चंपा और उसकी चंपई

क्षमा शर्मा वरिष्ठ पत्रकार बड़े पेड़ों के मुकाबले चंपा के मध्यम कद-काठी के पेड़ की शाखाएं आसमान की तरफ उठी हैं. पता नहीं किसे बुला रही हैं. नयी कोंपलों और उनसे बने हरियल पत्ते अपनी चमक और रूप पर इतरा रहे हैं. हवा की ताल पर ताल, और पक्षियों के कलरव पर सुर मिला रहे […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 6, 2017 5:51 AM
क्षमा शर्मा
वरिष्ठ पत्रकार
बड़े पेड़ों के मुकाबले चंपा के मध्यम कद-काठी के पेड़ की शाखाएं आसमान की तरफ उठी हैं. पता नहीं किसे बुला रही हैं. नयी कोंपलों और उनसे बने हरियल पत्ते अपनी चमक और रूप पर इतरा रहे हैं. हवा की ताल पर ताल, और पक्षियों के कलरव पर सुर मिला रहे हैं. थोड़े दिन बाद यह पेड़ फूलों से भर जायेगा. सवेरे-सेवेरे इसके नीचे फूल की छिटके दिखाई दिया करेंगी.
इस पेड़ पर गौरैया और कबूतरों का आना-जाना लगा रहता है. कई बार एक कौआ भी आकर बैठता है. और इन दिनों लाल चोंच-काली कंठी वाला तोता भी हवा से इधर-उधर बलखाती टहनियों की शोभा बढ़ाता है. वह अपनी गरदन घुमा कर दुनिया को उड़ती नजरों से देखता है.
फिर आसपास फुदकती गौरैया को देख कर आंख सफेद कर लेता है. तोते अक्सर गुस्से में आंखें सफेद करते हैं, तो आखिर गौरैया को देख कर उसे गुस्सा क्यों आता है. कहीं उसे यह तो नहीं लगता कि इस गौरैया के तो मजे हैं. चंपा पर अधिकार जमाये है. उसकी खोखल में अपना भी घर बसाता. और फ्री में फूलों की खुशबू का आनंद उठाता. पक्षियों की इस लड़ाई के बारे में चंपा का पेड़ क्या सोचता होगा. शायद मन ही मन मुस्कुराता होगा. तना उसका, फूल उसके, पत्ते उसके और उन पर अधिकार कोई और जमाये.
भारत में चंपा के पेड़ और उससे ज्यादा उसके हलकी पीली आभा वाले या सफेद रंग के फूलों का महत्व है. सुंदरता का बयान करने के लिए अक्सर उपमा दी जाती है कि उसका रंग तो इतना चमकीला है, जैसे चंपा का फूल, बिल्कुल चंपई रंग. पहले समाज की नजरों में सुंदर कही जानेवाली लड़कियों का नाम भी चंपा रखा जाता था. गांवों में लड़कियों का यह नाम बहुत लोकप्रिय था. पहले यह पेड़ मंदिरों के आसपास भी पाया जाता था. इसीलिए अंगरेजों ने इसे नाम दिया- टेंपल ट्री.
चंपारण सत्याग्रह के सौ साल हुए हैं. अकसर सोचती रही हूं कि इस जगह का नाम चंपारण क्यों पड़ा होगा. हाल ही में इस इलाके के अपने एक मित्र से पूछा कि क्या चंपारण का मतलब चंपा के अरण्य से है क्या. उन्होंने कहा कि हां. यहां चंपा के जंगल ही जंगल थे. कितनी खूबसूरती से नाम रखने की परंपरा है, जो आसपास के जनमानस से आती है.
अपनी रसोई की खिड़की से दिखते चंपा के पेड़ को जब भी देखती हूं, तो लगता है कि क्या जिस तरह से मेरी नजर उसके पत्तों-फूलों-टहनियों को गिनती रहती है, उस पर आनेवाले पक्षियों को पहचानती है, वह भी मुझे पहचानता होगा? जिस दिन खिड़की से मेरा चेहरा नजर न आता होगा, क्या वह भी उदास हो जाया करता होगा? मेरा यह दोस्त पेड़ ऐसे ही खड़ा मुस्कुराता रहे. इसके फूल की खुशबू से दिग-दिगंत महकता रहे.

Next Article

Exit mobile version