अमन की चाहत के दुश्मन

पुष्पेश पंत वरिष्ठ स्तंभकार भीड़-भाड़ में बच्चों के अपने अभिभावकों से बिछुड़ कर गुम होने की खबरें मिलती रहती हैं अौर कभी-कभार मानसिक तनावग्रस्त वयस्क व्यक्ति भी बिना किसी को बताये घर-दफ्तर से निकल कर गायब हो जाते हैं. परंतु, किसी मशहूर हस्ती का अचानक नदारद होना असाधारण घटना ही कही जा सकती है. पाकिस्तान […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 20, 2017 6:56 AM
पुष्पेश पंत
वरिष्ठ स्तंभकार
भीड़-भाड़ में बच्चों के अपने अभिभावकों से बिछुड़ कर गुम होने की खबरें मिलती रहती हैं अौर कभी-कभार मानसिक तनावग्रस्त वयस्क व्यक्ति भी बिना किसी को बताये घर-दफ्तर से निकल कर गायब हो जाते हैं. परंतु, किसी मशहूर हस्ती का अचानक नदारद होना असाधारण घटना ही कही जा सकती है. पाकिस्तान की यात्रा पर निकले दिल्ली की हजरत निजामुद्दीन अौलिया की दरगाह के सूफी धर्मगुरु अौर उनके साथी का कराची में लापता हो जाना निश्चय ही चिंता का विषय है. इनमें एक बुजुर्ग अस्सी की दहलीज पार कर चुके हैं अौर यह सोचना जायज है कि उनके मेजबानों ने तीस साल बाद पाकिस्तान पहुंचे इस मेहमान को उनके लिए अनजान शहर में उन्हें अकेला नहीं छोड़ा होगा.
परेशानी का एक अौर सबब है. कुछ ही दिन पहले सूफी पीर शाहबाज कलंदर की दरगाह को कट्टरपंथी इस्लामी दहशतगर्दों ने निशाना बनाया था. इस हमले में कई मासूमों ने अपनी जानें गंवायी. आक्रामक वहाबी इस्लाम के अनुयाई सूफियों को मुसलमान नहीं मानते अौर उनको काफिर सरीखा समझ बर्दाश्त नहीं कर सकते. कुछ ही दिन पहले एक लोकप्रिय सूफी गायक को भी बेरहमी से मार डाला गया था. इस बात को अनदेखा करना कठिन है कि पाकिस्तान में असहिष्णुता का ज्वार निरंतर उफनता रहा है अौर ‘ईश निंदा’ के अपराध के लिए राज्य द्वारा मृत्युदंड मुकर्रर है. इस परिप्रेक्ष्य में यह आशंका निराधार नहीं कि कट्टरपंथी एवं अापराधिक तत्वों की किसी साजिश की चपेट में भारतीय तीर्थयात्री न आ गये हों.
भारतीय विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान सरकार से अपेक्षित कार्रवाई का अनुरोध किया है, पर पाकिस्तान की निर्वाचित सरकार की लाचारी एकाधिक बार जगजाहिर होने के कारण ज्यादा आशावादी होना कठिन है.
अक्सर यह सुझाया जाता है कि दोनों देशों के नागरिक अमन चाहते हैं अौर परस्पर अनौपचारिक गैरसरकारी संपर्क भरोसा बढ़ानेवाले राजनयिक प्रयासों को पुष्ट कर सकते हैं. कभी यह तर्क स्थगित क्रिकेट मैचों के पुनरारंभ के लिए दिया जाता है, तो कभी गायकों-अभिनेताअों आदि को उदारता से वीजा देने के पक्ष में. तब दो देशों के बीच संबंध सामान्य होते नजर आते हैं, जब राह भटके किसी सरहदी गांव पर रहनेवाले पाकिस्तान या भारत पहुंच जाते हैं अौर सद्भावनावश उन्हें शत्रुपक्ष का जासूस समझ कर बंदी नहीं बना लिया जाता, वरन सकुशल वापस स्वदेश भेज दिया जाता है.
