कौन जाने 2019 में क्या होगा!
आकार पटेल कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ‘भविष्यवाणी करना कठिन है, खासकर भविष्य के बारे में.’ माना जाता है कि यह उक्ति अमेरिकी बेसबाॅल खिलाड़ी योगी बेर्रा ने कही थी. योगी का असली नाम लोरेंजो था, लेकिन भारतीयों की तरह आराम से पालथी मार कर बैठ सकने के कारण उन्हें योगी कहा जाता था. बिना […]
आकार पटेल
कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया
‘भविष्यवाणी करना कठिन है, खासकर भविष्य के बारे में.’ माना जाता है कि यह उक्ति अमेरिकी बेसबाॅल खिलाड़ी योगी बेर्रा ने कही थी. योगी का असली नाम लोरेंजो था, लेकिन भारतीयों की तरह आराम से पालथी मार कर बैठ सकने के कारण उन्हें योगी कहा जाता था. बिना योगी या अध्यात्मिक हुए 2019 में होनेवाले चुनाव की भविष्यवाणी से दूर रह कर भी हम 2014 की सीटों की संख्या पर नजर डाल कर, उनको अलग-अलग बांट कर और उनका विश्लेषण कर 2019 की संभावनाओं के बारे में जान सकते हैं.
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिली जीत को देखते हुए 2019 में नरेंद्र मोदी के सत्ता में लौटने को अवश्यंभावी माना जा रहा है. अगर ऐसा है, तो इसके लिए क्या करना चाहिए? पिछले चुनाव में मतगणना से पहले मोदी ने भविष्यवाणी की थी कि उनकी रैली में जुटनेवाली भीड़ ने उन्हें बताया था कि उन्हें पूर्ण बहुमत मिलेगा, जो 1984 के बाद से किसी दल को नहीं मिली थी. यह बात सही साबित हुई और उन्हें 543 में 282 सीटें मिलीं.
मोदी को ज्यादातर सीटें भारत के उत्तरी राज्यों से प्राप्त हुईं. जिन राज्यों में उनका खासा वर्चस्व रहा था, वहां या तो भाजपा की सरकार थी, या उसकी मजबूत उपस्थिति थी. ये राज्य थे- मोदी का गृह राज्य गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश.
इस चुनाव में उत्तरी राज्यों में ज्यादातर सीटें हासिल करने और उत्तर-पूर्व में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के बाद मोदी के हाथ में 200 से अधिक सीटें आ गयी थीं. इसके बाद मोदी को देश के दूसरे हिस्सों में केवल औसत प्रदर्शन करने की जरूरत थी. इसलिए, उनके लिए सबसे आसान रास्ता यही होगा कि वे अपने पिछले प्रदर्शन को दोहरा दें. हालांकि, उत्तरी राज्यों में इस प्रदर्शन को दोहराना उनके लिए चुनौतीपूर्ण साबित होगा. संभावना है कि 2019 में कुछ राज्यों, जैसे- राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और संभवत: उत्तर प्रदेश में भाजपा वर्तमान की तरह बहुत मजबूत पकड़ कायम नहीं रख सकेगी. कोई भी हमेशा श्रेष्ठ प्रदर्शन नहीं कर सकता. गुजरात में भाजपा अपने सबसे विश्वसनीय मतदाता पाटीदार समुदाय का विरोध झेल रही है. पटेलों के धरने के बाद हुए स्थानीय निकाय चुनाव से पता चलता है कि भले ही यहां शहरों में कांग्रेस अब भी पीछे है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में जीतने की अपनी क्षमता को उसने अभी बरकरार रखा है. राजस्थान में सचिन पायलट जैसे सक्षम स्थानीय नेता असर डाल सकते हैं. पंजाब की तरह, यहां भी एक-एक सीट पर घमासान होगा और सभी सीटों पर जीत दर्ज करना आसान नहीं होगा.
मोदी के लिए यह सौभाग्य है कि उनके पास दूसरे बड़े राज्यों में बेहतर करने के कुछ अवसर मौजूद हैं.
