चीजें जल्दी बिगड़ी नहीं, तो जल्दी सुधरेगी भी नहीं
पिछले वर्ष कई जगहों पर बारिश का जल संचित करने के लिये डोभा का निर्माण किया गया. इस साल गर्मी के आगाज के साथ ही कई जगहों से पानी की किल्लत की खबरें आने लगी है. पिछले वर्ष डोभा निर्माण के बाद कई लोगों ने सोचा होगा कि उन्होंने तो अपना काम कर दिया है, […]
पिछले वर्ष कई जगहों पर बारिश का जल संचित करने के लिये डोभा का निर्माण किया गया. इस साल गर्मी के आगाज के साथ ही कई जगहों से पानी की किल्लत की खबरें आने लगी है. पिछले वर्ष डोभा निर्माण के बाद कई लोगों ने सोचा होगा कि उन्होंने तो अपना काम कर दिया है, इसलिए अगले वर्ष उन्हें पानी की कमी से दो-चार नहीं होना होगा.
पर लोग शायद यह भूल गये हैं कि स्थिति को बिगाड़ने में जहां इतने साल लगाये हैं, तो उसको सुधारने में कम से कम 10-15 प्रतिशत वक्त तो देना चाहिये. प्रकृति तो खुद लुटा रही है. इसको बहुत ज्यादा वक्त्त की दरकार नही है. हमने तो अपनी जेबें फाड़ रखी हैं, जिसमें वर्षाजल के रूप में कितना भी धन डाला जाये, रुकेगा नहीं.
सीमा साही ,बोकारो