गोपनीयता में सेंधमारी
कई बड़ी ऑनलाइन कंपनियाें के बारे में हमने शायद ही कभी सुना हो, लेकिन आश्चर्य की बात है कि ये कंपनियां हमारे बारे में सब कुछ जानती हैं. ‘डाटा ब्रोकर्स’ के तौर पर काम करनेवाली ये कंपनियां न केवल हमारे नाम, पता, आय, व्यवसाय, यहां तक कि हमारी आदतों से वाकिफ हैं, बल्कि हमारी गोपनीय […]
कई बड़ी ऑनलाइन कंपनियाें के बारे में हमने शायद ही कभी सुना हो, लेकिन आश्चर्य की बात है कि ये कंपनियां हमारे बारे में सब कुछ जानती हैं. ‘डाटा ब्रोकर्स’ के तौर पर काम करनेवाली ये कंपनियां न केवल हमारे नाम, पता, आय, व्यवसाय, यहां तक कि हमारी आदतों से वाकिफ हैं, बल्कि हमारी गोपनीय जानकारियों से मोटा मुनाफा भी कमा रही हैं.
आवासीय पता, मोबाइल नंबर, इ-मेल, उम्र, आय और वैवाहिक स्थिति आदि से जुड़ी तमाम जानकारियों को इकट्ठा कर धड़ल्ले से ऑनलाइन बिक्री हो रही है. उपभोक्ताओं को जानकारी दिये बगैर डाटा ब्रोक्रिंग का यह अपारदर्शी खेल वैश्विक स्तर पर 200 अरब डॉलर की इंडस्ट्री का रूप ले चुका है. इस खेल में मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनियों, डीलर, कंपनी एजेंटों की भूमिका संदेह के घेरे में होती है. सेंधमारी कर गोपनीय सूचनाओं का व्यापार भारत में अभी प्रारंभिक अवस्था में है. लेकिन, जिस तरीके से स्मार्टफोन और इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या बढ़ रही है, इसका बड़े स्तर पर दुष्प्रभाव स्वाभाविक है.
देश में लगभग 30 करोड़ स्मार्टफोन उपभोक्ता खरीदारी, कैब और भोजन ऑर्डर करने तथा ऑनलाइन भुगतान आदि के लिए एप का इस्तेमाल करते हैं. यह आबादी निश्चित ही डाटा ब्रोकरों के निशाने पर है. भौगोलिक सीमाओं से परे व्यक्तिगत आंकड़ों का कहां, कैसे और किसलिए इस्तेमाल हो रहा है, इससे उपभोक्ता और सरकार दोनों ही अनजान हैं. गोपनीयता से जुड़े कानून कितने प्रभावी होंगे, इससे पहले यह जानना जरूरी है कि ऑनलाइन अपराधों की निगरानी कौन और किस प्रकार कर रहा है. आधार, डिजिलॉकर और डीबीटी जैसी सरकारी योजनाओं के माध्यम से बड़े पैमाने पर संवेदनशील गोपनीय आंकड़े ऑनलाइन हो रहे हैं. ऐसे में व्यक्तिगत गोपनीयता को सुनिश्चित कर पाना सरकार के लिए भी बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य है.
मनमाने तरीके से डिजिटल बायोग्राफी बना कर गोपनीय सूचनाओं को एड-नेटवर्क और डाटा एनालिटिक्स कंपनियों तक पहुंचाने में जुटे डाटा ब्रोकर्स पर लगाम लगा पाना फिलहाल आसान नहीं है. निजी सूचनाओं की ऐसी खरीद-बिक्री नागरिक अधिकारों के लिहाज से आपत्तिजनक और आपराधिक तो है ही, देश के वित्तीय तंत्र और सुरक्षा के नजरिये से भी खतरनाक है. ऐसे में, पुख्ता ऑनलाइन गोपनीयता कानून के साथ ऑनलाइन प्लेटफाॅर्म पर संग्रहीत जानकारियों के लिए मुकम्मल पोर्टल जरूरी है, जहां उपभोक्ता खुद जाकर अपने व्यक्तिगत आंकड़ों की निगरानी करने के साथ-साथ अपने गोपनीयता के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकें.