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गुटकों का देश

आलोक पुराणिक वरिष्ठ व्यंग्यकार गुटका विषय पर आयोजित निबंध प्रतियोगिता में जिस निबंध को प्रथम स्थान मिला, वह इस प्रकार है- हमारा देश गुटका प्रधान देश है. वह इस गुट का, यह उस गुट का, वह निर्गुट सा लगनेवाला पर इस या उस गुट का. इस तरह के विमर्श हम राजनीति और साहित्य में लगातार […]

आलोक पुराणिक
वरिष्ठ व्यंग्यकार
गुटका विषय पर आयोजित निबंध प्रतियोगिता में जिस निबंध को प्रथम स्थान मिला, वह इस प्रकार है- हमारा देश गुटका प्रधान देश है. वह इस गुट का, यह उस गुट का, वह निर्गुट सा लगनेवाला पर इस या उस गुट का. इस तरह के विमर्श हम राजनीति और साहित्य में लगातार सुन सकते हैं. राजनीति में तो साहित्य न आ पाया, पर साहित्य में राजनीति मजबूती से मौजूद है.
राजनीति में गुट होते हैं, गुटों की राजनीति होती है. पर, विषय तो गुटका था. गुटका अध्ययन के क्षेत्र में भी बहुत पाया जाता है. गुटका संस्करण ज्यादा बिकता है. ट्विटर क्या है, गुटका संस्करण है विद्वत्ता का. 140 अक्षर में ज्ञान ठेल कर निकल लो, इससे ज्यादा कोई नहीं पढ़ने का. तो गुटके का गहन महात्म्य है. हजारों पेज के उपन्यास लिख कर लेखक पाठक को तरसता रहता है, 140 अक्षरों में कोई सुपर हिट हो जाता है.
गुटका यानी पान-मसाले का लघु संस्करण जब पाउच में आया, तो उसे पान-मसाले का गुटका कहा गया, पर कालांतर में खाने योग्य इस आइटम के अंत में गुट के बाद खा लगा कर इसे गुटखा के तौर पर लोक-प्रचलित कर लिया गया है. गुटखा मुंह में भर कर खाया जानेवाला ऐसा खाद्य पदार्थ है, जिसके मुंह में जाते ही बंदा विद्वानों की श्रेणी में शुमार हो जाता है. यानी बंदा शांत हो जाता है. शांत आदमी कालिदास के जमाने से ही विद्वान माना जाता है. बेवकूफ, चोर और आशिक चुप ही शोभा देते हैं, ऐसा प्राचीन ग्रंथों में आता है. बेवकूफी और आशिकी तो अब स्मार्ट फोन के चलते फेसबुक, ट्विटर पर भी संभव है. पर छोटी चोरी ट्विटर, फेसबुक पर नहीं हो सकती है, उसके लिए आॅफलाइन जाना पड़ता है. इसलिए चोरों को आशिक और बेवकूफों की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता. खैर, कतिपय नेताओं को भी चुप ही रहना चाहिए. पर मूल मसला गुटखे का था, जिसे खाकर कोई सहज ही बुद्धिजीविता अर्जित कर लेता है.
गुटखा अच्छे-अच्छे बुद्धिजीवी को भी शांत कर देता है, तब भी, जब उसके मुंह में गुटखा नहीं होता है. गुटखा-जनित परिणामों से दांत-मुंह की हालत ऐसी हो जाती है कि किसी और को दिखाने में शर्म तो बाद में, पहले खुद ही देखने में शर्म आती है.
गुटखाऊ यानी गुटखा खानेवाला अपने दांतों में अजंता-एलोरा की कलात्मक गुफाएं लिये घूमता है. आप किसी भी गुटखाऊ के दांतों के क्लोज शाट लें और उन्हे देखें, तो भीमबेटका की गुफाओं के भित्तिचित्र जैसा कुछ सामने आ जाता है. हर गुटखाऊ चलता-फिरता भीमबेटका है. अजंता एलोरा है. गुटखाऊ के मुंह का सिंहावलोकन करके आप भारत के चित्रकला स्कूलों का परिचय पा सकते हैं.

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