बेवजह चीनी उतावलापन

दो देशों के रिश्ते में इतिहास का भूत किस वक्त कंधे पर सवार होकर उलटबांसी बोलने लगे, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है. शायद ही किसी ने सोचा होगा कि दलाई लामा की अरुणाचल प्रदेश की यात्रा की चीन सख्त नोटिस लेगा और दोनों देशों का सीमा-विवाद फिर से पूरी कटुता के साथ उभर आयेगा. भारत-चीन […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 7, 2017 5:50 AM

दो देशों के रिश्ते में इतिहास का भूत किस वक्त कंधे पर सवार होकर उलटबांसी बोलने लगे, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है. शायद ही किसी ने सोचा होगा कि दलाई लामा की अरुणाचल प्रदेश की यात्रा की चीन सख्त नोटिस लेगा और दोनों देशों का सीमा-विवाद फिर से पूरी कटुता के साथ उभर आयेगा.

भारत-चीन संबंधों पर नजर रखनेवाले चीनी विशेषज्ञ मामले को और तूल देने पर लगे हैं. अरुणाचल प्रदेश के उत्तर-पश्चिमी हिस्से में तिब्बत और भूटान से लगती सीमा के पास 15-16वीं सदी का बना तवांग मठ है. पांचवें दलाई लामा के आशीर्वाद से बना यह मठ तिब्बत के निवासियों और भारतीयों दोनों की सांस्कृतिक अस्मिता का महत्वपूर्ण प्रतीक है. दलाई लामा के तवांग मठ की यात्रा पर त्यौरियां चढ़ाते हुए चीनी मीडिया युद्ध की भाषा बोल रहा है. उसने दशकों पुराना अपना दावा दोहराया है कि भारत इस मठ को चीन को लौटा दे. चीनी मीडिया और रक्षा-विशेषज्ञों के तेवर कुछ ऐसे हैं, मानो दलाई लामा ने अरुणाचल जाकर चीन की संप्रभुता को ठेस पहुंचायी हो और तिब्बत पर चीनी कब्जे को खतरा पैदा हो गया हो.

चीनी रक्षा-विशेषज्ञ यह तक कहने से नहीं चूक रहे कि दलाई लामा की यात्रा से चिढ़ कर चीन भारतीय सीमा में घुसपैठ की अपनी पुरानी रवायत दोहरा सकता है, द्विपक्षीय रिश्तों को गति देनेवाले उपायों से अपने कदम पीछे खींच सकता है और पड़ोसी पाकिस्तान को भारत के विरुद्ध उकसावा दे सकता है. दलाई लामा कोई पहली बार अरुणाचल प्रदेश नहीं गये. इससे पहले 1983, 1997, 2003 और 2009 में वे वहां जा चुके हैं. वर्ष 2009 की उनकी अरुणाचल यात्रा पर ऐतराज जताते हुए चीन ने कहा था कि इससे भारत के साथ रिश्ते में खटास आयेगी और यात्रा चीन की क्षेत्रीय स्वायत्तता का अतिक्रमण है.

तब से अब तक काफी वक्त बीत चुका है और बदले हुए वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में चीन और भारत एक-दूसरे के करीब आये हैं. ब्रिक्स देशों का साझा मंच बना कर दोनों देश वैश्विक आर्थिक भागीदारी का एक नया अध्याय लिख रहे हैं. हाल-फिलहाल विकसित मुल्कों द्वारा अपनायी जा रही संरक्षणवादी नीतियों को दोनों ही देशों ने समान रूप से वैश्वीकरण के मान-मूल्यों के विपरीत मान कर विरोध किया है. तिब्बत को लेकर दलाई लामा का रुख भी 1959 जैसा नहीं है.

बदले हुए परिवेश में अरुणाचल प्रदेश या फिर दलाई लामा को लेकर चीन की संवेदनशीलता अपनी क्षेत्रीय संप्रभुता की चिंता से कम और इलाके में अपनी धौंसपट्टी दिखाने की मंशा की ऊपज ज्यादा लगती है. उम्मीद है कि भारत नकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त करने की जगह द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने की कोशिश जारी रखेगा.

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