जहां तक भारत का प्रश्न है, वह चाह कर भी उदार नहीं बन सकता. बरसों से उसे आतंकवादी घुसपैठ लहूलुहान कर रही है अौर मासूम वंचित किसी ग्रामीण को फिदाईन हथियार बनाया जा सकता है.
इस सब का निष्कर्ष यह नहीं निकाला जाना चाहिए कि दोष सिर्फ पाकिस्तान का है. भारत में भी युद्ध की मानसिकता को बढ़ावा देनेवाले ऐसे अवकाशप्राप्त सेनानायकों, उग्र-राष्ट्रवादियों की कमी नहीं, जिनका मानना है कि हर ईंट का जवाब पत्थर से ही दिया जाना चाहिए.
इस बात को नजरंदाज नहीं किया जा सकता कि भारत फौजी तानाशाही से मुक्त रहा जनतांत्रिक राज्य है, जिसकी धर्मनिरपेक्षता वर्तमान सरकार के आलोचकों को इस घड़ी संकटग्रस्त लगती है, पर उसे हिंदू राज्य कतई नहीं कहा जा सकता.
भारत की आबादी का बड़ा हिस्सा मुसलमानों का है, जिनकी कुल संख्या पाकिस्तान की आबादी के बराबर है. जिन्हें बहुसंख्यक कहा जाता है, वे जाति, भाषा, क्षेत्रीयता के आधार पर विभाजित हैं. दलित अौर आदिवासी नागरिकों को बहुसंख्यक समुदाय का सदस्य घोषित करने की उतावली कोई समझदार व्यक्ति नहीं कर सकता. जाहिर है कि भारत ‘आदर्श’ नहीं. यह हमारे राष्ट्रहित में है कि समतापूर्ण समाज की स्थापना के लिए पड़ोस का माहौल सुस्थिर बना रहे. पाकिस्तान के साथ मैत्री ही सर्वश्रेष्ठ विकल्प है.
विडंबना यह है कि पाकिस्तान के शासक वर्ग के लिए यह विकल्प सर्वश्रेष्ठ नहीं. जो न्यस्त स्वार्थ वहां ताकतवर हैं, उनके अस्तित्व के लिए जनतंत्र खतरनाक है.
इसीलिए कट्टरपंथी धर्मांध तत्वों के साथ फौजी हुक्मरानों का गंठजोड़ अरसे से चला आ रहा है. इस कड़वे सच से भी हम मुंह नहीं मोड़ सकते कि जनरल जिया के शासन काल में पाकिस्तान का जो ‘इस्लामीकरण’ शुरू हुआ था, वह इस्लामी कट्टरपंथी द्वारा प्रायोजित आतंकवाद के कारण भारत के लिए निरंतर विकराल चुनौती बनता गया है. अमेरिका ने अपने सामरिक हितों के दबाव में पाकिस्तान में ऐसे तत्वों को फलने-फूलने दिया है. ऐसे में यह कल्पना करना कठिन है कि अवाम की भलमनसाहत अौर अमन की चाहत दोनों देशों के बीच तनाव घटा सकती है.
यही कारण है कि भारत में स्थित सूफी दरगाह से जुड़े यात्रियों का गुम होना अप्रत्याशित तनावों को जन्म देता है. कुछ समय पहले एक पुराना पंजाबी लोकगीत सुना था- ‘रावी के कंडे साडा सांई डेरा डाला!’ पहले इस गीत की एक पंक्ति का अंश था- ‘मेरा पीर है अजमेरी’. अब इसे संशोधित कर दिया गया है. नया अंश है- ‘मेरा पीर है उजबेगी’. सूफी सिलसिलों की साझे की इस विरासत का नष्ट होना निश्चय ही बेहद चिंताजनक है.

Next Article

Exit mobile version