बदलेगा चीन का रवैया!

भारत और चीन संबंध किस दिशा में करवटें बदल रहा है? यह जिज्ञासा न केवल क्षेत्रीय महत्व का एक बड़ा मुद्दा है, बल्कि दुनिया की भी इस पर बारीक नजर होती है. दरअसल, बड़ी आबादी और अर्थव्यवस्था वाले दोनों पड़ोसी देश वैसे तो ब्रिक्स, शंघाई सहयोग संगठन, जी-20 और पूर्वी एशिया समिट जैसे साझा मंचों […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 9, 2017 6:50 AM

भारत और चीन संबंध किस दिशा में करवटें बदल रहा है? यह जिज्ञासा न केवल क्षेत्रीय महत्व का एक बड़ा मुद्दा है, बल्कि दुनिया की भी इस पर बारीक नजर होती है. दरअसल, बड़ी आबादी और अर्थव्यवस्था वाले दोनों पड़ोसी देश वैसे तो ब्रिक्स, शंघाई सहयोग संगठन, जी-20 और पूर्वी एशिया समिट जैसे साझा मंचों के साथ-साथ द्विपक्षीय स्तर पर भी गंभीरता के साथ मिलते हैं, लेकिन वर्षों से दोनों के बीच सीमा विवाद समेत जैसे कई मतभेदों का अवरोध भी बना हुआ है.

परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में भारत के प्रवेश और संयुक्त राष्ट्र द्वारा मसूद अजहर पर पाबंदी लगाने के भारतीय प्रयासों पर चीनी अड़ंगा बड़ा सिरदर्द बना हुआ है. हालांकि, 19वें एशियाई सुरक्षा सम्मेलन में चीनी प्रतिनिधि मा जियांगयू द्वारा दिया गया बयान कि चीन जल्द ही एनएसजी में भारत के प्रवेश और मसूद अजहर मामले में पुनर्विचार करेगा, एक सकारात्मक बदलाव का संकेत है.

परमाणु अप्रसार में भारत की बेहतर और साफ छवि की बात को स्वीकारने के बावजूद चीन का यह कहना कि एनएसजी मामले में पाकिस्तान को भी बराबर का मौका देना चाहिए, निश्चित ही उसकी मंशा पर सवाल खड़े करता है. पाकिस्तान पर लीबिया को परमाणु हथियारों की तकनीक के हस्तांतरण का आरोप होने के बावजूद चीन द्वारा पाकिस्तान को समर्थन दुर्भाग्यपूर्ण है. जबकि, एनएसजी के ज्यादातर सदस्य देश इस बात को स्वीकार करते हैं कि परमाणु अप्रसार के मामले में भारत और पाकिस्तान के बीच कोई तुलना ही नहीं हो सकती. भारत के ‘पहले इस्तेमाल नहीं करने’ की नीति भारत के जिम्मेवार राष्ट्र होने का सबसे बड़ा प्रमाण है. आतंकवाद पर चीन की दोहरी नीति जगजाहिर है.

पठानकोट हमले के बाद जैश-ए-मोहम्मद सरगना अजहर मसूद को आतंकी घोषित कराने के भारत के प्रयासों को चीन सुरक्षा परिषद् में बाधित करता रहा है. इस मामले में अमेरिकी प्रस्ताव पर भी चीन का रवैया खेदपूर्ण रहा है. गौर करनेवाली बात है कि चीन खुद को आतंकवाद से उलझा हुआ दिखाता है, लेकिन भारतीय सवाल पर आतंकवाद को वैश्विक और क्षेत्रीय आधार पर परिभाषित करता है. हालांकि, चीनी प्रतिनिधि ने अजहर मामले में चीन द्वारा पुनर्विचार करने की बात कही है, लेकिन अभी ज्यादा उम्मीद पालना ठीक नहीं है.

पर्याप्त सबूत नहीं होने का हवाला देकर अजहर मामले में रोक लगानेवाले चीन को यह समझना चाहिए कि संयुक्त राष्ट्र में यह मुद्दा अब अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस द्वारा भी उठाया जा रहा है. इसमें संदेह नहीं कि अड़ियल रुख अपनाने से नुकसान के सिवाय किसी को फायदा नहीं होगा. ऐसे में द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर बनाते हुए मिल-जुल कर बहुत सारे मुद्दों का ठोस हल निकालने पर ध्यान दिया जाना चाहिए.

Next Article

Exit mobile version