने के भारतीय प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में चीन द्वारा वीटो करने, आर्थिक गलियारे के पाकिस्तान के कब्जेवाले भारतीय इलाकों से गुजरने और ताइवान की महिला सांसदों की भारत यात्रा पर दोनों तरफ से तीखी बयानबाजी हुई है. लेकिन, यह भी उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ पिछले साल तीन मुलाकातें हुई हैं.
द्विपक्षीय व्यापार मजबूत होने के साथ ब्रिक्स, शंघाई को-ऑपरेशन ऑरगेनाइजेशन और एशिया इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक जैसे बहुपक्षीय मंचों पर भी दोनों देशों के बीच सहयोग-साझेदारी बढ़ी है. आतंकवाद और संप्रभुता से जुड़े मसलों पर भारतीय चिंताओं पर चीन को सहमत करना बड़ी कूटनीतिक चुनौती है. पाकिस्तान से घनिष्ठता के कारण चीन उसकी हरकतों को नजरअंदाज करता रहता है, परंतु पाकिस्तान के भीतर और चीन-पाक सीमा पर आतंकियों की मौजूदगी चीनी हितों के लिए भी खतरनाक है.
पश्चिमी देशों में उभरती संरक्षणवादी प्रवृत्ति जहां चीन और भारत जैसी तेजी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए चिंताजनक है, वहीं इससे अन्य विकल्पों के रास्ते खुलने के अवसर भी पैदा हो सकते हैं, जिन्हें दोनों देश गंवाना नहीं चाहेंगे. उम्मीद है कि जयशंकर के इस दौरे से बातचीत का सिलसिला शुरू होगा. दक्षिण एवं दक्षिण-पूर्व एशिया के स्थायित्व और विकास के लिए भारत और चीन का मिल कर काम करना बेहद जरूरी है.
राजनीतिक और आर्थिक मोरचे पर अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य की अनिश्चितता को देखते हुए भी दोनों देशों के बीच सहयोग मजबूत होना चाहिए, ताकि बाजार और निवेश की संभावनााएं हकीकत बन सकें.