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होली में भोजपुरी गाने

होली आने को है. स्फूर्तिदायक यह महीना अपने लोकरंग, लोकगीत को लेकर ज्यादा लुभावना प्रतीत होता है. संबंधित गीतों में जहां एक ओर देवर-भौजाई की चुहल है वहीं दूसरी ओर भगवान को होली के रंग में रंगा गया है. इसकी अपनी उमंग है, अपनी मस्ती है. भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर की […]

होली आने को है. स्फूर्तिदायक यह महीना अपने लोकरंग, लोकगीत को लेकर ज्यादा लुभावना प्रतीत होता है. संबंधित गीतों में जहां एक ओर देवर-भौजाई की चुहल है वहीं दूसरी ओर भगवान को होली के रंग में रंगा गया है.
इसकी अपनी उमंग है, अपनी मस्ती है. भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर की रचनाओं में तमाम सामाजिक पक्ष सामने आये हैं. अब तक भोजपुरी फूहड़ता से कोसों दूर थी. समय बदला, नयी पीढ़ी आयी, अब नया दौर है. येनकेन प्रकारेण प्रसिद्धि और पैसा पाने की लालसा ने शालीनता को फूहड़ता में तब्दील कर दिया है.
नारी विमर्श का स्थान देह प्रदर्शन ने ले लिया. भाषा की मिठास और खूबसूरती, डीजे की कर्कश आवाज में खो गयी. अब अंग प्रदर्शन के साथ द्विअर्थी गानों ने बेटियों को शर्मिंदा करना प्रारंभ किया. भिखारी ठाकुर की ‘िबदेसिया’ और ‘गंगा किनारे मोरा गांव’ से आगे बढ़ते हुए हम कहां आ पहुंचे हैं. यह विचारने की आवश्यकता है. सरकारों को इस दिशा में कड़े कदम उठाने चाहिए.
डा अमरजीत कुमार, इमेल से

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