वे महाराष्ट्र, बिहार, ओडिशा और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में अपनी सीटों की संख्या बढ़ा सकते हैं. महाराष्ट्र में कांग्रेस, शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस और उद्धव ठाकरे की शिवसेना को प्रभावहीन कर भाजपा प्रमुख पार्टी बन चुकी है. अगर किसी एक राज्य में कांग्रेस तेजी से पिछड़ रही है, तो वह राज्य महाराष्ट्र है. बिहार में, एकजुट विपक्ष ने विधानसभा चुनाव में भाजपा को हरा दिया था. हालांकि, 2014 से भाजपा का वोट शेयर कम नहीं हुआ. क्या यह महागंठबंधन 2019 तक एकजुट बना रहेगा? यह आसान नहीं होगा. राष्ट्रीय नेता के तौर पर राहुल गांधी अमान्य हैं. नीतीश कुमार खुद को प्रधानमंत्री पद के दावेदार के तौर पर देख सकते हैं.
इसका यह अर्थ हुआ कि गंठबंधन बनाने के लिए सबको सहमत करना जटिल कार्य होगा और इससे मोदी को फायदा होगा.ओडिशा और पश्चिम बंगाल में कभी भी भाजपा की सरकार नहीं रही है. हालांकि, ओडिशा में हुए हालिया स्थानीय चुनावों में भाजपा कांग्रेस को मुख्य विपक्षी दल के स्थान से हटा कर खुद उस स्थान पर आने में सफल रही है. यह चलन बरकरार रहेगा और ऐसा होना निश्चित लग रहा है. बंगाल में भी अपने पांव जमाने में भाजपा कामयाब रही है. वाम दल और कांग्रेस के पास वह शक्ति नहीं, जिसके सहारे वे पश्चिम बंगाल में भाजपा को ममता बनर्जी के तृणमूल कांग्रेस का मुख्य विपक्षी दल बनने से रोक पायेंगे. आनेवाले समय में भाजपा अगर यहां की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन जाये, तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए.
चूंकि बिहार, महाराष्ट्र, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में भाजपा के लिए गुंजाइश बची है, ऐसे में मोदी के लिए दक्षिणी राज्यों में जीत दर्ज करना जरूरी नहीं रह जायेगा. हालांकि, यहां उनकी स्थिति अच्छी है. कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना में वे अपना प्रदर्शन बरकरार रखेंगे या बेहतर करेंगे. इनमें से कुछ राज्यों में हार के बाद भी भाजपा के पास अच्छा वोट शेयर है (उदाहरण के लिए, केरल में 10 प्रतिशत). यहां स्थायी तौर पर भाजपा की उपस्थिति दर्ज हो गयी है.
कुछ हद तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं (यहां के स्थानीय चुनावों में जब भी जीत दर्ज हुई है, मोदी ने हमेशा इन कार्यकर्ताओं को बधाई दी है और उनका धन्यवाद किया है) की वजह से ऐसा संभव हुआ है. संघ का यह नेटवर्क भाजपा की परिसंपत्ति है, जो किसी दूसरी पार्टी के पास नहीं है. पहली बार संसद में प्रवेश करने पर मोदी ने सही कहा था कि तीन दशकों से हिंदुत्व वादियों ने अपना बलिदान दिया है, तब जाकर उन्हें भाजपा के पूर्ण बहुमत वाली सरकार का नेतृत्व करने का अवसर प्राप्त हुआ है. दक्षिण में भाजपा के उदय का कारण कुछ हद तक कांग्रेस का पतन भी है और पूरे भारत में आज ऐसी ही स्थिति है. नि:संदेह 2019 के चुनाव का एक महत्वपूर्ण बिंदु यह भी होगा कि क्या राहुल गांधी अमेठी में जीत पायेंगे?
ज्यादातर लोग ऐसा मान कर चल रहे थे कि 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी को बहुमत मिल जायेगा. और यह भी सच है कि वे खुद जीत को लेकर इतने आश्वस्त थे कि उन्होंने छह महीने पहले ही चुनाव की घोषणा कर दी. अंतत: वे चुनाव हार गये. और इसलिए, अभी से इस बात की भविष्यवाणी करना कि दो वर्ष बाद 2019 में क्या होगा, मूर्खता होगी. यह भी देखने में आया है कि सरकार और नायकों ने बेहद कम समय में अपनी लोकप्रियता खो दी है. यद्यपि, नरेंद्र मोदी के लिए संख्या अच्छी दिखायी दे रही है. हम यह कह सकते हैं कि विपक्ष की जीत की बजाय साल 2019 का चुनाव मोदी का होगा, जिसमें वे हार भी सकते हैं.