वधशाला बंद करना नोटबंदी से अधिक खतरनाक कदम प्रतीत हो रहा है. नोटबंदी में अपना पैसा कुछ समय के बाद विनिमय हो सकता था, जबकि वधशाला बंदी से कामगारों की पूंजी ही डूब गयी है. लाखों परिवार सड़क पर आ गये हैं. कोई भी कदम उठाने से पहले उसके भविष्य के परिणामों को देख लिया जाना चाहिए. अचानक ही, जो लोग बेरोजगार हो गये हैं. सरकार को उनके परवरिश, भरण-पोषण के लिए वैकल्पिक रोजगार उपलब्ध कराना चाहिए. नोटबंदी की मार झेल रहा परिवार अब इस वधबंदी से त्रस्त हो गया है. सरकार मुसीबत झेल रहे परिवारों के लिए कोई रास्ता निकाले.
गुलाम गौस आसवी, धनबाद.