इस चुनाव में चेहरे भी नये और नारे भी
।। दीपक कुमार मिश्र।। (प्रभात खबर, भागलपुर) अपने देश में आम चुनाव को लोकतंत्र का महापर्व कहा जाता है. चुनाव की रणभेरी बज चुकी है और चुनावी दंगल में पहलवान कूद चुके हैं. 2014 का आम चुनाव कई मायने में अन्य चुनावों से अलग दिख रहा है. चुनावी दंगल की कई पुरानी टीमें नये चेहरों […]
।। दीपक कुमार मिश्र।।
(प्रभात खबर, भागलपुर)
अपने देश में आम चुनाव को लोकतंत्र का महापर्व कहा जाता है. चुनाव की रणभेरी बज चुकी है और चुनावी दंगल में पहलवान कूद चुके हैं. 2014 का आम चुनाव कई मायने में अन्य चुनावों से अलग दिख रहा है. चुनावी दंगल की कई पुरानी टीमें नये चेहरों और नये नारों के साथ मैदान में हैं. चुनाव प्रचार का तरीका भी बदल गया है. गली-गली घूमने की जगह की टीवी-अखबार के जरिये चुनावी भाषणों और विज्ञापनों की बमबारी की जा रही है.
नारे गढ़ने से ले कर चुनाव प्रचार की सामग्री तैयार करने के लिए जनसंपर्क (पीआर) और विज्ञापन जगत के महारथियों की सेवाएं ली जा रही हैं. छवि-निर्माण के इस युद्ध में कई अंतरराष्ट्रीय पीआर कंपनियां भी शामिल हो गयी हैं. अमेरिकी से लेकर जापानी तक. ये कंपनियां 500-500 करोड़ रुपये तक वसूल रही हैं. पीआर कंपनियां यह भी बताती हैं कि कहां की रैली में किस रंग का कुरता पहनना है. या फिर नेता अगर कुरते की बांहें चढ़ा-चढ़ा कर भाषण देगा, तो उसे तेवर वाला समझा जायेगा.
अब चुनाव प्रचार के लिए कार्यकर्ताओं की फौज नहीं चाहिए. अब तो यह ‘माइंडगेम’ है. टीवी, फेसबुक, ट्विटर के जरिये चुनावी गोला-बारूद दागा जा रहा है. ऐसे-ऐसे तथ्य जनता के बीच छोड़े जा रहे हैं कि वह सच-झूठ के बीच फंस कर रह जाये. चुनावों का अहम हिस्सा रहे हैं नारे. विभिन्न दलों के कुछ ऐसे नारे थे जो सदाबहार थे और हर चुनाव में उनका उपयोग होता था. लेकिन अब वे गायब हो गये हैं, जैसे- कांग्रेस का ‘गरीबी हटाओ’. भाजपा का ‘बीजेपी के तीन धरोहर अटल, अडवाणी, मुरली मनोहर’. अब तो नारा है, ‘हर हर मोदी, घर घर मोदी’. ‘कांग्रेस का संकल्प भारत निर्माण का.’ नारों के साथ-साथ चेहरे भी बदल रहे हैं. पिछले चुनाव तक वैसे कई प्रमुख चेहरे जिनके सहारे पार्टियां वोट मांगती थीं, अब उनको अप्रासंगिक कर दिया गया है. कई दल नये पहलवानों के सहारे चुनावी दंगल में किस्मत आजमाने उतरे हैं. भाजपा नरेंद्र मोदी के सहारे मैदान में है, तो कांग्रेस राहुल गांधी के सहारे.
ये चेहरे पिछले चुनाव तक पार्टी का प्रमुख चेहरा नहीं थे. आप ने अरविंद केजरीवाल का चेहरा सामने किया है. जदयू, राजद, लोजपा, वाम दल, तृणमूल तथा दक्षिण की कई पार्टियां अपने पुराने के चेहरे के साथ चुनाव मैदान में हैं. चुनावी दंगल की दो प्रमुख टीमें नये कप्तान व नये नारे के साथ पिच पर उतरी हैं. दोनों आज की जमाने की तरह 20-20 के अंदाज में खेलने को व्याकुल हैं. टीम का कैप्टन तो नया है, लेकिन खिलाड़ी वही पुराने हैं. हां, टीम मैनेजर अवश्य बदल गये हैं. अब जीत का सेहरा तो एक ही टीम के सिर पर बंधना है और हारनेवाली टीम को अपने यहां की परंपरा के मुताबिक अपनों की ही आलोचना ङोलनी पड़ेगी. बहरहाल, उम्मीद कीजिए कि नये चेहरे और नये नारे के कुछ बेहतर परिणाम भी निकल कर आयेंगे.