फिर एक चीनी पैंतरा
सीमा और संप्रभुता जैसे अहम व संवेदनशील मुद्दों पर चीन का रवैया हमेशा से ही दुर्भावनाओं से ग्रस्त रहा है. यही वजह है कि द्विपक्षीय और बहुपक्षीय मंचों पर तमाम समझौतों-सहमतियों के बाद भी चीनी रुख पर तमाम आशंकाएं बनी रहती हैं. चीन द्वारा खड़ा किया ताजा विवाद दलाई लामा के अरुणाचल प्रदेश के दौरे […]
सीमा और संप्रभुता जैसे अहम व संवेदनशील मुद्दों पर चीन का रवैया हमेशा से ही दुर्भावनाओं से ग्रस्त रहा है. यही वजह है कि द्विपक्षीय और बहुपक्षीय मंचों पर तमाम समझौतों-सहमतियों के बाद भी चीनी रुख पर तमाम आशंकाएं बनी रहती हैं.
चीन द्वारा खड़ा किया ताजा विवाद दलाई लामा के अरुणाचल प्रदेश के दौरे के संदर्भ में है. चीनी विदेश मंत्रालय के बयान के बाद सरकारी समाचारपत्र ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने एक लेख द्वारा द्विपक्षीय संबंधों के प्रभावित होने का हवाला देते हुए दलाई लामा के प्रस्तावित दौरे पर कड़ी आपत्ति जतायी है. गौर करनेवाली बात है कि लामा ऐसी धार्मिक यात्राएं पहले भी करते रहे हैं. चीन दलाई लामा को आध्यात्मिक गुरु के बजाय तिब्बती अलगाववादी मानता है. ऐसे में चीन का यह कहना कि भारत दलाई लामा को सामरिक व राजनयिक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर दक्षिण एशिया में चीन के आर्थिक और राजनीतिक प्रभावों को कम करना चाहता है, निश्चित ही चीन के विस्तारवादी और अराजक रवैये का स्पष्ट संकेत है.
चीन भारतीय राज्य अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत के रूप में पेश कर उस पर अपना दावा करता है. तिब्बत की राजधानी ल्हासा से 400 किलोमीटर दूर स्थित अरुणाचल का तवांग क्षेत्र बौद्ध धर्म का प्रमुख तीर्थस्थल है, जिस पर चीन सांस्कृतिक पृष्ठभूमि और प्रशासनिक अधिकार क्षेत्र के तहत दावा करता आया है. तवांग क्षेत्र मैकमोहन सीमा रेखा के दक्षिण में स्थित है. ब्रिटिश भारत और तिब्बत के बीच 1914 में हुए शिमला समझौते के तहत तय की गयी मैकमोहन रेखा को चीन अस्वीकार करता है.
चीन के अड़ियल रवैये की वजह से सीमा विवाद पर कई दौर की वार्ताएं अंजाम तक नहीं पहुंच सकी हैं. गत माह विदेश सचिव एस जयशंकर के नेतृत्व में हुई भारत-चीन सामरिक वार्ता में चीन ने सभी विवादित मसलों पर उच्च-स्तरीय बातचीत का सिलसिला जारी रखने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की थी. चीन इससे पहले राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के साथ दलाई लामा की मुलाकात पर भी ऐतराज जता चुका है. दोनों ही उभरती अर्थव्यवस्थाओं की वैश्विक वित्त व्यवस्था में अहम भूमिका है.
साथ ही जलवायु परिवर्तन, वैश्विक तापमान और अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद जैसे मुद्दों पर परस्पर हितों के परिप्रेक्ष्य में दोनों देशों की सहमति और सहभागिता का होना जरूरी है. भारत ने बार-बार यह स्पष्ट शब्दों में कहा है कि वह चीन के साथ दोस्ताना संबंध चाहता है. चीन को भी इस भावना का सम्मान करना चाहिए. एशिया और दुनिया में बदलती स्थितियों में दोनों देश आपसी साझेदारी से महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं.