चुनाव आयोग की चेतावनी

सत्तर सालों के आजाद भारत के इतिहास में लोकतांत्रिक व्यवस्था जहां एक ओर उत्तरोत्तर मजबूत हो रही है, वहीं इसके आधारभूत स्तंभ माने जानेवाले राजनीतिक दलों के नकारात्मक व्यवहारों से इसे नुकसान भी पहुंच रहा है. राजनीति के अपराधीकरण और धन-बल के इस्तेमाल के साथ जातिवादी और धार्मिक भावनाओं को भड़का कर चुनावी जीत हासिल […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 27, 2017 6:12 AM
सत्तर सालों के आजाद भारत के इतिहास में लोकतांत्रिक व्यवस्था जहां एक ओर उत्तरोत्तर मजबूत हो रही है, वहीं इसके आधारभूत स्तंभ माने जानेवाले राजनीतिक दलों के नकारात्मक व्यवहारों से इसे नुकसान भी पहुंच रहा है.
राजनीति के अपराधीकरण और धन-बल के इस्तेमाल के साथ जातिवादी और धार्मिक भावनाओं को भड़का कर चुनावी जीत हासिल करने की प्रवृत्तियां लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा बन रही हैं. देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में यह रवैया बेहद चिंताजनक स्तर पर पहुंच गया है जिसकी वजह से चुनाव आयोग को पत्र लिख कर चेतावनी देनी पड़ी है. कुछ दिन पहले सर्वोच्च न्यायालय ने भी जाति, धर्म और वर्ग के नाम पर लामबंदी करने की मनाही की थी. जन-प्रतिनिधित्व कानून, भारतीय दंड संहिता और आदर्श आचार संहिता में वर्गीय विभाजन को बढ़ावा देनेवाले बयानों और आचरण के विरुद्ध प्रावधान हैं.
यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि इसके बावजूद सर्वोच्च न्यायालय और चुनाव आयोग को बार-बार इस संबंध में निर्देश जारी करने की नौबत आ रही है. यह भी चिंताजनक है कि कुछ दलों को छोड़कर सभी पार्टियां इस खतरनाक खेल में शामिल हैं. आयोग ने उचित ही रेखांकित किया है कि धार्मिक और सामाजिक भेदभाव को उकसाने के बहुत खराब नतीजे होते हैं. मीडिया और सोशल मीडिया के मौजूदा समय में राजनेता और दल देश के अन्य हिस्सों में भड़काऊ बयानबाजी कर उन जगहों पर असर पैदा करने की कोशिश करते हैं जहां चुनाव हो रहे हैं. ऐसा कर वे आचार संहिता के दंडात्मक कायदों से बच जाते हैं. चुनाव में मतदाता बतौर नागरिक विचारधारा और नीतियों के आधार पर अपने प्रतिनिधि चुनता है जिनके द्वारा सरकार का गठन होता है. यदि जातिगत और धार्मिक आधार पर सांसद और विधायक निर्वाचित होंगे, तो उनका ध्यान भेदभाव को बरकरार रखने पर होगा, न कि सुशासन और विकास पर.
ऐसे में आखिरकार नुकसान जनता और देश को ही भुगतना पड़ता है. राजनीतिक दलों और महत्वपूर्ण पदों पर आसीन नेताओं को चुनाव आयोग के निर्देश को गंभीरता से लेना चाहिए तथा आत्ममंथन कर अपने आचरण में तत्काल सुधार करना चाहिए. मतदाताओं की जागरूकता के बिना कोई लोकतंत्र कामयाब नहीं हो सकता है. उन्हें अपने निजी स्वार्थों और सामाजिक पहचान से ऊपर उठ कर विभिन्न पार्टियों और उम्मीदवारों के कार्यक्रमों और गुणों के आधार पर मतदान करना चाहिए. ऐसे तत्वों के लिए लोकतंत्र में कोई जगह नहीं होनी चाहिए जो समाज में वैमनस्य और विभाजन पैदा कर अपने निहित स्वार्थों को साधना चाहते हैं. आयोग को ऐसे नकारात्मक व्यवहारों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए.

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